डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: क्यों घसीटते हैं अंबानी और अदानी को...?
By विजय दर्डा | Updated: May 13, 2024 06:33 IST2024-05-13T06:33:52+5:302024-05-13T06:33:52+5:30
आजादी के बाद भारत के निर्माण में उद्योगपतियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन मैं आश्चर्यचकित रह जाता हूं जब कुछ राजनेताओं को औद्योगिक घराने पर हमला करते देखता हूं। आज जिसे देखिए वही अंबानी और अदानी समूह पर ऐसे हमला करता रहता है जैसे इन लोगों ने भारी भ्रष्टाचार किया हो।

फाइल फोटो
बात शुरू करने से पहले मैं आपको एक ऐतिहासिक प्रसंग बताता हूं। इतिहास गवाह है कि आजादी की लड़ाई में बजाज और बिड़ला का महान योगदान रहा है। एक बार रामनाथ गोयनका ने महात्मा गांधी से पूछा कि बापू आपको ऐसा नहीं लगता क्या कि ये दोनों उद्योगपति बजाज और बिड़ला आपको निचोड़ रहे हैं?
बापू ने कहा कि नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता। मुझे तो ऐसा लगता है जैसे मैं उन्हें निचोड़ रहा हूं। आजादी की इतनी बड़ी जंग में कार्यकर्ताओं के आने-जाने, रहने और भोजन के प्रबंध में पैसा लगता है। इसके लिए खासकर ये दोनों परिवार पैसा खर्च कर रहे हैं।
इस प्रसंग को मैं इसलिए याद कर रहा हूं ताकि नई पीढ़ी को यह पता चल सके कि आजादी की लड़ाई में उद्योगपतियों का कितना योगदान रहा है। आजादी के बाद भारत के निर्माण में उद्योगपतियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन मैं आश्चर्यचकित रह जाता हूं जब कुछ राजनेताओं को औद्योगिक घराने पर हमला करते देखता हूं।
आज जिसे देखिए वही अंबानी और अदानी समूह पर ऐसे हमला करता रहता है जैसे इन लोगों ने भारी भ्रष्टाचार किया हो। मैं नहीं जानता कि आरोपों में कितनी सच्चाई होती है लेकिन यदि कोई सच्चाई हो भी तो उसका निर्णय न्यायालय के कठघरे में होना चाहिए, न कि राजनीति के मैदान में!
राहुल गांधी हमेशा यह आरोप चस्पा करते रहे हैं कि अंबानी और अदानी समूह की प्रधानमंत्री के साथ नजदीकी है। आशय यही रहा है कि इनके विकास में सरकारी पक्षपात की भूमिका है। राहुल गांधी को ऐसी बात नहीं करनी चाहिए। धीरूभाई अंबानी के तो इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक से संबंध रहे हैं। दोनों ने एक-दूसरे की मदद की है। उद्योगपति तो वैसे भी अपनी क्षमता के अनुरूप सभी पार्टियों की मदद करते हैं।
दुनिया के हर देश में ऐसा होता है। जापान में उद्योगपति यह तय करते हैं कि किस पार्टी का व्यक्ति प्रधानमंत्री बनेगा। अमेरिका और दक्षिण कोरिया में भी उद्योगपतियों की राजनीति में भूमिका होती है। यह कोई नई बात तो है नहीं! हमारे यहां इस तरह की भी चर्चा होती है कि अंबानी और अदानी मूल रूप से गुजरात के हैं इसलिए उनके प्रति सरकारी रवैया सहानुभूति भरा होता है। मैं इस तरह की शंका को भी दरकिनार करता हूं।
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नया सवाल खड़ा कर दिया है कि राहुल गांधी इन दिनों अंबानी-अदानी का नाम क्यों नहीं ले रहे हैं? उनके पास टेम्पो भर-भर कर पैसा पहुंचा क्या? लोगों को आश्चर्य हुआ कि पीएम ने इस तरह से इन उद्योगपतियों का नाम लिया। मुझे भी इसीलिए इस विषय पर लिखने की जरूरत महसूस हुई।
पीएम की टिप्पणी पर राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस ने पलटवार करने में देरी नहीं की लेकिन सवाल फिर वही है कि हम अपने उद्योगपतियों को राजनीति के मैदान में क्यों घसीटते हैं? क्यों उन्हें भ्रष्टाचारी साबित करने पर तुले रहते हैं?
