भारत में लैंगिक असमानता बड़ी समस्या, हमें आइसलैंड, फिनलैंड, नॉर्वे, न्यूजीलैंड, स्वीडन जैसे देशों से सीखने की जरूरत

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: July 15, 2022 01:18 PM2022-07-15T13:18:12+5:302022-07-15T13:18:12+5:30

भारत में लड़कियों और लड़कों के बीच न केवल उनके घरों में बल्कि हर जगह लिंग असमानता दिखाई देती है. लड़कों को लड़कियों की तुलना में अधिक स्वतंत्रता मिलती है.

Why Gender inequality is big problem in India, need to learn from countries like Iceland, Finland | भारत में लैंगिक असमानता बड़ी समस्या, हमें आइसलैंड, फिनलैंड, नॉर्वे, न्यूजीलैंड, स्वीडन जैसे देशों से सीखने की जरूरत

भारत में लैंगिक असमानता बड़ी समस्या

हमारे यहां नारी को देवी माना जाता है लेकिन सच यह है कि समाज में उनकी स्थिति आज भी अन्य देशों के मुकाबले काफी पीछे है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) द्वारा जारी ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत 146 देशों की सूची में 135वें पायदान पर है. हालांकि पिछले साल की तुलना में देखें तो भारत की स्थिति में थोड़ा सुधार आया है. 
पिछले साल जारी इस इंडेक्स में भारत को 140वें स्थान पर रखा गया था. लैंगिक समानता के मामले में हमारे पड़ोसी कहीं बेहतर स्थिति में हैं. भारत की रैंकिंग इतनी नीचे गिरने की वजह आखिर क्या है? 

इसकी प्रमुख वजहों में एक है आर्थिक गतिविधि में महिलाओं की घटती भागीदारी. दूसरी वजह राजनीतिक स्तर पर प्रतिनिधित्व में कमी और तीसरा प्रमुख कारण है रोजगार के घटते अवसर. प्रत्येक बच्चे का अधिकार है कि उसे उसकी क्षमता के विकास का पूरा मौका मिले. लेकिन लैंगिक असमानता की कुरीति की वजह से उनका विकास ठीक से नहीं हो पाता. 

हमारे यहां लड़कियों और लड़कों के बीच न केवल उनके घरों में बल्कि हर जगह लिंग असमानता दिखाई देती है. लड़कों को लड़कियों की तुलना में अधिक स्वतंत्रता मिलती है. जबकि लड़कियों की स्वतंत्रता में बहुत सारी पाबंदियां होती हैं. इस पाबंदी का असर उनकी शिक्षा, विवाह और सामाजिक रिश्तों, खुद के लिए निर्णय के अधिकार आदि पर पड़ता है. आगे चलकर इसका स्वरूप और व्यापक हो जाता है, नतीजतन कार्यस्थल में मात्र एक चौथाई महिलाओं को ही काम करते पाया जाता है. 

हालांकि कुछ महिलाओं को विश्वस्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली पदों पर  नेतृत्व करते पाया गया है, लेकिन भारत में अभी भी ज्यादातर महिलाओं और लड़कियों को पितृ प्रधान समाज के विचारों, मानदंडों, परंपराओं और संरचनाओं के कारण अपने अधिकारों का पूर्ण रूप से इस्तेमाल करने की स्वतंत्रता नहीं मिली है. समाज में लड़कियों के महत्व को बढ़ाने के लिए पुरुषों, महिलाओं और लड़कों सभी को संगठित रूप से मिलकर चलना होगा. 

समाज  की धारणा और सोच बदलेगी तभी लड़कियों और लड़कों का समान विकास होगा. लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए केंद्रित निवेश और सहयोग की आवश्यकता है. लैंगिक समानता को लेकर भारत को आइसलैंड, फिनलैंड, नॉर्वे, न्यूजीलैंड, स्वीडन और अन्य देशों से सीखने की जरूरत है. आज कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां पर महिलाएं अपनी सफलता के झंडे नहीं गाड़ रही हैं. सेना और विमानन क्षेत्र भी अब अछूता नहीं रह गया है.

 एक तरफ जहां बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारे दिए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कम उम्र में मां बनने वाली लड़कियों की भी कई खबरें आ रही हैं. ये सचमुच चौंकाने वाले तथ्य हैं. मातृ मृत्यु दर और कुपोषण तो बहुत आम है. लड़कियों की शिक्षा, महिलाओं के स्वास्थ्य, रोजगार और उनकी सुरक्षा पर बजट में आवंटन लगातार कम किया जाता रहा है. 

महिलाओं की 48 फीसदी आबादी होने के बावजूद भारत महिलाओं का प्रभावी मानव संसाधन के रूप में उपयोग करने में असफल रहा है. राजनीति में नेतृत्व को लेकर भी महिलाओं को बहुत अधिक अवसर नहीं दिए जा रहे हैं. ये सब ऐसी समस्याएं हैं, जिनका हल किए बिना भारत लैंगिक समानता को हासिल नहीं कर सकता है.

Web Title: Why Gender inequality is big problem in India, need to learn from countries like Iceland, Finland

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