लालू परिवार के लिए "राजयोग" लेकर आता है चारा घोटाला, पहले पत्नी अब बेटे काटेंगे "राजनीतिक फसल"
By रंगनाथ | Updated: December 23, 2017 18:02 IST2017-12-23T16:27:24+5:302017-12-23T18:02:09+5:30
चारा घोटाला: देवघर ट्रेजरी मामले में लालू प्रसाद यादव समेत 15 लोगों को दोषी पाया गया है।

लालू परिवार के लिए "राजयोग" लेकर आता है चारा घोटाला, पहले पत्नी अब बेटे काटेंगे "राजनीतिक फसल"
शनिवार (23 दिसंबर) को लालू यादव को चारा घोटाले से जुड़े देवघर ट्रेजरी मामले में अदालत ने दोषी पाया।अदालत तीन जनवरी को लालू प्रसाद समेत सभी 15 दोषियों को सजा सुनाएगी। बिहार के पूर्व सीएम को पहले ही इसी घोटाले से जुड़े एक मामले में साल 2013 में पाँच साल की सजा हो चुकी है जिसके खिलाफ उन्होंने ऊपरी अदालत में अपील की है। हालांकि सजा हो जाने के कारण राजद प्रमुख साल 2014 में लोक सभा और साल 2015 में विधान सभा चुनाव नहीं लड़ सके। ताजा फैसले को कुछ टिप्पणीकार 69 वर्षीय लालू यादव के राजनीतिक करियर का क्लाइमेक्स बता रहे हैं लेकिन तथ्य इसकी तस्दीक नहीं करते। कम से कम लालू प्रसाद यादव का इतिहास और मौजूदा तेवर यही संकेत दे रहे हैं। अदालत का फैसला आने के बाद लालू यादव के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से कई ताबड़तोड़ ट्वीट किए गये, इनमें एक ट्वीट है, "ना ज़ोर चलेगा लाठी का, लालू लाल है माटी का।"
पटना विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रहे लालू यादव करीब 29 साल की उम्र में बिहार के छपरा से जनता पार्टी की लहर में सांसद बने। 1980 में वो संसदीय चुनाव हार गये लेकिन बाद में विधान सभा चुनाव जीत गये। 1985 में वो दोबारा बिहार विधान सभा पहुंचे। राजनीति की सीढ़ियां लालू ने तेजी से चढ़ीं लेकिन उनके राजनीतिक जीवन में पहला बड़ा मोड़ तब आया जब बिहार में पिछड़ा वर्ग के अग्रणी नेता और राज्य के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद बिहार विधान सभा में नेता विपक्ष की भूमिका लालू यादव को मिली।
इंदिरा गांधी द्वारा लगाये गये आपातकाल के विरोध में जब जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति आंदोलन चलाया तो बिहार में उस आंदोलन की कमान जिन युवा नेताओं पर थे उनमें लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, सुशील मोदी, रविशंकर प्रसाद इत्यादि प्रमुख थे। छात्र राजनीति से सीधे राष्ट्रीय राजनीति में आने वाले लालू कांग्रेस विरोध की लहर में सवार होकर ही पहले संसद और फिर बिहार विधान सभा पहुंचे। 1990 में वो बिहार के पहली बार मुख्यमंत्री भी कांग्रेसी विरोधी जनता दल के नेता के तौर पर बने। लालू यादव की छवि तेजतर्रार और "माटी का लाल" नेता की थी। मुख्यमंत्री के तौर पर पाँच साल के अपने पहले कार्यकाल में वो आम लोगों के बीच आम लोगों की तरह आम जबान बोलने वाले नेता के रूप में तेजी से लोकप्रिय हुए।
लालू प्रसाद भले ही जनता दल के नेता के तौर पर सीएम बने हों लेकिन मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने अपनी निजी राजनीतिक जमीन तैयार करनी शुरू कर दी। सितंबर 1990 में रथयात्रा निकाल रहे बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करवा कर उन्होंने सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ मजबूती से खड़े होने वाले नेता की छवि बनायी। अपने इस साहसिक कदम से बिहार में मुसलमानों के वो प्रिय नेता बन गये। लालू प्रसाद ने दूसरा हमला "सवर्ण वर्चस्व" पर किया। "भूरा बाल" (भूमिहार, राजपूत ब्राह्मण और लाला) साफ करो के उनके नारे ने पिछड़े और दलितों में उनकी छवि मसीहा जैसी बना दी।
1995 में जब बिहार विधान सभा चुनाव हुए तो लालू प्रसाद के नेतृत्व में बिहार में जनता दल की सरकार बनी। लालू के करियर में एक और बड़ा मोड़ तब आया जब वो चारा घोटाले से जुड़े आरोपों में घिरे। 1997 में उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी। लेकिन लालू यादव के लिए ये विपदा भी आखिरकार राजनीतिक लाभ का वायस बनी। लालू प्रसाद ने जनता दल को तोड़कर अपनी राष्ट्रीय जनता दल बना ली। राज्य में नवजात राजद की सरकार बन गयी। चारा घोटाले से पहले लालू यादव "किंग" थे लेकिन इसकी वजह से कुर्सी छोड़ने के बाद जिस तरह उन्होंने पत्नी राबड़ी देवी को राज्य का सीएम बनाया उससे साबित हो गया कि बिहार में अब वो या तो किंग रहेंगे या "किंग मेकर।" चारा घोटाला एक तरह से उनकी पत्नी के लिए "राजयोग" लेकर आया।
