राजू पांडेय
15 मार्च को मनाया जाने वाला विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस उपभोक्ताओं के अधिकारों एवं उनकी आवश्यकताओं के विषय में वैश्विक स्तर पर जागरूकता उत्पन्न करने का एक अवसर है. यही वह तारीख थी जब 1962 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी ने अमेरिकी कांग्रेस को उपभोक्ता अधिकारों के महत्व से अवगत कराते हुए इनकी रक्षा पर बल दिया था.
उपभोक्ता आंदोलन ने पहली बार इस तिथि को 1983 में चिन्हित किया. इस वर्ष कंज्यूमर इंटरनेशनल के 100 देशों में फैले हुए 200 कंज्यूमर समूहों ने ‘फेयर डिजिटल फाइनेंस’ को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस की थीम के रूप में चुना है. कंज्यूमर इंटरनेशनल यह महसूस करता है कि तेजी से बढ़ती डिजिटल बैंकिंग जहां उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिए नए अवसर उत्पन्न कर रही है वहीं इसके तीव्र प्रसार के कारण सर्वाधिक संवेदनशील समूहों के पीछे छूट जाने का खतरा भी बना हुआ है.
आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए साइबर फ्रॉड तब घातक सिद्ध होते हैं जब उनकी जिंदगी भर की जमा पूंजी पल भर में गायब हो जाती है.
फेयर डिजिटल फाइनेंस उपलब्ध कराना सरकारों और सेवा प्रदाताओं के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती रहा है. वित्तीय सेवाओं का स्वरूप तेजी से डिजिटल हुआ है. 2007 से 2009 के मध्य आए वित्तीय संकट के बाद नए स्टार्टअप्स और वित्तीय कंपनियों ने आम जनता एवं विभिन्न व्यवसायों को सीधे वित्तीय उत्पाद एवं सेवाएं देना प्रारंभ कर दिया.
धीरे-धीरे फिनटेक की अवधारणा सामने आई. फिनटेक वह बिंदु है जहां पर वित्तीय सेवाओं और तकनीक का मिलन होता है. मोबाइल आधारित इंटरनेट सेवा और ई-कॉमर्स ने फिनटेक के प्रसार में बहुत बड़ा योगदान दिया है. फिनटेक सेवाओं का स्वरूप बहुत व्यापक है. इनमें बचत, निजी वित्तीय प्रबंधन सुविधा, निवेश और संपदा प्रबंधन, उधार एवं अनसिक्योर्ड क्रेडिट, मोर्टगेज, भुगतान, धन का प्रेषण, ई-कॉमर्स हेतु डिजिटल वॉलेट उपलब्ध कराना, बीमा, क्रिप्टो करेंसी एवं ब्लॉकचेन्स आदि विविध प्रकार की सेवाएं शामिल हैं.
मैकेंजी का आकलन है कि वैश्विक स्तर पर कम से कम 2000 फिनटेक स्टार्टअप्स परंपरागत एवं नई वित्तीय सेवाएं उपलब्ध करा रहे हैं जबकि लगभग 12000 फिनटेक फर्म्स अस्तित्व में हैं.
एक्सेंचर का 2020 का सर्वेक्षण दर्शाता है कि अब 50 प्रतिशत उपभोक्ता हफ्ते में कम से कम एक बार मोबाइल एप्प या वेबसाइट के जरिए अपने बैंक से लेनदेन करते हैं जबकि दो वर्ष पहले ऐसे उपभोक्ताओं की संख्या 32 प्रतिशत थी. दरअसल कोविड-19 के कारण डिजिटल लेनदेन लगभग अनिवार्य बन गया. हमारे देश के ग्रामीण इलाकों में जहां डिजिटल साक्षरता बहुत कम है और डिजिटल संसाधनों का अभाव है वहां भी लोग डिजिटल लेनदेन के लिए बाध्य हो गए.
इस कारण डिजिटल बैंकिंग और डिजिटल लेनदेन में तो बड़ी वृद्धि हुई किंतु साथ ही साइबर फ्रॉड, फिशिंग और डाटा चोरी एवं एक विशेष उद्देश्य से एकत्रित डाटा का अन्य उद्देश्य के लिए प्रयोग किए जाने की घटनाएं बढ़ीं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े भी यह दर्शाते हैं कि कोविड-19 ने लोगों को डिजिटल लेनदेन के लिए बाध्य किया और इस कारण साइबर अपराधियों की बन आई. वर्ष 2019 में ऑनलाइन फ्रॉड के लगभग 2000 मामले दर्ज हुए थे जो 2020 में बढ़कर चार हजार की संख्या को पार कर गए.
फेयर डिजिटल फाइनेंस का लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है जब सरकार की नियामक संस्थाओं से उपभोक्ता संगठन संवाद करें और उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण को उन तक पहुंचाएं. यह भी आवश्यक है कि विधि निर्माण हेतु गठित निकायों और समितियों की बैठकों में उपभोक्ता संगठनों को निमंत्रित किया जाए और उनसे सूचनाएं एवं आंकड़े प्राप्त किए जाएं. उपभोक्ता शिकायतों की प्रकृति का अध्ययन किया जाए जिससे यह ज्ञात हो सके कि किस प्रकार की शिकायतें सर्वाधिक हैं और तद्नुसार नई नीतियां निर्मित की जा सकें.
भविष्य ग्रीन फाइनेंस का है. उपभोक्ता संगठन वर्तमान पारंपरिक वित्तीय सेवाओं के ग्रीन फाइनेंस में बदलाव के संवाहक बन सकते हैं और सेवा प्रदाताओं, सरकारों तथा नियामकों को उपभोक्ता केंद्रित नीति बनाने को प्रेरित कर सकते हैं.