ब्लॉग: अपने भीतर की मनुष्यता को रखना होगा जीवंत 

By विश्वनाथ सचदेव | Updated: October 19, 2024 06:43 IST2024-10-19T06:43:01+5:302024-10-19T06:43:09+5:30

यह देश 140 करोड़ भारतीयों का है, हम सबका है

You have to keep your inner humanity alive | ब्लॉग: अपने भीतर की मनुष्यता को रखना होगा जीवंत 

ब्लॉग: अपने भीतर की मनुष्यता को रखना होगा जीवंत 

आजादी से पहले और आजादी प्राप्त करने के बाद भी अक्सर हमारे यहां धर्म के नाम पर समाज को बांटने का काम राजनीतिक ताकतें करती रही हैं. सच तो यह है कि सांप्रदायिकता और जातीयता के नाम पर वोटों की राजनीति सब कर रहे हैं. क्या यह सच्चाई नहीं है कि हमारे राजनीतिक दल उम्मीदवारों के चयन का आधार ‘जीतने की संभावना’ को बताकर जातीयता या धर्म का ही सहारा लेते हैं.

कौन-सा दल ऐसा है जो अपना उम्मीदवार तय करने के लिए यह नहीं देखता कि क्षेत्र विशेष में किस जाति या धर्म के लोग अधिक प्रभावशाली हैं? यह एक पीड़ादायक सच्चाई है कि विविधता में अपनी ताकत देखने वाला हमारा देश धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्रीयता आदि के आधार पर भीतर ही भीतर लगातार बंटता जा रहा है? हमारे राजनेता कुछ भी कहें, पर राजनीतिक नफे-नुकसान का गणित अक्सर इन्हीं आधारों पर तय होता है. यह एक शर्मनाक सच्चाई है. पर कितनों को शर्म आती है इस सच्चाई पर?

सच तो यह है कि हम इस सच्चाई से रूबरू होना ही नहीं चाहते. यदि ऐसा न होता तो कभी तो हम अपने राजनेताओं से पूछते कि उनकी कथनी और करनी में इतना अंतर क्यों है? क्यों अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए वे धर्म या जाति के नाम पर बंटने के खतरों को समझना नहीं चाहते?  हाल ही में एक मुकदमे की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने यह आशा व्यक्त की थी कि धर्म को राजनीति से दूर रखा जाएगा. पर देश ने यह आशा कब नहीं की थी? और कब उसकी यह आशा पूरी हुई?

जब हमने आजादी पाई थी तो अपने लिए धर्मनिरपेक्षता का रास्ता चुना था. आज भी कुल मिलाकर देश की जनता सर्वधर्म समभाव के आदर्श में ही विश्वास करती है. जीवन में विश्वास और धर्म का अपना स्थान है- इन्हें राजनीतिक नफे-नुकसान के तराजू पर नहीं तोला जाना चाहिए. पर दुर्भाग्य से ऐसा करने वालों की संख्या बढ़ रही है.  

यह देश 140 करोड़ भारतीयों का है, हम सबका है. हम किसी भी धर्म को मानने वाले क्यों न हों, मूलत: हम सब भारतीय हैं. हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि हम सब धर्मों को आदर की दृष्टि से देखते हैं. ईश्वर एक है, धर्म उस तक पहुंचने का मार्ग हैं.

मार्ग भले ही अलग-अलग हों, पर सब पहुंचाते एक ही लक्ष्य पर हैं. महात्मा गांधी जब ‘सबको सन्मति दे भगवान’ वाली बात कहते थे तो मनुष्य मात्र के कल्याण की सोच थी इसके पीछे. अपने भीतर के मनुष्य को जागृत रखना ही हमारे अस्तित्व की सबसे महत्वपूर्ण शर्त है.

Web Title: You have to keep your inner humanity alive

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