राजेश बादल का ब्लॉगः आस्तिक देश में नास्तिक हुकूमत का शिकंजा
By राजेश बादल | Published: February 12, 2019 12:41 PM2019-02-12T12:41:41+5:302019-02-12T12:41:41+5:30
ताजा मामला तिब्बत से है. वहां के नागरिकों का बाहरी आवागमन रोक दिया गया है. उन पर राजधानी ल्हासा तक जाने की रोक है. तिब्बतियों के पासपोर्ट छीन लिए गए हैं.
चीन से आ रही ये खबरें चिंता बढ़ाने वाली हैं. हजारों साल का अतीत समेटे सबसे बड़ा मुल्क महज सत्तर साल पुरानी निरंकुश हुकूमत के जुल्मों से कराह रहा है. मौलिक अधिकारों के लिए भी इस देश में कोई जगह नहीं. सदियों तक अनेक धर्मो को अपनी कोख में पालने वाले चीन के लोग एक नास्तिक सत्ता का शिकार बन रहे हैं. ऐसी कठोर सरकार चीन में पहले कभी नहीं रही. भेदभाव और दमन के खिलाफवहां के बाशिंदे आवाज उठाने की आदत भी भूल चुके हैं. तीस बरस पहले लोकतंत्न मांग रहे छात्नों पर जिस तरह चीन के सुरक्षा बलों ने थ्येनआनमन चौक पर अंधाधुंध फायरिंग की थी, उसकी याद करके आज भी लोग सिहर जाते हैं. इसमें 300 नौजवान छात्न मारे गए थे. हजारों घायल हुए थे. इसे चीन का जलियांवाला बाग हत्याकांड कहा जाता है. अब एक बार फिर चीन अपने रौद्र रूप में है.
ताजा मामला तिब्बत से है. वहां के नागरिकों का बाहरी आवागमन रोक दिया गया है. उन पर राजधानी ल्हासा तक जाने की रोक है. तिब्बतियों के पासपोर्ट छीन लिए गए हैं. वे अच्छी पढ़ाई और रोजगार के लिए नेपाल के रास्ते भारत आते थे. नेपाल सरकार चीन समर्थक है. चीन नेपाल आने वाले तिब्बतियों से कह रहा है कि यदि वे भारत जाएंगे तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. बीते साल भारत आने वाले तिब्बतियों की संख्या घटकर सिर्फ 3 फीसदी रह गई है. केवल 80 तिब्बती हिंदुस्तान आए. इससे पहले का औसत 3000 प्रतिवर्ष रहा है. अब तक 127935 तिब्बती निर्वासित हैं. इनमें से 95000 केवल भारत में हैं. देखा जाए तो किसी देश के शरणार्थियों में हिंदुस्तान की दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए. मगर उदार मानवीय पहचान के चलते पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल और तिब्बत से आने वाले शरणार्थियों के लिए भारत एक आदर्श शरणगाह है. चीन में लगभग 91 फीसदी निवासी स्थानीय जातियों और समुदायों से हैं. इनमें बौद्ध धर्म और उससे प्रभावित उपधर्मो तथा जातियों की संख्या सर्वाधिक है. इनके 75000 से अधिक बौद्ध मठ और हजारों मंदिर हैं.
विडंबना है कि चीन सरकार से यदि कोई कर्मचारी रिटायर होता है तो भी वह कोई धर्म ग्रहण नहीं कर सकता. यदि किसी ने ऐसा किया तो उसे सजा मिलती है. यह सरकारी फरमान है. चीन की इकलौती सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के करीब साढ़े आठ करोड़ कार्यकर्ता हैं. इन पर भी किसी भी धर्म को मानने पर पाबंदी है.
यह तो हुई बहुसंख्यक आबादी की बात. दूसरे नंबर पर ईसाई आबादी है. करीब 4.25 करोड़ ईसाई चीन के विभिन्न प्रांतों में बिखरे हुए हैं. शी जिनपिंग की योजना के मुताबिक पिछले साल ईसाइयों के लिए पंचवर्षीय योजना पेश की गई थी.
इस योजना में सभी ईसाइयों का मुस्लिमों की तर्ज पर वामपंथीकरण प्रस्तावित है. कम्युनिस्ट पार्टी ने सिफारिश की है कि ईसाई धर्म को कम्युनिस्ट पार्टी के नियंत्नण में लाया जाए. वहां अनेक चर्चो को ध्वस्त कर दिया गया. ऑनलाइन बाइबल की बिक्री रोक दी गई. स्कूल और पूजाघरों को जबरन बंद कर दिया गया. और तो और पादरियों की नियुक्ति का हक भी सरकार ने अपने पास रख लिया है. सैकड़ों चर्च इसलिए बंद कर दिए गए क्योंकि वे कम्युनिस्ट पार्टी की डिजाइन से अलग थे.
तीसरे नंबर पर मुस्लिम हैं, जो हुई और उइगर उपजातियों में बंटे हैं. दस राज्यों में फैली मुस्लिम आबादी 3 करोड़ के आसपास है. अब उनका भी जबरिया चीनीकरण किया जा रहा है. इसके लिए शी जिनपिंग की 2015 की नीति के मुताबिक यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट काम कर रहा है. इसके तहत मुसलमानों, बौद्ध और ईसाइयों को कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियां अपनाना जरूरी है. हाल ही में इस्लामिक एसोसिएशन की वेबसाइट में जारी ड्राफ्ट से चीनी मुसलमान बेहद गुस्से में हैं. पश्चिमी प्रांत शिनजियांग के गुप्त कैंप में दस लाख मुस्लिम कैद करके रखे गए हैं. हजारों लोगों को दाढ़ी रखने या हिजाब के कारण हिरासत में ले लिया गया था.
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह बताया गया है. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में सरकार के चहेते मुस्लिम नेताओं ने अपनी कौम के सदस्यों से अपील की थी कि वे अपने धर्म का चीनीकरण करने में सहयोग दें. इस्लाम में मार्क्सवादी विचारधारा को शामिल करें. मस्जिदों में चीनी झंडा लगाएं वगैरह वगैरह. सैकड़ों लोगों ने चीन के विरोध में संयुक्त राष्ट्र के दफ्तर के सामने प्रदर्शन भी किया था. संगठन की रिपोर्ट में भी इसे स्वीकार किया गया था. बीते दिनों निगङिाया प्रांत की एक मस्जिद को गिराने गए चीनी अफसरों को भारी विरोध सहना पड़ा था. मुस्लिम समुदाय ने मस्जिद घेर ली. अधिकारियों को वापस लौटना पड़ा. बताया गया कि मस्जिद के गुंबद सारी दुनिया की मस्जिदों की तरह के आकार के थे. जबकि चीन में सरकारी नियमों के मुताबिक कम्युनिस्ट पार्टी की घोषित डिजाइन पर ही मस्जिद बन सकती है.
भारत के बाशिंदे इस नजर से राहत की सांस ले सकते हैं कि यहां उन्हें वो आजादी है, जो दुनिया में किसी भी देश के लोगों को हासिल नहीं है. उन्हें धर्म से बड़ा देश समझना चाहिए और अगर न समङों तो इसके लिए भी आजाद हैं. इससे बड़ी स्वतंत्नता और क्या हो सकती है?