ब्लॉग: अल नीनो की वापसी से सूखे का खतरा, बिगड़ेगा मानसून का हाल !
By निशांत | Published: February 15, 2023 08:52 AM2023-02-15T08:52:10+5:302023-02-15T08:52:10+5:30
अल नीनो को खराब मानसून से जोड़ कर देखा जाता है. इसे एक खतरे के तौर पर देखा जाता है. आंकड़ों बताते हैं कि अल नीनो वर्ष होने पर देश में सूखा पड़ने की आशंका करीब 60 प्रतिशत होती है
भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर क्षेत्र की सतह पर निम्न हवा का दबाव होने पर जो स्थिति पैदा होती है, उसे ला नीना कहते हैं. इसकी उत्पत्ति के अलग-अलग कारण माने जाते हैं लेकिन सबसे प्रचलित कारण ये तब पैदा होता है, जब ट्रेड विंड, पूर्व से बहने वाली हवा काफी तेज गति से बहती हैं. इससे समुद्री सतह का तापमान काफी कम हो जाता है. इसका सीधा असर दुनियाभर के तापमान पर होता है और तापमान औसत से अधिक ठंडा हो जाता है.
फिलहाल ला नीना प्रभाव विदाई की ओर है. सागरों के सर्द तापमानों में अनियमितताओं के साथ इनका असर अब खात्मे की तरफ है. नेशनल ओशेनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के ताजा पूर्वानुमानों की मानें तो 21वीं सदी में ला नीना में हुई पहली तिहरी पुनरावृत्ति इस साल होगी, और यह अब तक का सबसे लंबा चलने वाला दौर भी है.
उत्तरी गोलार्द्ध में ला नीना का प्रभाव लगातार तीसरी बार पड़ना एक दुर्लभ घटना है और इसे ‘ट्रिपल डिप’ ला नीना के तौर पर जाना जाता है. आंकड़ों के मुताबिक लगातार तीन बार ला नीना का प्रभाव वर्ष 1950 से अब तक सिर्फ दो ही बार पड़ा है. ऐसा वर्ष 1973-1976 और 1998-2001 के बीच हुआ था.
मगर सबसे ज्यादा फिक्र की बात यह है कि अल नीनो जैसे खतरनाक प्रभाव की वापसी हो रही है. जलवायु परिवर्तन से जुड़े मॉडल्स के अनुमानों के मुताबिक अल नीनो का प्रभाव मई-जुलाई के दौरान लौटने की संभावना है. यह अवधि गर्मी और मानसून के मौसम को आपस में जोड़ती है. मानसून की अवधि जून से सितंबर के बीच मानी जाती है.
मेरीलैंड यूनिवर्सिटी में एमेरिटस प्रोफेसर और आईआईटीबी में अर्थ सिस्टम साइंटिस्ट रघु मुरतुगुड्डे ने कहा ‘‘ला नीना के दौरान उष्णकटिबंधीय प्रशांत द्वारा गर्मी को एक सोख्ते की तरह सोख लिया जाता है और पानी का तापमान बढ़ता है. यही गर्म पानी अल नीनो प्रभाव के दौरान पश्चिमी प्रशांत से पूर्वी प्रशांत तक प्रवाहित होता है. ला नीना के लगातार तीन दौर गुजरने का मतलब यह है कि गर्म पानी की मात्रा चरम पर है और इस बात की पूरी संभावना है कि प्रणाली एक अल नीनो प्रभाव को जन्म देने के लिये तैयार है.
अल नीनो निरपवाद रूप से खराब मानसून से जुड़ा होता है और इसे एक खतरे के तौर पर देखा जाता है. आंकड़ों के मुताबिक अल नीनो वर्ष होने पर देश में सूखा पड़ने की आशंका करीब 60 प्रतिशत होती है. इस दौरान सामान्य से कम बारिश होने की 30 प्रतिशत संभावना रहती है, जबकि सामान्य वर्षा की मात्र 10 फीसद संभावनाएं ही बाकी रहती हैं.