दिनकर कुमार का ब्लॉगः ‘पर्यावरण प्रभाव आकलन’ का पूर्वोत्तर में क्यों हो रहा विरोध?

By दिनकर कुमार | Published: August 20, 2020 01:34 PM2020-08-20T13:34:28+5:302020-08-20T13:34:28+5:30

असम के पूर्व मुख्यमंत्नी तरुण गोगोई ने इस मसौदे को निरस्त करने की मांग करते हुए प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी को पत्न लिखा है, ‘अगर यह प्रस्तावित मसौदा ईआईए एक अधिनियम बन जाता है, तो यह इस क्षेत्न के सभी पारिस्थितिक पहलुओं को गंभीर नुकसान पहुंचाएगा.’

Why is the 'Environmental Impact Assessment' being opposed in the North-East? | दिनकर कुमार का ब्लॉगः ‘पर्यावरण प्रभाव आकलन’ का पूर्वोत्तर में क्यों हो रहा विरोध?

फाइल फोटो

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) विरोधी आंदोलन के बाद अब पूर्वोत्तर में ड्राफ्ट पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना का कई प्रमुख समूहों और पार्टियों द्वारा विरोध किया जा रहा है. इसे पूर्वोत्तर के जल-जंगल-जमीन के लिए विनाशकारी बताकर इसके खिलाफ आंदोलन शुरू करने की तैयारी की जा रही है.

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्नालय (एमओईएफसीसी) द्वारा 12 मार्च को जारी किया गया ईआईए, 2020 अगर लागू किया जाता है तो देश भर में प्रभावी होगा और मौजूदा परियोजनाओं की स्थापना या विस्तार/आधुनिकीकरण के संबंध में ईआईए, 2006 को उपसंबद्ध किया जाएगा. पर्यावरण पर प्रस्तावित गतिविधि/परियोजना के प्रभाव का अध्ययन और भविष्यवाणी करने के लिए ईआईए के दिशानिर्देशों का उपयोग किया जाता है. इसे एक परियोजना के लिए विभिन्न विकल्पों की तुलना करने के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है और आर्थिक व पर्यावरणीय लागत और लाभों के सर्वोत्तम संयोजन का प्रतिनिधित्व करने वाले को पहचानने की कोशिश करता है.

ईआईए का मसौदा, 2020 कहता है कि इसका उद्देश्य पूर्व पर्यावरण मंजूरी की प्रक्रिया को ‘ऑनलाइन प्रणाली के कार्यान्वयन के माध्यम से और अधिक पारदर्शी और समीचीन बनाना है, आगे के वितरण, युक्तिकरण, प्रक्रिया का मानकीकरण आदि करना’ है.

लेकिन चूंकि नया मसौदा सार्वजनिक परामर्श के लिए निर्धारित की गई अवधि को कम कर देता है और परियोजनाओं के अनुमोदन की अनुमति देता है इसलिए नागरिक संगठनों को संदेह है कि यह असम और उत्तर-पूर्व के हितों को चोट पहुंचाने के उद्देश्य से लाया गया है और इस क्षेत्न के नाजुक पारिस्थितिक तंत्न को नुकसान पहुंचाएगा. 

असम के पूर्व मुख्यमंत्नी तरुण गोगोई ने इस मसौदे को निरस्त करने की मांग करते हुए प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी को पत्न लिखा है, ‘अगर यह प्रस्तावित मसौदा ईआईए एक अधिनियम बन जाता है, तो यह इस क्षेत्न के सभी पारिस्थितिक पहलुओं को गंभीर नुकसान पहुंचाएगा.’ कांग्रेस नेता ने कहा कि न केवल असम और पूर्वोत्तर के लोग बल्कि हिमाचल, उत्तराखंड, कश्मीर और लद्दाख सहित पूरे हिमालय क्षेत्न के लोग इस अधिसूचना को लेकर बहुत चिंतित हैं. ‘इस अधिसूचना ने प्राधिकरण को किसी भी प्रकार के कदम उठाने की असीमित शक्ति दी है जो हमारे प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए हानिकारक होगा. इस मनमानी शक्ति का बड़े कॉर्पोरेट समूहों द्वारा दुरुपयोग किए जाने की संभावना है.’ गोगोई ने लिखा.

असम विधानसभा में कांग्रेस के विधायक और विपक्ष के नेता देवव्रत सैकिया ने कहा, ‘यह प्रस्तावित कानून मुख्य रूप से आपत्तिजनक है क्योंकि यह पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्नों में परियोजनाओं की वास्तविक मंजूरी का रास्ता खोलता है और समुदायों के हितों को प्रभावित करता है.’ असम विधानसभा में कांग्रेस के विधायक और विपक्ष के नेता देवव्रत सैकिया ने 23 जुलाई को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्नी प्रकाश जावड़ेकर को लिखे एक पत्न में बताया है, ‘निजी कंपनियां भी निजी सलाहकारों की सेवा लेकर अपनी ईआईए रिपोर्ट तैयार कर सकती हैं. यह प्राकृतिक न्याय पर एक आघात है और अपनी भूमि पर स्थानीय लोगों के अधिकारों का हनन है.’ उन्होंने मसौदा ईआईए अधिसूचना 2020 के  वर्तमान स्वरूप को निरस्त करने की मांग की.

सैकिया ने इस क्षेत्न में राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों में पहले से ही खनन/ड्रिलिंग कार्यो के कारण क्षति के मद्देनजर ईआईए, 2020 को असम और उत्तर-पूर्व के लिए ‘बेहद खतरनाक’ बताया. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के मुख्य सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने 25 जुलाई को ट्वीट किया, ‘‘ईआईए ड्राफ्ट, 2020 केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित प्रणालीगत दमन को वैधता प्रदान करता है. यह हिंसक है, शोषणकारी है, सार्वजनिक भागीदारी को दबाता है और जैव विविधता को अपंग करता है. इसका प्रभाव असम और पूर्वोत्तर के लिए अन्यायपूर्ण, अलोकतांत्रिक और पर्यावरण-विरोधी हो सकता है.’’

एमओईएफसीसी के तहत 17 अप्रैल को नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ (एनबीडब्ल्यूएल) ने देहिंग पटकाई वाइल्डलाइफ सेंक्चुअरी में कोयला खनन की अनुमति दी थी, जिससे असम में हंगामा हुआ.

एमओईएफसीसी ने 12 मार्च को ईआईए अधिसूचना, 2020 का मसौदा प्रकाशित किया था, जिसमें 60 दिनों के भीतर जनता से प्रतिक्रिया मांगी गई थी. बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कोरोनो वायरस  के प्रकोप के कारण समय सीमा 11 अगस्त तक बढ़ा दी थी.

Web Title: Why is the 'Environmental Impact Assessment' being opposed in the North-East?

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे

टॅग्स :Indiaइंडिया