नशे के विरुद्ध जागरूकता में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण, संजय द्विवेदी का ब्लॉग
By प्रो. संजय द्विवेदी | Published: July 3, 2021 03:37 PM2021-07-03T15:37:27+5:302021-07-03T15:39:30+5:30
नशा एक इंसान को अंधेरी गली में ले जाता है, विनाश के मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है और उसके बाद उस व्यक्ति की जिंदगी में बर्बादी के अलावा कुछ नहीं बचता.
बौद्ध दर्शन में संसार की जटिलता को समझाने के लिए बुद्ध ने चार आर्यसत्यों की बात की है. ये सत्य हैं- संसार में दुख है. दुख का कारण है. इसका निवारण है और इसके निवारण का मार्ग भी है.
बुद्ध ने दुख के निवारण के लिए अष्टांग मार्ग सुझाया था, जिसमें सम्यक दृष्टि से लेकर समाधि तक के आठ सोपान हैं. भारत में नशे की समस्या को अगर इन चार आर्यसत्यों की कसौटी में कसकर समझना हो तो पहले दो बिंदुओं, यानी भारत में नशा है और नशे का कारण भी है, इस पर कोई विवाद नहीं है.
लेकिन बाद के दो सत्यों को अगर हम देखें, तो बेहद कम लोग हैं जो नशे के निवारण का मार्ग अपनाते हैं और इसका निवारण पूर्ण रूप से करते हैं. किसी परिवार का बेटा या बेटी नशे के दलदल में फंस जाते हैं तो सिर्फ वो व्यक्ति नहीं, बल्किउसका पूरा परिवार तबाह हो जाता है. पिछले दिनों भारत के प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदीजी का एक किस्सा मुझे पढ़ने को मिला.
इस किस्से में प्रधानमंत्नी लिखते हैं, ‘जब मैं गुजरात में मुख्यमंत्नी के रूप में काम करता था, तो कई बार मुझसे हमारे अच्छे-अच्छे अफसर मिलने आते थे और छुट्टी मांगते थे. तो मैं पूछता था कि क्यों? पहले तो वो बोलते नहीं थे, लेकिन जरा प्यार से बात करता था तो बताते थे कि बेटा बुरी चीज में फंस गया है. उसको बाहर निकालने के लिए ये सब छोड़-छाड़ कर, मुझे उसके साथ रहना पड़ेगा.
मैंने देखा था कि जिनको मैं बहुत बहादुर अफसर मानता था, उनका भी सिर्फ रोना ही बाकी रह जाता था.’ इस समस्या की चिंता सामाजिक संकट के रूप में करनी होगी. हम जानते हैं कि एक बच्चा जब इस बुराई में फंसता है, तो हम उस बच्चे को दोषी मानते हैं. जबकि सच यह है कि नशा बुरा है. बच्चा बुरा नहीं है, नशे की लत बुरी है. हम आदत को बुरा मानें, नशे को बुरा मानें और उससे दूर रखने के रास्ते खोजें.
अगर हम बच्चे को दुत्कार देंगे, तो वो और नशा करने लग जाएगा. ये अपने आप में एक मनोवैज्ञानिक-सामाजिक और चिकित्सकीय समस्या है. और उसको हमें मनोवैज्ञानिक-सामाजिक और चिकित्सकीय समस्या के रूप में ही देखना पड़ेगा. नशा एक इंसान को अंधेरी गली में ले जाता है, विनाश के मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है और उसके बाद उस व्यक्ति की जिंदगी में बर्बादी के अलावा कुछ नहीं बचता.
युवाओं को नशे के खिलाफ जागरूक करने में मीडिया की अहम भूमिका है और मीडिया अपना ये रोल बखूबी निभा रहा है. आज मीडिया को युवाओं का सही मार्गदर्शक बनकर उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की आवश्यकता है. 18वीं शताब्दी के बाद से, खासकर अमेरिकी स्वतंत्नता आंदोलन और फ्रांसीसी क्रांति के समय से जनता तक पहुंचने और उसे जागरूक कर सक्षम बनाने में मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. मीडिया अगर सकारात्मक भूमिका अदा करे तो किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक रूप से समृद्ध बनाया जा सकता है.
वर्तमान समय में मीडिया की उपयोगिता, महत्व एवं भूमिका निरंतर बढ़ती जा रही है. मीडिया समाज को अनेक प्रकार से नेतृत्व प्रदान करता है. इससे समाज की विचारधारा प्रभावित होती है. मीडिया को प्रेरक की भूमिका में भी उपस्थित होना चाहिए, जिससे समाज एवं सरकारों को प्रेरणा व मार्गदर्शन प्राप्त हो. आज नशा देश की गंभीर समस्या बनता जा रहा है.
समाज से नशे के खात्मे के लिए सामाजिक चेतना पैदा करने की जरूरत है और यह कार्य मीडिया के द्वारा ही संभव है. नशे के खात्मे के लिए हम सबको एकजुट होना होगा, ताकि नशामुक्त समाज की रचना की जा सके. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक दिन में 11 करोड़ रुपए की सिगरेट पी जाती है. इस तरह एक वर्ष में 50 अरब रुपए हमारे यहां लोग धुएं में उड़ा देते हैं.
हमारे यहां सदियों से पूर्वजों ने कुछ बातें बड़ी विद्वत्तापूर्ण कही हैं. तभी तो उनको स्टेट्समैन कहा जाता है. हमारे यहां कहा गया है कि ‘5 वर्ष लौ लीजिये/ दस लौं ताड़न देय/ सुत ही सोलह वर्ष में/ मित्न सरिज गनि देय.’ यानी बच्चे की 5 वर्ष की आयु तक माता-पिता प्रेम और दुलार का व्यवहार रखें, इसके बाद जब पुत्न 10 वर्ष का होने को हो, तो उसके लिए अनुशासन होना चाहिए.
जब बच्चा 16 साल का हो जाए तो उसके साथ मित्न जैसा व्यवहार होना चाहिए. खुलकर बात होनी चाहिए. मुङो लगता है कि हमारे पूर्वजों द्वारा कही गई ऐसी अनेक बातों का उपयोग हमें अपने पारिवारिक जीवन में करना चाहिए. मीडिया का आज एक महत्वपूर्ण अंग है सोशल मीडिया.
हममें से जो लोग सोशल मीडिया में एक्टिव हैं, वे सब मिलकर ड्रग फ्री इंडिया हैशटैग के साथ एक आंदोलन चला सकते हैं. क्योंकि आज ज्यादातर बच्चे सोशल मीडिया से भी जुड़े हुए हैं. प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने नशा मुक्ति के खिलाफ मुहिम की शुरुआत की है. मीडिया को नशामुक्त समाज बनाने की दिशा में अपने प्रयासों में तेजी लाने की आवश्यकता है.