गुजरात-हिमाचल जीतते ही पूर्वोत्तर 2018 मिशन पर फोकस हो चुके हैं मोदी-शाह
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: January 2, 2018 18:07 IST2018-01-02T17:02:05+5:302018-01-02T18:07:16+5:30
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में फरवरी-मार्च 2018 में विधान सभा चुनाव हो सकते हैं।

गुजरात-हिमाचल जीतते ही पूर्वोत्तर 2018 मिशन पर फोकस हो चुके हैं मोदी-शाह
नए साल के पहले दिन ही खबर आई कि मेघालय के पांच कांग्रेसी विधायक इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल होंगे।जाहिर है जब पूरा देश नए साल की तैयारी में व्यस्त था तब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नीति-नियंता अपनी पार्टी को पूर्वोत्तर में मजबूत करने में लगे थे। मेघालय में इस साल फरवरी-मार्च में विधान सभा चुनाव हो सकते हैं। जाहिर है, बीजेपी अभी से चुनावी तैयारी शुरू कर चुकी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह "कांग्रेस मुक्त भारत" का सपना तब तक पूरा नहीं होगा जब तक कि पूर्वोत्तर भारत में कमल नहीं खिल जाता। आइए देखते हैं कि पूर्वोत्तर के जिन तीन अगले कुछ महीनों में चुनाव होने वाले हैं उनमें बीजेपी की संभावनाएं क्या हैं।
नागालैंड
नागालैंड में बीजेपी पिछले साल पहली बार गठबंधन सरकार में शामिल हुई। राज्य में सत्ताधारी नगा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ) जब अंदरूनी कलह का शिकार हुई तो बीजेपी ने सीएम शुरोजली लैजिस्टु के खिलाफ टीआर जेलियांग को समर्थन दिया। जेलियांग विधान सभा में अपना बहुमत साबित करने में कामयाब रहे। उनके मंत्रिमंडल में पहली बार बीजेपी के दो विधायक मंत्री के तौर पर शामिल हुए। बीजेपी भले ही जोड़तोड़ से सरकार में शामिल हो गयी हो लेकिन विधान सभा चुनाव में उसकी अग्निपरीक्षा होगी।
साल 2011 की जनगणना के अनुसार नागालैंड में 87.93 प्रतिशत ईसाई, 8.75 प्रतिशत हिन्दू, मुस्लिम 2.47 प्रतिशत हैं। बौद्ध, जैन, सिख इत्यादि धर्मों के नागरिक हैं। बीजेपी ने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेण रिजीजू को नागालैंड का चुनाव प्रभारी बनाया गया है। बीजेपी जिस तरह पूरे देश में हिंदुत्ववादी राजनीति करती रही उसे देखते हुए ईसाई बहुल राज्य में उसकी स्वीकार्यता को लेकर संदेह होना स्वाभाविक है। पूर्वोत्तर के बाहर के राज्यों में बीजेपी ने जिस तरह बीफ या गोमांस को लेकर बयानबाजियां की हैं उन्हें देखते हुए पूर्वोत्तर में उसके प्रति लोगों के मन में संशय है। पूर्वोत्तर के कई समुदाय बीफ या अन्य मांस का पारंपरिक रूप से सेवन करते रहे हैं। खुद रिजीजू को बीफ खान के पक्ष में बयान देना पड़ा था।
एनपीएफ ने साल 2013 में राज्य की 60 में 37 सीटों पर जीत हासिल की थी। नवंबर 2015 में कांग्रेस के आठ विधायक नगा पीपल्स फ्रंट में शामिल हो गये थे जिससे उसके विधायकों की संख्या बढ़कर 46 हो गयी थी। कांग्रेस ने 2013 में आठ सीटों पर और बीजेपी ने दो सीटों पर जीत हासिल की थी। जून 2014 में नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के तीन विधायक बीजेपी में शामिल हो गये थे।
