अभय कुमार दुबे का ब्लॉगः देश में विश्वास और वोट का बैरोमीटर

By अभय कुमार दुबे | Published: February 1, 2019 11:06 AM2019-02-01T11:06:02+5:302019-02-01T11:06:02+5:30

वोट प्रतिशत और सीटों की चर्चा करने वाले इन पारंपरिक किस्म के सर्वेक्षणों से अलग हटते हुए एक ऐसी रायशुमारी भी हुई है जो राजनीतिक हवा का अनुमान विश्वास या ट्रस्ट के संदर्भ में लगाती है.

Abhay Kumar Dubey's blog: Barometer of trust and vote in the country | अभय कुमार दुबे का ब्लॉगः देश में विश्वास और वोट का बैरोमीटर

अभय कुमार दुबे का ब्लॉगः देश में विश्वास और वोट का बैरोमीटर

चुनाव सिर पर हैं और सर्वेक्षण करने-करवाने वाली संस्थाएं बेहद व्यस्त हो चुकी हैं. राष्ट्र का मूड पता लगाने के लिए बैरोमीटर तैयार कि ए जा रहे हैं और मतदाताओं से तरह-तरह की पूछताछ करके अंदाजा लगाया जा रहा है कि हवा किस तरफ बह रही है. अभी तक आए तीन ‘मूड ऑफ द नेशन’ सर्वेक्षणों में से दो बता रहे हैं कि भाजपा और उसके नेतृत्व वाला राजग मोटे तौर पर अपने पिछले प्रदर्शन से अस्सी से सौ सीटें दूर रह जाने वाला है.

इससे संदेश निकल कर आता है कि अगर सब कुछ ऐसा ही चलता रहा और नरेंद्र मोदी ने जल्दी ही खेल का रुख पलट देने वाला कोई कदम नहीं उठाया तो 2019 में भले ही वे चुनाव में पूरी तरह से पराजित न हों, पर उनकी सरकार की स्थिति नब्बे के दशक में बनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार जैसी हो जाएगी. यानी वह सरकार वास्तव में एक गठजोड़ सरकार होगी. 

उस सूरत में संसद में विपक्ष की ताकत बढ़ना लाजिमी है और अगर तब की लोकसभा की कल्पना की जाए तो विपक्ष की बेंचों पर कांग्रेस के सौ से सवा सौ सांसद बैठे दिखाई पड़ते हैं, और बहुत सी बेंचें भाजपा विरोधी क्षेत्रीय शक्तियों के सांसदों से भरी हुई दिखाई पड़ती है. अर्थात् भाजपा के लिए आगे की राह कठिन प्रतीत हो रही है.

वोट प्रतिशत और सीटों की चर्चा करने वाले इन पारंपरिक किस्म के सर्वेक्षणों से अलग हटते हुए एक ऐसी रायशुमारी भी हुई है जो राजनीतिक हवा का अनुमान विश्वास या ट्रस्ट के संदर्भ में लगाती है. यह सर्वेक्षण लोगों से पूछता है कि मुद्दों (महंगाई, कानून-व्यवस्था, सरकारी नौकरी, भ्रष्टाचार, अधिसंरचना, सांप्रदायिक भाईचारा), हस्तियों (नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, मायावती वगैरह) और पार्टयिों (भाजपा, कांग्रेस और क्षेत्रीय दल) के संदर्भ में वे किस पर और कितना विश्वास करते हैं.

जाहिर है कि इससे यह पता तो लग ही सकता है कि इस बार लोग किसे वोट करना चाहते हैं और उसके पीछे उनके कारण क्या हैं.   इप्सोस संस्था द्वारा किए गए इस विस्तृत सर्वेक्षण ने अपने सैम्पल और पद्धति की भी पर्याप्त जानकारी मुहैया कराई है जिससे पहली नजर में यह अधिक विश्वसनीय लगने लगा है. इसके आंकड़ों का विश्लेषण करने पर इस सर्वे से भी चौंकाने वाले परिणाम निकलते हैं. 

