अभिलाष खांडेकर ब्लॉग: आखिर क्यों नहीं रुकतीं सड़क दुर्घटनाएं ?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: July 8, 2023 14:50 IST2023-07-08T14:47:40+5:302023-07-08T14:50:04+5:30
उद्योग मंत्रालय के अनुसार, भारत सबसे बड़ा दोपहिया वाहन निर्माता है. ऑटोमोबाइल उद्योग का लक्ष्य अगले साल तक अपना कारोबार दोगुना कर 15 लाख करोड़ रु. तक पहुंचाने का है. दूसरे शब्दों में, सड़कों पर बहुत अधिक वाहन होंगे।

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भारत की छवि को स्याह करने वाली अन्य अनेक समस्याओं में बहुमूल्य जिंदगियां खत्म करने वाली सड़क दुर्घटनाएं शीर्ष पर हैं. सड़क सुरक्षा सबसे अधिक उपेक्षित क्षेत्रों में से एक है जिसके परिणामस्वरूप देश में सालाना लगभग 1.50 लाख मौतें होती हैं और फिर भी यह तत्काल ध्यान देने योग्य राष्ट्रीय मुद्दा नहीं माना जाता।
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, जो नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में एक लगातार अच्छा प्रदर्शन करने वाले कैबिनेट मंत्री हैं, सड़क दुर्घटनाओं से निपटने में अपने मंत्रालय के प्रयासों के बारे में बार-बार बताते रहे हैं (और विफलता भी व्यक्त करते रहे हैं). फिर भी हम एक राष्ट्र के रूप में, असामयिक मौतों के मामले में विश्व स्तर पर सबसे खराब स्थिति में बने हुए हैं, जहां औसतन हर घंटे 47 दुर्घटनाएं और 18 मौतें होती हैं.
क्या इसे हल करना हमारे नेताओं और नीति निर्माताओं के लिए इतनी कठिन चुनौती है? क्या हम इन मानवीय मौतों को नियंत्रित नहीं कर सकते? सड़क दुर्घटनाएं क्यों होती हैं, यह समझना कोई रॉकेट विज्ञान नहीं है यह बात तो तय है, फिर भी हालात बदतर हैं.
भारत एक विकासशील देश है जहां जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है और हमारी सामाजिक समझ, शिक्षा की कमी और भ्रष्टाचार के कारण चीजें जटिल हो रही हैं. सड़क पर होने वाली मौतों का इन कारकों से सीधा संबंध है.
उद्योग मंत्रालय के अनुसार, भारत सबसे बड़ा दोपहिया वाहन निर्माता है. ऑटोमोबाइल उद्योग का लक्ष्य अगले साल तक अपना कारोबार दोगुना कर 15 लाख करोड़ रु. तक पहुंचाने का है. दूसरे शब्दों में, सड़कों पर बहुत अधिक वाहन होंगे, जिनमें शहरी और ग्रामीण सड़कें और राष्ट्रीय राजमार्ग शामिल हैं. यदि तुरंत सही कदम नहीं उठाए गए तो हताहतों की संख्या में और वृद्धि होगी.
जनसांख्यिकीविद् और शहरी योजनाकार हमें याद दिलाते हैं कि शहरों का तेजी से विस्तार हो रहा है, जिससे लोगों को वाहन खरीदने की आवश्यकता पड़ रही है. शहरी बुनियादी ढांचा पहले से ही भारी दबाव में है और सार्वजनिक परिवहन प्रणाली अभी भी बहुत दूर की कौड़ी है.
इस परिदृश्य में, सड़कों को वाहन चलाने के साथ-साथ पैदल चलने वालों के लिए भी सुरक्षित कैसे बनाया जाए यह एक यक्ष प्रश्न है. परिवहन विशेषज्ञ प्रोफेसर राहुल तिवारी कहते हैं कि समस्या विभिन्न सरकारी विभागों जैसे परिवहन, पीडब्ल्यूडी, शिक्षा, शहरी विकास, ग्रामीण विकास (पंचायत), पुलिस और सूचना प्रौद्योगिकी के बीच समन्वय की है.
वे तेज गति, ड्राइवर का व्यवहार (नशे में गाड़ी चलाना, लंबे समय तक काम करना), वाहनों की फिटनेस और खराब सड़क डिजाइन को दुर्घटनाओं के प्रमुख कारण मानते हैं, जो न केवल लोगों की जान लेते हैं बल्कि हजारों लोगों को जीवन भर के लिए अपंग भी कर देते हैं.