बीजेपी ने पिछले विधान सभा चुनाव में 11 उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से आठ की जमानत जब्त हो गयी थी। साल 2008 में उसके दो उम्मीदवार, साल 2003 में सात उम्मीदवार चुनाव जीते थे। राज्य के चुनाव इतिहास को देखते हुए बीजेपी की राज्य में बहुत संभावनाएँ नहीं हैं। एक बड़ा सवाल ये भी है कि राज्य में बीजेपी सत्ता में साझीदार है ऐसे में करीब एक दशक से सत्ता में मौजूद एनपीएफ के साझीदार के तौर पर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी को सत्ताविरोधी हवा का शिकार होना पड़ सकता है। अगर कांग्रेस और एनसीपी खुद को विकल्प के तौर पर पेश करते हैं तो बीजेपी को एनपीएफ के साथ होने का लाभ या नुकसान दोनों हो सकता है।
मेघालय
मेघालय में कांग्रेस की सरकार है इसलिए नरेंद्र मोदी-अमित शाह के साथ ही ये राज्य राहुल गांधी की भी नाक का सवाल है। पांच विधायकों के बीजेपी गठबंधन में शामिल होने की खबर आते ही राहुल गांधी ने बगैर वक्त गवाएं राज्य कांग्रेस के पुराने अध्यक्ष को हटाकर डीडी लपांग को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया। राज्य में कुल 60 विधान सभा सीटें हैं। साल 2013 के चुनाव में मेघालय में बीजेपी ने 13 उम्मीदवार उतारे थे लेकिन सभी की जमानत जब्त हो गयी थी। उससे पहले साल 2008 में भी बीजेपी का ऐसा ही हाल हुआ था जब उसके 23 उम्मीदवारों में से एक को ही जीत मिली थी। साल 2003 में भी बीजेपी के 28 उम्मीदवारों में से दो को ही जीत मिली थी।
मेघालय में अभी कांग्रेस की मुकुल संगमा के नेतृत्व वाली सरकार है। साल 2013 में कांग्रेस ने 29 सीटों पर जीत हासिल करके सरकार बनायी थी। आठ सीटें यूडीपी को मिली थीं। मेघालय में बीजेपी स्थानीय दलों के साथ गठबंधन करके चुनाव में उतरेगी या अकेले ये अब तक साफ नहीं है। मेघालय की जेम्स कॉनरैड के नेतृत्व वाली नेशनल पीपल्स पार्टी बीजेपी नीत पूर्वोत्तर लोकतांत्रिक गठबंधन (नेडा) का हिस्सा है। साल 2014 के लोक सभा चुनाव में शिलॉन्ग की सात विधान सभा सीटो में से छह पर पहले स्थान पर रही थी। ऐसे में पार्टी अकेले दम पर चुनाव में उतरने को लेकर भी गंभीर है।
त्रिपुरा
त्रिपुरा में बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती सीपीएम सरकार के सीएम माणिक सरकार हैं। माणिक सरकार 1998 से ही राज्य के मुख्यमंत्री हैं। सरकार देश के मौजूदा मुख्यमंत्रियों में सबसे लम्बे समय से सीएम की कुर्सी पर हैं। दूसरे नेताओं के उलट माणिक सरकारी की छवि गरीबों के मसीहा के रूप में है। वो देश के सबसे गरीब मुख्यमंत्री भी माने जाते हैं। साल 2013 के विधान सभा चुनाव में दिए गये हलफनामे के अनुसार उनकी और उनकी पत्नी की कुल संपत्ति महज कुछ हजार रुपये थी।
साल 2013 में माणिक सरकार के नेतृत्व में सीपीआई (एम) ने राज्य की 60 में से 49 सीटों पर जीत हासिल की थी। त्रिपुरा में भी बीजेपी की स्थिति नागालैंड और मेघालय जैसी ही है। साल 2013 में पार्टी ने राज्य की 60 विधान सभा सीटों में से 50 पर उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 49 की जमानत जब्त हो गयी थी। साल 2008 के विधान सभा चुनाव में भी बीजेपी का यही हाल हुआ था। साल 2003 में बीजेपी के 21 उम्मीदवार जमानत गँवा बैठे थे। साल 2013 के चुनाव में भले ही बीजेपी एक भी सीट न जीत सकी हो बाद में कांग्रेस के छह बागी विधायकों को शामिल कर लिया था। यानी दूसरी पार्टियों की अंदरूनी टूट-फूट का बीजेपी का त्रिपुरा में भी लाभ मिल सकता है।
