ब्लॉग: शहरों में लगती आग के आगे आखिर क्यों बेबस है दुनिया?

By अभिषेक कुमार सिंह | Updated: September 26, 2024 12:57 IST2024-09-26T12:55:27+5:302024-09-26T12:57:38+5:30

अब कुछ दफ्तरों में आग से बचाव के तौर-तरीकों की ट्रेनिंग कर्मचारियों को सालाना स्तर पर दी जाती है, लेकिन रिहाइशी बिल्डिंग में ऐसी ट्रेनिंग का अभाव है।

Why is the world helpless in front of the fires in cities? | ब्लॉग: शहरों में लगती आग के आगे आखिर क्यों बेबस है दुनिया?

ब्लॉग: शहरों में लगती आग के आगे आखिर क्यों बेबस है दुनिया?

दुनिया के किसी भी हिस्से में लोग गांव-कस्बों से शहरों में सिर्फ रोजगार के लिए ही नहीं आते हैं। बल्कि बेहतरीन शहरी बुनियादी ढांचा भी उन्हें वहां खींच लाने में एक भूमिका निभाता है। पर यह प्रवृत्ति और इस जैसी कई और वजहें हैं जो अंततः शहरों पर दबाव पैदा कर रही हैं। ये दबाव कई बार खस्ताहाल शहरी नियोजन के रूप में सामने आते हैं। साथ ही, ऐसी अनदेखियों, लापरवाहियों और नियम-कायदों के अभाव के रूप में भी आते हैं- जिन्होंने कई मायनों में शहरों को एक जानलेवा जगह में तब्दील कर दिया है। जैसे ऊंची इमारतों में लिफ्ट का खराब नियोजन या फिर फायर-सेफ्टी के नियमों का पालन नहीं होना।

आग तो जैसे शहरियों के जी का जंजाल बन गई है। बिजली के तारों में शॉर्ट-सर्किट, एयर कंडीशनरों के कंप्रेशर के अचानक फट पड़ने से फैलने वाली और फ्लैटों की बालकनी में मौजूद दीये की लपटों से परदों के जल उठने के बाद घर-बिल्डिंग को ही जला देने वाली घटनाओं ने बहुत-सा नुकसान किया है। ऐसे अग्निकांडों की जड़ में जिन चीजों की भूमिका रहती है, उनमें से एक पर सरकार की नजर इधर गई है।

हाल में में सरकार ने शॉपिंग मॉल्स, हॉस्पिटल, शिक्षण संस्थानों, एयरपोर्ट, रेस्टोरेंट आदि सार्वजनिक जगहों पर प्रयोग में लाए जाने वाले फर्नीचर में अग्निरोधी फैब्रिक (कपड़े, सोफे-कुर्सी की गद्दियां आदि) लगाना जरूरी कर दिया है। यह नियम (जिसे फिलहाल 31 मार्च 2025 तक लागू करने से छूट दी गई है) पिछले साल अक्तूबर 2023 में क्वॉलिटी कंट्रोल ऑर्डर के तहत बनाया गया है। इसमें फर्नीचर के कपड़ों-गद्दी आदि का फैब्रिक ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड के मुताबिक होना जरूरी किया गया है । सार्वजनिक जगहों पर फायर सेफ्टी सुनिश्चित करने की दिशा में यह उपाय कारगर हो सकता है।

इस साल मई 2024 में गुजरात के राजकोट स्थित गेमिंग जोन, राजधानी दिल्ली के विवेक विहार के एक पीडिएट्रिक हॉस्पिटल में ऑक्सीजन सिलेंडर में हुए धमाके से लगी आग के अलावा तमाम कोचिंग सेंटरों, दफ्तरों और फैक्ट्रियों में हुए अग्निकांडों ने साबित किया है कि वहां दुर्घटनावश लगी आग को थामने की बजाय उसे भड़काने वाले इंतजाम ज्यादा रहे हैं। इस आग में घटनास्थल से तुरंत निकासी, फायर टेंडर्स की वहां तक पहुंच के रास्ते, अग्निशामक यंत्रों की मौजूदगी और आग कैसे बुझानी है- लोगों को इसकी

ट्रेनिंग नहीं दिए जाने जैसे कारणों से सैकड़ों-हजारों जानें और बहुमूल्य संपदा खाक होती रही है। इंडिया रिस्क सर्वे 2018 के मुताबिक अग्निकांडों के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे संवेदनशील देश है। इन ज्यादातर घटनाओं में इलेक्ट्रिकल उपकरणों में खामी, जैसे कि ढीली वायरिंग, ओवरलोड, पुराने उपकरण और बेहद ज्वलनशील पॉलियूरेथीन फोम के अलावा साज-सज्जा में प्लास्टिक से बनी चीजों के इस्तेमाल की भूमिका पाई गई है।

मानवीय भूल- जैसे कि बिजली के उपकरणों के नजदीक ज्वलनशील पदार्थों को रख देना या इस्तेमाल के बाद उपकरणों को बंद नहीं करना या उनके प्लग नहीं निकालना भी इसकी एक वजह है। अब कुछ दफ्तरों में आग से बचाव के तौर-तरीकों की ट्रेनिंग कर्मचारियों को सालाना स्तर पर दी जाती है, लेकिन रिहाइशी बिल्डिंग में ऐसी ट्रेनिंग का अभाव है। वहां तो अग्निशामक यंत्रों की भी वर्षों कोई सुध तब तक नहीं ली जाती, जब तक कि कोई हादसा नहीं हो जाता है।

Web Title: Why is the world helpless in front of the fires in cities?

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