देवेंद्रराज सुथार
हर वर्ष 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस मनाया जाता है. यह दिन उन अनमोल धरोहरों की स्मृति और सम्मान का अवसर है, जो केवल पत्थर, ईंट और स्थापत्य का ढांचा नहीं बल्कि हमारी सभ्यता के समय-साक्षी हैं. ये धरोहरें बीते युगों की जीवनशैली, कला, विज्ञान, संस्कृति और सामाजिक सोच की ऐसी निशानियां हैं, जो आज भी हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखती हैं. विश्व विरासत दिवस की शुरुआत वर्ष 1982 में ‘अंतरराष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल परिषद’ द्वारा की गई थी और 1983 में यूनेस्को ने इसे आधिकारिक मान्यता प्रदान की.
इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण के लिए जनमानस में जागरूकता बढ़ाना है. इन स्थलों की पहचान, संरक्षण और संवर्धन के लिए यूनेस्को ने 1972 में ‘विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत संरक्षण अभिसमय’ लागू किया, जिसके तहत दुनियाभर के ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थलों को अंतरराष्ट्रीय दर्जा दिया जाता है.
वर्ष 2024 तक विश्व धरोहर स्थलों की सूची में कुल 1199 स्थल सम्मिलित हो चुके हैं, जिनमें 933 सांस्कृतिक, 227 प्राकृतिक और 39 मिश्रित स्थल हैं. भारत के कुल 43 स्थल विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित हैं, जिनमें 35 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित स्थल हैं.
भारत की यह सूची ताजमहल से लेकर अजंता-एलोरा की गुफाओं, चोल मंदिरों, कुतुब मीनार, फतेहपुर सीकरी, महाबलीपुरम के प्राचीन स्मारकों, काजीरंगा और सुंदरबन के जैव विविधता से समृद्ध राष्ट्रीय उद्यानों तक फैली हुई है. लेकिन इन धरोहरों के सामने संकट के बादल भी लगातार मंडरा रहे हैं. जलवायु परिवर्तन, बाढ़, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं हों या प्रदूषण, अतिक्रमण, युद्ध, आतंकवाद और पर्यटन के बढ़ते दबाव जैसे मानवीय कारण, सभी ने धरोहरों को खतरे में डाल दिया है. यूनेस्को की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में 56 धरोहर स्थल ‘खतरे में पड़ी धरोहर’ की सूची में हैं.
इनमें सीरिया के पाल्मायरा, यूक्रेन के कीव, वेनिस की डूबती गलियां जैसी विरासतें शामिल हैं. भारत में भी स्थिति चिंताजनक है. ताजमहल की दीवारें वायु प्रदूषण से पीली पड़ती जा रही हैं, अजंता-एलोरा की गुफाओं की नाजुक चित्रकला पर्यटकों की लापरवाही से प्रभावित हो रही है और वाराणसी जैसे ऐतिहासिक नगर अतिक्रमण व अव्यवस्थित विकास के दबाव में अपनी पहचान खो रहे हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और राज्य सरकारें धरोहरों के संरक्षण हेतु कई योजनाएं चला रही हैं, लेकिन स्थानीय समुदायों और नागरिकों की भागीदारी के बिना यह प्रयास अधूरे हैं.
धरोहर संरक्षण को प्रभावी बनाने के लिए स्कूलों में इसे शिक्षा का हिस्सा बनाना, पर्यटकों के लिए सख्त आचार संहिता तय करना, डिजिटल तकनीक जैसे ड्रोन और सेंसर से निगरानी बढ़ाना और स्थानीय लोगों को संरक्षण अभियानों में आर्थिक व सामाजिक रूप से जोड़ना आवश्यक है.