भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: राजनीति में संन्यासी नेताओं की भूमिका 

By भरत झुनझुनवाला | Published: October 29, 2018 05:57 AM2018-10-29T05:57:56+5:302018-10-29T05:57:56+5:30

संन्यास का मूल विचार आंतरिक संन्यास का है। कृष्ण ने अजरुन को महाभारत में आंतरिक संन्यास का उपदेश दिया था। कहा था कि अंदर से ईश्वर को समर्पण करते हुए और अपनी इच्छाओं का क्षय करते हुए समाज में सक्रिय रहो।

Bharat Jhunjhunwala blog: Role of monastic leaders in politics | भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: राजनीति में संन्यासी नेताओं की भूमिका 

भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: राजनीति में संन्यासी नेताओं की भूमिका 

आगामी चुनाव में संन्यासी नेताओं की भारी मांग उत्पन्न हो रही है। यह एक सुखद संदेश है। सन्यासी मूल रूप से संसार से विरक्त हो चुका होता है और वह निष्पक्ष रूप से समाज की समस्याओं पर विचार कर सकता है। इसलिए हम मान सकते हैं कि संन्यासी नेता द्वारा देश के हित में सही कार्य किया जाएगा। 

संन्यास का मूल विचार आंतरिक संन्यास का है। कृष्ण ने अजरुन को महाभारत में आंतरिक संन्यास का उपदेश दिया था। कहा था कि अंदर से ईश्वर को समर्पण करते हुए और अपनी इच्छाओं का क्षय करते हुए समाज में सक्रिय रहो। अधर्म के खिलाफ लड़ो। अजरुन ने गेरुआ वस्त्र नहीं पहने, संन्यास भी नहीं लिया लेकिन अजरुन श्रेष्ठ श्रेणी के संन्यासी थे। उन्होंने आंतरिक संन्यास लिया और बाहरी कार्यो में लिप्त रहे। वर्तमान काल में उनके समकक्ष महात्मा गांधी दिखते हैं।

उन्होंने भी आंतरिक संन्यास लेकर बाहरी राजनीतिक कार्य किया और देश को सुखद परिणाम भी मिले। 
लेकिन अजरुन और गांधी की स्थिति को पहुंचना कठिन कार्य है। इस स्थिति तक पहुंचने के लिए व्यक्ति को अपनी आंतरिक लालसाओं का क्षय करते हुए बाहरी कार्य में लिप्त होना होता है। बाहरी कार्यो को संपन्न करते समय अपनी आंतरिक लालसाओं पर नियंत्रण रखना होता है। ऐसा न कर पाने वाले लोगों के लिए हमारी परंपरा ने एक द्वितीय श्रेणी का हल निकाला। जो लोग अजरुन और गांधी की तरह आंतरिक लालसाओं से मुक्त नहीं हुए हैं लेकिन उस तरफ पहुंचना चाहते हैं उनके लिए व्यवस्था बनाई गई कि वे बाहरी संन्यास ले लें।  

इसी संन्यास परंपरा का एक सामाजिक पक्ष भी है। जिन लोगों ने  संन्यास ग्रहण कर लिया वे निर्लिप्त भाव से नेता को नियंत्रित कर सकते हैं। वे नेता को कह सकते हैं कि आप जो नीति अपना रहे हो वह गलत है और उसमें सुधार की कोशिश कर सकते हैं। इस प्रकार संन्यास के दो पक्ष हुए। एक पक्ष व्यक्तिगत हुआ जिसमें व्यक्ति बाहरी सामाजिक सरोकारों से अपने को अलग करके अपनी आंतरिक लालसाओं का क्षय करता है। सामाजिक पक्ष यह हुआ कि वह नेताओं पर नियंत्रण का कार्य कर सकता है। 


लेकिन संन्यासी नेता का सामाजिक पक्ष  ज्यादा पेचीदा है।  अगर संन्यासी नेता समाज के लिए सही दिशा में कार्य करे तो समाज को दोहरा लाभ होगा। संन्यासी होने के कारण वह निर्लिप्त भाव से कार्य करेगा और सही दिशा में होने के कारण वह सही कार्य करेगा। लेकिन यदि वह गलत दिशा में कार्य करने लगे तो समाज को दोहरा नुकसान होगा।

संन्यासी नेता के ऊपर दूसरे द्वारा अंकुश लगाना कठिन है। संन्यासी नेता एक प्रकार से निरंकुश नेता हो जाता है और यदि वह समाज को गलत दिशा में ले गया तो उसके द्वारा अपनाई गई गलत दिशा निर्बाध चलती रहेगी।   
हमें ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जिसमें निर्लिप्त भाव से कार्य करने वाले लोग अंकुश रखें। वे संन्यासी नेता द्वारा लागू की गई नीतियों का निष्पक्ष आकलन करके समाज के सामने प्रस्तुत करें।

Web Title: Bharat Jhunjhunwala blog: Role of monastic leaders in politics

राजनीति से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे