ब्लॉग: जीवन की आपाधापी में आप कहीं हँसना तो नहीं भूल चुके?

By मेघना वर्मा | Updated: March 31, 2018 12:37 IST2018-03-31T12:37:09+5:302018-03-31T12:37:09+5:30

सबको अपनी लाइफ से कुछ ना कुछ चाहिए लेकिन हम सभी को उस चीज को पाने के पीछे अपनी खुशियों की कुर्बानी नहीं देनी चाहिए

Have you forgot to live and Smile or both Blog By Meghna Verma | ब्लॉग: जीवन की आपाधापी में आप कहीं हँसना तो नहीं भूल चुके?

ब्लॉग: जीवन की आपाधापी में आप कहीं हँसना तो नहीं भूल चुके?

शायर निदा फाजली ने बहुत खूब कहा है कि "कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं जमीं कहीं आसमाँ नहीं मिलता।" हर आदमी की जिंदगी में कुछ न कुछ परेशानी होती है। किसी को जिन्दगी से कुछ चाहिए किसी को कुछ और, लेकिन अपनी जिंदगी में लोग ना तो बहुत खुश हैं और ना ही संतुष्ट। मैं भी अपने सपनों तक पहुंचने के लिए बहुत परेशान थी। सच कहें तो चिड़चिड़ाने लगी थी, हँसना भूल गयी थी। इसी बीच मैं अपने बचपन का शहर इलाहाबाद छोड़कर दिल्ली आ गयी। इलाहाबाद छोड़ते हुए मेरे मन में थोड़ा आशंका थी, थोड़ा कौतुहल था। तब मुझे नहीं पता था इस शहर में मुझे ऐसे दोस्त-साथी भी मिलेंगे जो मुझे जीवन का इतना बड़ी सीख दे जाएँगे। यहाँ आकर मैंने सीखा की जिंदगी में चाहे जो चल रहा हो, हमें मुस्कुराना नहीं भूलना चाहिए।  

घर से दूर मिला छोटा सा परिवार

अपने शहर से चलकर जब मैं दिल्ली आई थी तो मन में बहुत सारे सवाल थे कि कैसे लोग होंगे, नए लोगों के साथ मैं कैसे ताल-मेल बिठा पाउंगी? इन सभी सवालों के आने का कारण यही था कि मेरे दोस्तों ने मुझे दिल्ली के लोगों के बारे में बहुत सारी बातें बताई थी कि कोई किसी से बात नहीं करता, सब अपने में रहते हैं, किसी को किसी से मतलब नहीं...और भी बहुत कुछ। शहर आते ही में जिस पीजी (पेइंग गेस्ट) में रुकी वहां की लड़कियों से घुलना-मिलना थोड़ा मुश्किल सा लग रहा था। नए लोग, सबके अलग ग्रुप, मुझे लगा शायद मैं इन सब के बीच कहीं फिट नहीं हो पाऊँगी, लेकिन कुछ ही दिनों में मैं उनसे इतनी ज्यादा घुल-मिल गयी की आज वही लोग इस अनजान शहर में मेरे सबसे करीबी बन गए हैं। 

लाड-प्यार से पल रही हूं मैं

एक पूरे परिवार की बात करें तो उसमें केयर करने वाली मां, प्यार करने वाले पिता और हमेशा साथ देने वाले भाई-बहन होते हैं। मेरे पीजी के छोटे से परिवार में भी हम ऐसे 11 लोग हैं। जिनमें से कुछ मुझसे बड़ी और कुछ मेरे बराबर की ही लड़कियां हैं। पहले दिन जिस लड़की से मेरी अनबन हुई थी वो ही आज मेरा सबसे ज्यादा ख्याल रखने वाली लड़की है। रात को बिना खाना खाए सो जाती हूं तो सामने वाले कमरे से आकर मुझसे यही पूछती हैं कि कोई परेशानी तो नहीं है, खाना क्यूं नहीं खा रही? कभी बहुत परेशान होती हूं तो उन्हीं लोगों के साथ बैठ जाती हूं, कभी बीमार हुई तो उन्हीं के साथ डॉक्टर के पास चली जाती हूँ, जितने खुश मिजाज ये लोग हैं उतना ही मुझे खुश रखने की कोशिश भी करते हैं। इस नए घर में मैं सबसे छोटी हूँ तो आप कह सकते हैं कि मुझे यहां बहुत लाड-प्यार से रखा जा रहा है। 

सपनों को पाने के पीछे खुशियों की कुर्बानी नहीं

हमारे पीजी के छोटे से परिवार में भी सभी लड़कियों के अपने अलग ख्वाब हैं, सबको अपनी लाइफ से कुछ ना कुछ चाहिए लेकिन हम सब उस चीज को पाने के पीछे अपनी खुशियों की कुर्बानी नहीं देते। अपने काम और ऑफिस में काम के बोझ तले चाहे जितना दबे हों लेकिन शाम को घर लौटकर एक साथ हंसना नहीं भूलते। साथ खाते हैं साथ फ़िल्में देखते हैं और साथ ही एक दूसरे का सुख-दुख भी बांटते हैं। इन सारी चीजों का दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। ऑफिस के खराब मूड से निकलकर पीजी जाने में खुशी होती है, लगता हैं हां कोई है जिनसे मिल के भले ही हम घर के निजी मामले नहीं शेयर कर सकते लेकिन अपने दिमाग को हल्का जरूर कर सकते हैं। ऐसे में गीतकार शैलेंद्र की पंक्तियाँ याद आती हैं- 

किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
किसी के वासते हो तेरे दिल में प्यार
जीना इसी का नाम है

Web Title: Have you forgot to live and Smile or both Blog By Meghna Verma

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