ब्लॉग: देश में भारी बारिश ले आएगा अल-नीनो?
By पंकज चतुर्वेदी | Updated: August 23, 2024 09:53 IST2024-08-23T09:52:54+5:302024-08-23T09:53:50+5:30
अल नीनो का संबंध भारत व ऑस्ट्रेलिया में गरमी और सूखे से है, वहीं ला नीना अच्छे मानसून का वाहक है और इसे भारत के लिए वरदान कहा जा सकता है।

ब्लॉग: देश में भारी बारिश ले आएगा अल-नीनो?
एपीईसी क्लाइमेट सेंटर (एपीसीसी) का दावा है कि सितंबर 2024 से फरवरी 2025 के दौरान ला नीना मौसम आने की संभावना है। उल्लेखनीय है कि इन हालात को एशिया खासकर भारत में अधिक बरसात लाने वाला माना जाता है। यदि यह अनुमान सही हुआ तो आने वाले दिनों में भारत में भारी बरसात हो सकती है।
ला नीना और मानसून का सम्बन्ध वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है। वैसे तो हर दो से सात साल में अल नीनो और ला नीना की परिस्थितियां बनती हैं और इसका असर बरसात के रूप में दिखता है. भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक सन् 1953 से 2023 के बीच कुल 22 ला नीना साल दर्ज किए गए हैं, जिसमें से सिर्फ दो बार यानी साल 1974 और 2000 के मानसून सीजन में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है, जबकि बाकी सालों के मानसून में सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई है।
इससे पहले जून-जुलाई में इस साल भयंकर गर्मी ने अपने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए, खराब मौसम के लिए अल-नीनो को जिम्मेदार माना जा रहा है। बीते कई हफ्तों से पूरा कश्मीर भीषण गर्मी का शिकार है। लेह हो या हिमाचल के ऊपरी हिस्से, सभी जगह जम कर गर्मी हुई और इसका मूल कारक अल-नीनो को माना जा रहा है।
यह तय है कि जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव के चलते मौसम अनियमित या चरम होते रहते हैं लेकिन असल में हमारे देश में मौसम की गति सात समुंदर पार निर्धारित होती है। मौसम में बदलाव की पहेली अभी भी अबूझ है और हमारे यहां कैसा मौसम होगा उसका निर्णय ‘अल नीनो’ अथवा ‘ला नीना’ प्रभाव पर निर्भर होता है। प्रकृति रहस्यों से भरी है और इसके कई ऐसे पहलू हैं जो समूची सृष्टि को प्रभावित तो करते हैं लेकिन उनके पीछे के कारकों की खोज अभी अधूरी ही है।
अल नीनो असल में मध्य और पूर्व-मध्य भूमध्यरेखीय समुद्री सतह के तापमान में नियमित अंतराल के बाद होने वाली वृद्धि है जबकि ‘ला नीना’ इसके विपरीत अर्थात तापमान कम होने की मौसमी घटना को कहा जाता है। दक्षिणी अमेरिका से भारत तक के मौसम में बदलाव के सबसे बड़े कारण अल नीनो और ला नीना प्रभाव ही होते हैं। अल नीनो का संबंध भारत व ऑस्ट्रेलिया में गरमी और सूखे से है, वहीं ला नीना अच्छे मानसून का वाहक है और इसे भारत के लिए वरदान कहा जा सकता है।
भले ही भारत में इसका असर हो लेकिन अल नीनो और ला नीना घटनाएं पेरू के तट (पूर्वी प्रशांत) और ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट(पश्चिमी प्रशांत) पर घटित होती हैं। हवा की गति इन प्रभावों को दूर तक ले जाती है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश के बेहतर जीडीपी वाला भविष्य असल में पेरू के समुद्र तट पर तय होता है।