अभिलाष खांडेकर
गुजरात की राजधानी और ऐतिहासिक शहर अहमदाबाद, पर्यावरण-अनुकूल होने के साथ-साथ तेजी से बढ़ते व्यावसायिक केंद्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा है. कल को यह भारत की ‘खेल राजधानी’ बन सकता है, और मुंबई, दिल्ली से यह दर्जा छीन सकता है, क्योंकि यहां कई वैश्विक खेल आयोजन होने वाले हैं, और दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम में विश्व कप क्रिकेट चैंपियनशिप भी पहले ही खेली जा चुकी है. इसका श्रेय निस्संदेह भारतीय क्रिकेट संगठन के पूर्व सचिव और अब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट संघ के अध्यक्ष जय शाह को जाता है, जिन्होंने अपने प्रिय शहर को एक नया रूप दिया है.
पिछले पांच-छह सालों में मैंने उस चारदीवारी वाले शहर की कई यात्राएं की हैं, जिसे कभी कर्णावती के नाम से जाना जाता था. अहमदाबाद को साबरमती नदी का आशीर्वाद प्राप्त है जो वहां के शहरी जीवन में एक सुंदर प्राकृतिक आयाम जोड़ती है. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 1997 में एक पुरानी नदी के किनारों के आसपास नदी तट विकास परियोजना को गति दी थी; पहले से ही गठित रिवर फ्रंट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन को नदी के दोनों किनारों के सौंदर्यीकरण के लिए भारी धनराशि (कुछ लोग कहते हैं कि 1500-2000 करोड़ रुपए) उपलब्ध कराई गई थी, जिससे काम लगातार जारी रहा.
नदी विशेषज्ञों ने रिवर फ्रंट अवधारणा की आलोचना की थी, जो - सही हो या गलत - अब पूरे देश में लोकप्रिय हो रही है. किनारे पर कई बाग-बगीचे विकसित किए गए हैं और यहां की हरियाली गुजराती नागरिकों और बाहरी पर्यटकों को सुकून देती है.
हालांकि जुड़वां शहरों गांधीनगर और अहमदाबाद में जिस चीज ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वह थी उनकी चौड़ी सड़कें, अच्छी तरह से लगाए गए पेड़ और तुलनात्मक रूप से कम ट्रैफिक जाम और जलभराव. बेशक, पुराने शहर की अपनी गंभीर समस्याएं हैं. यहां बड़ी संख्या में तोते और मोर देखने को मिल जाते हैं, जो आपको मुंबई या इंदौर में आसानी से नहीं मिलते.
मेरे जैसे पक्षी प्रेमी के लिए, राष्ट्रीय पक्षी को व्यस्त ‘अटीरा’ (अहमदाबाद वस्त्र उद्योग अनुसंधान संघ) इलाके में बड़ी संख्या में निडरता से विचरण करते और बैठते देखना एक अद्भुत नजारा था, जहां मैंने उन्हें पहली बार 70 के दशक में अपने फुफेरे भाई डॉ. अशोक गर्दे के खूबसूरत घर में बचपन में देखा था. वे उस समय ‘अटीरा’ के निदेशक थे और अपने समय के एक शीर्ष कपड़ा विशेषज्ञ थे.
संख्यात्मक रूप से देखें तो इस 'टेक्सटाइल सिटी’ में पेड़ों की संख्या कम है, लेकिन कई जगहों पर घासफूस या झाड़ियां असामान्य रूप से बड़ी संख्या में तोते और मोरों को आकर्षित करते दिखाई देते हैं. पुराने पेड़ों के साथ-साथ नए पेड़, मुख्यतः नीम के पेड़, मुख्य सड़कों और अंदर की छोटी सड़कों के किनारे बहुतायत में दिखाई देते हैं. नीम के पौधे नए लग रहे थे. कुछ स्थानीय विशेषज्ञों ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि पिछला वृक्षारोपण अभियान विफल रहा, क्योंकि इसमें गए गए लगभग 40 प्रतिशत पेड़ ही बचे थे. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अगले अभियानों में अधिक से अधिक पौधे जीवित रहें.
अगर शहर एक दशक में ओलंपिक खेलों की मेजबानी की योजना बना रहा है, तो अहमदाबाद नगर निगम, जिसे एक कुशल स्थानीय निकाय कहा जाता है, को विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए और भी ज्यादा पेड़ लगाने होंगे तथा काकरिया झील या वस्त्रापुर झील जैसे नए जल निकायों का निर्माण और संरक्षण करना होगा. पौधों का जीवित रहना, जियो-टैगिंग, निगरानी और संरक्षण ऐसे वृक्षारोपण अभियानों को टिकाऊ बनाने में काफी मददगार साबित होंगे. अहमदाबाद में शहरी जैव विविधता में सुधार की और भी गुंजाइश है. अगर इसे आज नहीं बचाया गया तो कल बहुत देर हो सकती है क्योंकि शहर का विस्तार हर दिशा में हो रहा है. मोटर कार आदि की बिक्री बढ़ रही है. भविष्य में आबादी बढ़ेगी, आसमान छूती इमारतों की संख्या बढ़ेगी और बुलेट ट्रेन का इंतजार करने वाले और भी ज्यादा मुंबईकर शहर में आएंगे.
आज जब अहमदाबाद विश्वस्तरीय शहर बनने का लक्ष्य लेकर चल रहा है, तो उसे अपने सुंदर प्राकृतिक जीवों और संसाधनों की देखभाल करनी चाहिए तथा अद्भुत एम्सटर्डम या हरियाली से भरपूर बीजिंग से कुछ बातें सीखनी चाहिए.