चारा घोटाले के बाद लालू प्रसाद ने खुद को विक्टिम के तौर पर पेश किया। वो अपने समर्थकों को ये समझाने में कामयाब रहे कि उन्हें पिछड़ी जाति का होने और सांप्रदायिक ताकतों का विरोध करने के कारण निशाना बनाया जा रहा है। साल 2000 के विधान सभा चुनाव में राजद ने इस सहानुभूति से उपजी राजनीतिक फसल काटी और 124 सीटों के साथ राज्य में सरकार बनायी। इस बार राबड़ी देवी पूरे पाँच साल बिहार की सीएम रहीं। 1990 से 2005 तक बिहार में "लालू राज" रहा। राष्ट्रीय स्तर पर लालू की लोकप्रियता का ग्राफ जितनी तेजी से बढ़ा उतनी ही तेजी से बिहार में कानून-व्यवस्था को लेकर लोगों की शिकायतें बढ़ीं। खासकर साल 2000 से 2005 के बीच राबड़ी देवी के कार्यकाल के बाद एक बड़े तबके का लालू यादव से मोहभंग होने लगा।
"माई" (मुस्लिम-यादव) समीकरण को लालू प्रसाद का राजनीतिक आधार माना जाता रहा है लेकिन उन्हें अपनी बिगड़ती छवि की कीमत साल 2005 के विधान सभा चुनाव में चुकानी पड़ी। 2005 में पहले फरवरी में चुनाव हुए तो राजद को 75, जदयू को 55 और बीजेपी को 37 सीटें मिलीं। 243 सीटों वाली बिहार विधान सभा में कोई दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं था। अक्टूबर में राज्य में दोबारा चुनाव हुए तो इस बार वोटरों ने राजद को पहले से भी कम सीटें दीं और जदयू को 88, बीजेपी को 55 और राजद को 54 सीटें मिलीं। जदयू ने बीजेपी के साथ मिलकर नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बना ली।
2010 के विधान सभा में राजद की हालत और खराब हो गयी और उसे महज 22 सीटों पर जीत मिली जबकि जदयू को 115 और बीजेपी को 91 सीटों पर जीत मिली थी। बहुत से राजनीतिक जानकार मानने लगे थे कि बिहार की राजनीति से लालू प्रसाद प्रसंग का पटाक्षेप हो चुका है। लेकिन तभी साल 2013 में चारा घोटाले से जुड़े एक मामले में लालू को पाँच साल की सजा हो गयी। अदालत का फैसला आते ही उनके समर्थकों की सोई हुई संवेदनाएँ फिर से जाग गयीं। विक्टिम कार्ड लालू के काम आया। साल 2015 में उन्होंने जदयू और कांग्रेस के साथ मिलकर विधान सभा चुनाव लड़ा और राजद राज्य का सबसे बड़ा दल बनकर सामने आया। चारा घोटाला एक बार लालू प्रसाद को रास आया। साल 2015 के चुनाव में राजद को 80, जदयू को 71, कांग्रेस को 23 और बीजेपी को 38 सीटें मिलीं। 1997 और 2000 में लालू प्रसाद के दोनों बेटे नाबालिग थे। साल 2015 में जब नीतीश कुमार ने सीएम पद की शपथ ली तो उनके दोनों बेटों तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव मंत्रिमंडल में शामिल थे। तेजस्वी को डिप्टी सीएम की कुर्सी मिली। यानी चारा घोटाले में लालू यादव के सजायाफ्ता होने के बाद उनके बेटों का "राजयोग" शुरू हुआ।
जुलाई 2017 में नीतीश कुमार ने राजद और कांग्रेस से हाथ छुड़ाकर बीजेपी का दामन थाम लिया। लालू प्रसाद इसे खुद के साथ हुए धोखा बताते रहे हैं। पिछले कुछ सालों में लालू यादव, राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव और मीसा भारती इत्यादि पर भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति इत्यादि के मामले दर्ज हुए हैं। लालू प्रसाद इसे भी "सांप्रदायिक ताकतों" के खिलाफ अपनी लड़ाई का फल बताते रहे हैं। शनिवार को दोषी ठहराए जाने के बाद भी लालू प्रसाद और उनके समर्थक खुद को विक्टिम की तरह पेश कर रहे हैं। जगन्नाथ मिश्रा का देवघर मामले में बरी हो जाना लालू यादव के हित में जाएगा। लालू यादव ने ट्वीट किया है, "...लड़ते-लड़ते मर जाऊँगा लेकिन मनुवादियों को हराऊँगा।" जाहिर है चारा घोटाला लालू परिवार के लिए लकी साबित होता है। रही जेल में कुछ दिन या महीने गुजारने की बात तो वो पहले ही कह चुके हैं कि जेल तो कृष्ण कन्हैया की जन्मस्थली है।