जैसी आम मान्यता है कि किसी भी सर्वेक्षण में जो अंकगणित दिखाई पड़ता है, उसका रसायनशास्त्र उसके आंकड़ों के भीतर कहीं छिपा रहता है. मसलन, यह ट्रस्ट सर्वेक्षण बताता है कि नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत ईमानदारी और वित्तीय पवित्रता में लोगों का यकीन पचास फीसदी से कुछ ज्यादा है. पहली नजर में आश्वस्तिकारक लगने वाले इस तथ्य को जैसे ही राफेल सौदे पर उठे विवाद पर लोगों की राय के आईने में देखा जाता है- यह आंकड़ा कमजोर लगने लगता है. 55 फीसदी लोग मानते हैं कि राफेल सौदा 2019 के संसदीय चुनाव में एक अहम मुद्दे की भूमिका निभाएगा. 
और तो और, जब यही सवाल और भी ठोस तरीके से पूछा गया कि क्या लोग कांग्रेस द्वारा प्रधानमंत्री मोदी पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों से सहमत हैं तो पता चला कि 43 फीसदी लोग मजबूती से और 22 फीसदी इससे मामूली ढंग से इन आरोपों को सही मानते हैं. समझने की बात यह है कि राफेल के मुद्दे पर अगर कुल 65 फीसदी लोग ऐसा न मानते होते तो ईमानदारी और वित्तीय पवित्रता वाले आंकड़े में प्रधानमंत्री की रेटिंग 75 से 80 फीसदी आती. यानी विपक्ष द्वारा लगाया गया ‘चौकीदार चोर है’ वाला नारा कहीं न कहीं काम करता हुआ दिखता है.

एक दूसरा तथ्य जिससे सत्तारूढ़ दल बेचैन हो सकता है, नेता के तौर पर लोगों की पसंद से संबंधित है. 67 फीसदी लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी पर अपना विश्वास जताया है. एक बार फिर यह आकर्षक आंकड़ा है. लेकिन 49 फीसदी लोग ऐसे भी हैं जो राहुल गांधी पर यकीन रखते हैं. स्पष्ट है कि 16  फीसदी ऐसे लोग भी हैं जो दोनों नेताओं को एक दूसरे के विकल्प के तौर पर फिलहाल देख रहे हैं और जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगा वे किसी न किसी तरफ अंतिम रूप से झुकेंगे. 

यह आंकड़ा बताता है कि मोदी का कोई विकल्प नहीं वाली स्थिति नहीं रह गई है, और राहुल गांधी ने जनमानस को स्पर्श करने में काफी प्रगति की है. दूसरे, राहुल गांधी दक्षिण भारत में मोदी से आगे हैं और यहां तक कि असम में भी  उन पर और उनकी पार्टी पर लोगों का यकीन अधिक है.

भाजपा निश्चित रूप से सोच रही होगी कि क्या वह मोदी की निजी लोकप्रियता के दम पर चुनाव की वैतरणी पार कर लेगी? स्वयं मोदी को भी इस बात का एहसास है इसीलिए उन्होंने रामलीला मैदान में अपनी पार्टी के अधिवेशन में कहा था कि केवल उनके दम पर चुनाव नहीं जीता जा सकता. ऊंची जातियों को दस फीसदी का आरक्षण दिया जा चुका है. जीएसटी में रियायतें दे कर नाराज व्यापारी वर्ग को संतुष्ट करने के प्रयास किए जा चुके हैं. अब बारी कृषि क्षेत्र की है. एक फरवरी को बजट आएगा.

उस समय सरकार के तरकश से किसानों के खाते में राहत का धन सीधे-सीधे पहुंचाने की योजना का तीर निकल सकता है. मेरे विचार से वह अंतिम तीर होगा जो यह सरकार अपने पक्ष में चला सकती है.

Web Title: Abhay Kumar Dubey's blog: Barometer of trust and vote in the country