Paris Olympics 2024 live update: रंगारंग उद्घाटन समारोह के साथ दुनिया के सबसे बड़े खेल महोत्सव - ओलंपिक 2024 का आगाज फ्रांस की राजधानी पेरिस में हो चुका है. ओलंपिक का यह 33वां संस्करण पेरिस के लिए इसलिए भी खास है, क्योंकि ठीक सौ साल बाद उसे इन खेलों की मेजबानी मिली है. पेरिस खेलों के जरिये फ्रांस के आयोजकों ने पूरी दुनिया को ‘बिंदास खेलो’ का नारा दिया है. ओलंपिक का मकसद हमेशा से ही खेलों के जरिये पूरी दुनिया में शांति और भाईचारा स्थापित करने का रहा है लेकिन समय के साथ-साथ इसकी जगह प्रतिस्पर्धा ने ले ली.
प्रकारांतर से ओलंपिक ज्यादा से ज्यादा पदक जीतकर अपनी ताकत दिखाने का मंच बन गया. अमेरिका, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देश ओलंपिक खेलों में अधिक से अधिक पदक जीतकर अपना वर्चस्व स्थापित करने में जुट गए. आयोजन के चार साल पहले से ही इसकी तैयारी होने लगी. भारत भी इस होड़ में शामिल हो गया.
भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन, देश का खेल मंत्रालय तथा संबद्ध खेलों के महासंघ खिलाड़ियों को ओलंपिक खेलों के लिए तैयार कराने में जुट गए. हालांकि अमेरिका, रूस, चीन जैसे प्रगत राष्ट्रों की तुलना में ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों के पदक जीतने की रफ्तार बेहद धीमी है. ओलंपिक खेलों में भारत का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन पिछले 2020 के टोक्यो ओलंपिक में रहा है.
जहां उसने एक स्वर्ण पदक के साथ कुल सात पदक जीते थे. पेरिस ओलंपिक में देश का 117 सदस्यीय दल शिरकत कर रहा है और भारतीय खेलकूद के कर्ताधर्ताओं ने इस बार पिछले (टोक्यो ओलंपिक) प्रदर्शन से दोगुने पदक जीतने का लक्ष्य रखा है. 140 करोड़ की आबादी वाले देश के लिए यह बहुत बड़ा लक्ष्य तो कतई नहीं है.
बावजूद इसके देश के अनेक खेलकूद जानकारों की मानें तो सबसे पहले भारत के सामने पिछले प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती होगी. दरअसल, हम वास्तविकता को नजरअंदाज नहीं कर सकते. क्रिकेट को धर्म मानने वाले इस देश में आज भी अन्य खेलों के साथ बराबरी का व्यवहार नहीं हो रहा है.
यही कारण है कि डेढ़ दशक तक अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का परचम लहराने वाली दिग्गज बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल को शटलर बनने पर पछतावा करना पड़ता है. हालांकि हम महज क्रिकेट के कर्ताधर्ताओं पर दोषारोपण कर इससे निजात नहीं पा सकते. इसके लिए हमारी मानसिकता में आमूलचूल परिवर्तन करने की जरूरत है.
आज भी अधिसंख्य भारतीय परिवारों की सोच डॉक्टर-इंजीनियर बनाने की ही है. क्रिकेट की बढ़ती लोकप्रियता और अकूत धन के चलते इस खेल की ओर देखने के नजरिये में हल्का-सा परिवर्तन आया है. आज हम भले ही महिला सशक्तिकरण पर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन आज भी लड़कियों को खेलकूद में हिस्सा लेने के लिए परिवार और समाज के साथ जूझना पड़ता है.
भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में बसता है लेकिन खेलकूद की बुनियादी सुविधाओं से देश का ग्रामीण क्षेत्र काफी हद तक वंचित है. कुल मिलाकर, भारत को दुनिया में खेल शक्ति के रूप में स्थापित होने में अभी लंबा वक्त लगेगा. सरकारी अनुदानों पर निर्भर होने से काम नहीं चलेगा बल्कि एक देशव्यापी आंदोलन की जरूरत होगी जिसमें पूरे समाज की सक्रियता बेहद आवश्यक हो जाती है.