बीजेपी असम सरकार के कैबिनेट मंत्री हेमंत विश्व सर्मा को त्रिपुरा का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया है। हेमंत बिस्व सर्मा लम्बे समय तक कांग्रेस में रहने के बाद असम विधान सभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे। असम में बीजेपी की सरकार बनवाने में उनकी अहम भूमिका मानी गयी थी। त्रिपुरा का प्रभारी बनाए जाने के बाद सर्मा ने मीडिया से कहा कि नवम्बर 2018 तक पूर्वोत्तर 'कांग्रेस मुक्त' हो जाएगा। जाहिर है सर्मा का इशारा साल 2018 में पूर्वोत्तर के चार राज्यों के विधान सभा चुनाव की तरफ था। मिजोरम में भी इस साल की आखिर तक विधान सभा चुनाव प्रस्तावित हैं।
बीजेपी की उम्मीद- मोदी सरकार, गठजोड़ और आरएसएस
पूर्वोत्तर में भगवा फहराने की बीजेपी की उम्मीद मुख्यतः तीन चीजों पर टिकी है- केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से मिलने वाले लाभ, स्थानीय दलों से गठजोड़ या तोड़फोड़ और राज्य में पिछले कई दशकों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा बनाया गया जनाधार। मई 2014 में पीएम बनने के बाद से ही नरेंद्र मोदी का पूर्वोत्तर पर विशेष ध्यान रहा है। अभी हाल ही में पीएम मोदी ने पूर्वोत्तर का दौरा कर के करीब 90 हजार करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं की घोषणा की। मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों के विकास संबंधी मंत्रालय बनाया है जिससे उसकी प्राथमिकताएं जाहिर होती हैं।
बीजेपी ने पूर्वोत्तर में कांग्रेस के सफाए के लिए स्थानीय रूप से प्रभावी दलों से गठबंधन किया है। बीजेपी नीत पूर्वोत्तर लोकतांत्रिक गठबंधन (नेडा) में नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ), सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, पीपुल्स पार्टी ऑफ अरूणाचल, असम गण परिषद् और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट इत्यादि शामिल हैं। पूर्वोत्तर में इस समय असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैंड, सिक्किम में बीजेपी या बीजेपी गठबंधन सरकार हैं। यानी पार्टी की सीधी नीति है कि जहाँ खुद सरकार नहीं बना सकते वहां गठजोड़ या तोड़फोड़ से परहेज नहीं।
पूरे देश की तरह पूर्वोत्तर में भी बीजेपी को अपनी राजनीतिक पैठ बनाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा तैयार की गयी सहानुभूति का सहारा है। भले ही बीजेपी ने पूर्वोत्तर में पहली बार सरकार साल 2016 में बनायी हो लेकिन आरएसएस 1940 के दशक से ही पूर्वोत्तर में सक्रिय है। पूर्वोत्तर में आरएसएस की हजार से ज्यादा शाखाएं लगती हैं। आरएसएस से जुड़े सांस्कृतिक संगठन इस इलाके में कई दशकों से सक्रिय हैं। आरएसएस की चुनावी भूमिका से बीजेपी इनकार करती रही है लेकिन राजनीतिक जानकार मानते हैं कि संघ ही वो खेत तैयार करता है जहाँ बीजेपी चुनावी फसल बोती है।