ब्लॉग: प्राइवेसी पर सरकार के फैसले से बन सकते हैं कम्युनिस्ट चीन या हिटलर के जर्मनी जैसे हालात
By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 27, 2018 10:48 AM2018-12-27T10:48:07+5:302018-12-27T10:48:07+5:30
सरकार की इस नई घोषणा से इस मूल अधिकार का उल्लंघन होगा. भारत सोवियत संघ या कम्युनिस्ट चीन या हिटलर की जर्मनी की तरह बन जाएगा. अभी तो सरकार के संयुक्त सचिव की अनुमति से व्यक्तियों की जासूसी होती है.
भारत सरकार अब किसी भी फोन, किसी भी ई मेल, किसी भी डाक-तार, किसी भी हिसाब-किताब या बैकिंग लेन-देन या किसी भी निजी संवाद की निजता या गोपनीयता में हस्तक्षेप कर सकेगी.
सरकार ने अपनी 10 एजेन्सियों को यह अधिकार देने की घोषणा की है. उसका तर्क यह है कि यह इसलिए किया जा रहा है कि आतंकवादियों की गुप्त हरकतों को पकड़ा जा सके.
इसमें शक नहीं कि सरकार की चिंता जायज है. यदि उनके फोन टेप किए जा सकें, उनके इंटरनेट संवादों पर नजर रखी जा सके, उनके लेन-देन को पकड़ा जा सके तो उन पर काबू पाना आसान होगा लेकिन इस सीमित लक्ष्य के लिए असीमित छूट लेना कहां तक उचित है?
यदि देश के हर नागरिक को जासूसी चश्मे से देखा जाएगा तो उसकी निजता और उसकी इंसानियत खतरे में पड़ जाएगी.
किसी जानवर और इंसान में यह निजता ही फर्क डालती है. यह उनका मूल अधिकार है. यह उनकी मूल पहचान है. सर्वोच्च न्यायालय इसे उनका मूल अधिकार मानता है. सरकार की इस नई घोषणा से इस मूल अधिकार का उल्लंघन होगा.
राजनीतिक दुरुपयोग संभव
इस फैसले से भारत सोवियत संघ या कम्युनिस्ट चीन या हिटलर की जर्मनी की तरह बन जाएगा. अभी तो सरकार के संयुक्त सचिव की अनुमति से व्यक्तियों की जासूसी होती है.
अभी भी हजारों फोन टेप किए जाते हैं और चिट्ठियां खोलकर पढ़ी जाती हैं लेकिन क्या अब करोड़ों लोगों के खिलाफ जासूसी का बाजार गर्म नहीं हो जाएगा?
इस प्रावधान का राजनीतिक दुरुपयोग अवश्यंभावी है. सरकार से हम अपेक्षा करते हैं कि वह अपराधियों की जासूसी जरूर करे लेकिन सामान्य नागरिकों के निजता के अधिकार की रक्षा करे.