गजब की मिसाल: जापानी खेल प्रेमियों से दुनिया को लेनी चाहिए सीख
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: November 26, 2022 04:40 PM2022-11-26T16:40:29+5:302022-11-26T16:40:29+5:30
फीफा विश्व कप प्रतियोगिता में जर्मनी पर जीत के बाद जापानी प्रशंसकों ने जहां स्टेडियम की सफाई की, वहीं खिलाड़ियों ने भी ड्रेसिंग रूम साफ किया। जर्मनी पर फतह के बाद जापानी विजयी उन्माद से बचते रहे और स्टेडियम को चमकाकर ही बाहर आए।
हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिकी परमाणु हमले के बाद जापान ने जो जीवटता दिखाई और जिस रफ्तार से उठा, वह वाकई अद्भुत और अतुलनीय है। 12 करोड़ 39 लाख की आबादी वाला जापान यूं ही नहीं ‘उगते सूरज’ का देश है। इसकी तरक्की में अवाम का योगदान असाधारण है। जापानी नागरिक आत्म अधिकारों के प्रति सचेत तो हैं ही लेकिन दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन न हो, इसके लिए जागरूक भी हैं।
जिस धरती पर नागरिक फोन पर बात करते हुए बगल में बैठे सज्जन का ध्यान भंग न हो इसके प्रति सजग होते हैं, जहां की कार्य संस्कृति इतनी विकसित है कि बड़े-बड़े अफसर भी दफ्तर के बाद या छुट्टीवाले रोज सड़क किनारे जनोपयोगी चीजें बेचते हैं, जहां के लोग एक-दूसरे को तोहफे देने में खुशियों का खजाना खोजते हैं और जहां स्वच्छता बनाए रखना हर नागरिक खुद का फर्ज मानता है, वह कैसे नहीं प्रगति के सोपान कायम करेगा।
जापान का महिमा मंडन करने की वजह है कतर में खेली जा रही फीफा विश्व कप प्रतियोगिता में जर्मनी पर जीत के बाद जापानी प्रशंसकों और खिलाड़ियों का आचरण। मुकाबला खत्म होने के बाद जापानियों ने स्टेडियम नहीं छोड़ा। दर्शकों ने जहां स्टेडियम की सफाई की, वहीं खिलाड़ियों ने भी ड्रेसिंग रूम साफ किया।
दर्शकों की हर वह चीजें इकट्ठा कीं जो वे फेंककर निकल चुके थे। जर्मनी पर फतह के बाद जापानी विजयी उन्माद से बचते रहे और स्टेडियम को चमकाकर ही बाहर आए। यूरोपीय फुटबॉल प्रेमियों की तरह मदिरापान कर वह बहके नहीं। जीत के नशे में वह शैतान नहीं बने।
कतर न तो उनकी मातृभूमि है और न ही स्टेडियम टोक्यो, ओसाका या क्योटो जैसे किसी जापान के शहर में है, फिर भी जापानियों ने वह काम कर दिखाया जिससे शीश उनके सामने नवाने को जी चाहता है। जापानी नागरिकों की तरह हम भारतीय भी आचरण करें तो यह देश स्वर्ग जैसा सुंदर बन जाए।
हम भारतीय बहुत अच्छे हैं। सियासतदां कहते रहते हैं कि आनेवाला समय भारतवर्ष का ही होगा। हो भी सकता है लेकिन इसके लिए ‘सिविक सेंस’ को अंगीकार करना जरूरी है। हम अपना घर तो साफ करते रहें लेकिन अपने पीछे के अहाते को कूड़ादान मानकर कचरा फेंकते रहें तो कैसे तरक्की करेंगे! मकान के आसपास का परिसर स्वच्छ रखना भी तो देशसेवा है, देश की तरक्की में योगदान है।
सड़कों पर कर्ण-कर्कश हॉर्न के उपयोग से परहेज करना, सार्वजनिक स्थलों पर गलाफाड़ आवाज में बातें नहीं करना, बुजुर्गों को प्राथमिकता देना, कतार में संयम दिखाना भी नागरिक संवेदनाओं का ही हिस्सा है। इन्हें हमें अंगीकृत करने की जरूरत है। जापानी नागरिकों ने इस तरह के आचरण को अपनी संस्कृति बना लिया है. इसी वजह से जापानी दर्शक स्टेडियम साफ करने में जुटे रहे।
देश का हर नागरिक जब ‘स्वच्छ भारत’ को अपना मिशन मानेगा, तभी देश किसी दर्पण की तरह चमकेगा। जापानियों का यह छोटा सा काम कैसी अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिला सकता है, इसका यह जीवंत उदाहरण है। पूरी दुनिया को जापानियों के इस गुण से सीख लेनी चाहिए।