रमेश ठाकुर का ब्लॉग: कौओं का नदारद होना चिंताजनक

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 23, 2019 06:41 IST2019-09-23T06:41:06+5:302019-09-23T06:41:06+5:30

कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के संरक्षक वैज्ञानिक केनेथ रोजेनबर्ग बताते हैं कि मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन ने पक्षियों को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाई है. विशेषकर कौवे, तोते, गिद्ध, गौरैया जैसे पक्षियों को. समूची दुनिया में पक्षियों की आबादी लगभग एक-तिहाई खत्म हो चुकी है.

Worrying of the missing of crows | रमेश ठाकुर का ब्लॉग: कौओं का नदारद होना चिंताजनक

प्रतीकात्मक फोटो

Highlightsसबसे पहले सामाजिक और सरकारी स्तर पर लोगों को जागरूक करना पड़ेगा.खेती-बाड़ी में कीटनाशकों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाना होगा.

श्राद्ध के वक्त अब कौवे दिखाई नहीं देते, जबकि श्रद्ध पक्ष से कौओं का सीधा संबंध होता है. पौराणिक मान्यता है कि श्रद्घ में जो व्यंजन बनाए जाते हैं उन्हें पितरों तक पहुंचाने का काम कौवे ही करते  आए हैं. विगत कुछ वर्षो से कौओं की संख्या में निरंतर कमी देखने को मिल रही है. ग्रामीण इलाकों में अब भी वे कहीं-कहीं दिख जाते हैं. पर, शहरी क्षेत्रों में वे लुप्तप्राय हो गए हैं.   

कौओं ही नहीं बल्कि दूसरे बेजुबान पक्षियों की आबादी भी घट रही है, जिसके लिए हम मनुष्यों की हिमाकत प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार है. पक्षियों के रहने और खाने की जगहों को नष्ट कर दिया गया है. पक्षियों के ठिकाने कच्चे घरों की छत हुआ करते थे, वे अब नदारद हैं. पेड़ों पर भी इनका निवास होता था, वह भी लगातार काटे जा रहे हैं. 

वर्तमान की आधुनिक सुविधाओं ने इंसानी जीवन को तो सुरक्षित कर दिया है पर प्रकृति से छेड़छाड़ और धरती के अंतहीन दोहन ने बेजुबान जीवों का जीवन मुश्किल में डाल दिया है. यही कारण है कि पशु-पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियां खत्म हो गई हैं और कई अन्य खत्म होने के कगार पर पहुंच गई हैं. 

कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के संरक्षक वैज्ञानिक केनेथ रोजेनबर्ग बताते हैं कि मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन ने पक्षियों को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाई है. विशेषकर कौवे, तोते, गिद्ध, गौरैया जैसे पक्षियों को. वे बताते हैं कि समूची दुनिया में पक्षियों की आबादी लगभग एक-तिहाई खत्म हो चुकी है. सवाल उठता है कि ऐसी परिस्थिति में इन पक्षियों को कैसे बचाया जाए?

सबसे पहले सामाजिक और सरकारी स्तर पर लोगों को जागरूक करना पड़ेगा. खेती-बाड़ी में कीटनाशकों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाना होगा. साथ ही पक्षियों के उन तमाम प्राकृतिक आवासों को प्रोत्साहित करना होगा जिसके जरिए उनके रहन-सहन को माकूल तौर पर बढ़ावा मिल सके. तमाम ऐसे प्रयास हैं जिनसे पक्षियों की बची हुई प्रजातियों को बचाया जा सकता है.

Web Title: Worrying of the missing of crows

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