इस देश में उद्योगपति होना और अपने उद्योग का विकास करना क्या कोई अपराध है? हम यह क्यों भूल जाते हैं कि प्रतिस्पर्धा के इस दौर में उद्योग स्थापित करना, चलाना और उसे एक बड़े मुकाम पर पहुंचाना और समूह को एक बनाए रखना कोई आसान काम नहीं है।
धीरूभाई अंबानी की शानदार परंपरा को मुकेश अंबानी ने आगे बढ़ाया और अंतरराष्ट्रीय स्वरूप दिया लेकिन अनिल अंबानी नहीं बढ़ा पाए। बिड़ला समूह की परंपरा को केवल कुमार मंगलम बिड़ला ही आगे ले जा पाए। अन्य बिड़ला पिछड़ गए। केशुब और हरीश महिंद्रा की शानदार परंपरा को आनंद महिंद्रा ने बढ़ाया।
आज अदानी ने इतने कम समय में जो मुकाम हासिल किया है, वह आसान है क्या? निश्चय ही उद्योगों ने जो मुकाम पाया है, उसमें उनके मालिकों का समर्पण और उनकी तीक्ष्णता का सबसे बड़ा योगदान रहा है। मैंने राजनीति का लंबा दौर देखा है और हर दौर में राजनीतिक नजरिया उद्योगों के विकास का रहा है। पहले हमारे पास दुनिया के स्तर पर अपनी पहचान रखने वाला केवल टाटा और बिड़ला समूह हुआ करता था लेकिन आज दर्जनों कंपनियां दुनिया में भारत का नाम रौशन कर रही हैं।
किसी भी उद्योग को विकसित होने के लिए सरकारी सहयोग की जरूरत होती ही है। जर्मनी, इटली, दक्षिण कोरिया, फ्रांस और जापान जैसे देशों के राष्ट्राध्यक्ष उद्योगपतियों का प्रतिनिधि मंडल लेकर जाते हैं और दूसरे देशों से कहते हैं कि इनका सहयोग कीजिए! हमारे यहां तो यह जुल्म जैसा है! मैं इन दिनों अमेरिका-मैक्सिको की यात्रा पर हूं।
कैलिफोर्निया की जिस सिलिकॉन वैली में मैं हूं, वह ऐसे उद्योगपतियों का गढ़ है जिनमें से कईयों की हैसियत कई देशों की जीडीपी के बराबर है। इसका उल्लेख मैं इसलिए कर रहा हूं ताकि यह बता सकूं कि यहां उद्योगपतियों को कैसे संभाला जाता है, और हमारे यहां क्या हालत है?
कई सारे उद्योगपति भारत छोड़ कर चले गए। यह अच्छी बात नहीं है। आज हिंदुजा, मित्तल, लोहिया, बागड़ी, अनिल अग्रवाल और बहुत से उद्योग या तो ब्रिटेन से या फिर दुबई से अपने समूह का संचालन कर रहे हैं। आखिर क्यों? यदि उद्योग नहीं होंगे तो रोजगार कैसे सृजित होगा? सरकार को टैक्स कहां से मिलेगा?
संदर्भ के लिए बता दें कि भारत के जीडीपी में उद्योगों की प्रत्यक्ष हिस्सेदारी 27 प्रतिशत से ज्यादा है। यदि टैक्स नहीं मिलेगा तो विकास कहां से होगा? सामाजिक विकास के लिए पैसा कहां से आएगा? औद्योगिक संपन्नता के लिए पहली जरूरत है कि हम उद्योगपतियों की टोपी न उछालें बल्कि सच्चे अर्थों में उनके मददगार बनें। उद्योग बढ़ेंगे तो देश बढ़ेगा।