पिछले साल जब साइरस मिस्त्री की महाराष्ट्र में एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हुई, तो सड़क सुरक्षा, ओवर-स्पीडिंग आदि मुद्दों पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई, लेकिन लगता है इस मुद्दे को अब ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. मिस्त्री की मृत्यु की मीडिया, विषय विशेषज्ञों और सरकार द्वारा काफी हद तक गंभीरता से चर्चा की गई क्योंकि वे एक अग्रणी उद्योगपति थे.
लेकिन एक आम आदमी का क्या? उस गरीब के बारे में क्या, जो डंपर या अप्रशिक्षित ट्रक चालक की लापरवाही से अपनी जान गंवा देता है? उन वरिष्ठ नागरिकों का क्या जो असुरक्षित सड़कों पर गाड़ी चलाने से डरते हैं?
हाल ही में भोपाल में ‘विजन जीरो समिट’ में मध्य प्रदेश के डीजीपी सुधीर सक्सेना ने खुलासा किया कि गैर-जिम्मेदाराना ड्राइविंग के कारण लगभग पांच करोड़ लोगों की जान जा चुकी है. यह भयावह है. कम से कम इतना तो कहा ही जा सकता है कि यह बेहद परेशान करने वाली समस्या है जिस पर समाज व सरकार को कड़ा रुख अख्तियार करना होगा.
लेकिन जैसा कि प्रोफेसर तिवारी कहते हैं, दोष किसी एक विभाग पर नहीं डाला जा सकता, लोग खुद भी अपनी जान जोखिम में डालने के लिए जिम्मेदार हैं.
जीवन के 18 साल पूरे होने पर मैं अपने मोटरसाइकिल लाइसेंस के लिए टेस्ट देने के लिए क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ) गया था. मेरे पिता के उस अधिकारी से परिचित होने के बावजूद, उन्होंने मुझे छह महीने का लर्निंग लाइसेंस देने से पहले एक चक्कर लगाने, किक-चालित राजदूत बाइक को स्टार्ट करने, ब्रेक लगाने, बारी-बारी से हाथ दिखाने आदि के लिए कहा था. आज, कुछ अपवादों को छोड़कर, पूरे देश में आरटीओ और संपूर्ण परिवहन विभाग भ्रष्टाचार के अड्डे माने जाते हैं.
लोगों का मानना है कि अगर किसी आईपीएस अधिकारी को सीएम या गृह मंत्री द्वारा परिवहन आयुक्त बनाया जाता है, तो यह मुख्य रूप से राजनीतिक दल और राजनेताओं को फंड देने के लिए होता है. यह कोई धारणा नहीं बल्कि कड़वी हकीकत है. परिवहन विभाग सरकारों के लिए दुधारू गाय है! ये सब रुकना चाहिए.
किसी भी पश्चिमी या विकसित देश को देखें, उनकी यातायात व्यवस्था, सड़कों पर अनुशासन, अपराधियों से निपटने की व्यवस्था-हर चीज का उद्देश्य मानव जीवन की रक्षा करना है. वहां हाॅर्न बजाना ‘अपराध’ जैसा है. इसके विपरीत, भारत में हम वाहनों पर लिखते हैं ‘ब्लो हाॅर्न’ और फिर भी वाहनों को आगे बढ़ने की अनुमति नहीं देते.
कई साल पहले मैंने एक उच्च शिक्षित मुख्यमंत्री से पूछा था कि हम लापरवाही से गाड़ी चलाने या खराब सड़कों के कारण जाने वाली जानों को कैसे बचा सकते हैं, तो उन्होंने हाथ खड़े कर दिए और कहा: ‘‘जीवन और मृत्यु सब भगवान के हाथ में है.’’ कुछ महीनों बाद दुर्भाग्य से उनके परिवार के छह-सात लोगों की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई.
पीएम मोदी एक ‘टेक्नोसेवी’ नेता हैं. विज्ञान और तेजी से आगे बढ़ती प्रौद्योगिकी की मदद के साथ दुर्घटनाओं को रोकने और जीवन बचाने के लिए एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है. मोदीजी से अनेक अपेक्षाओं में एक यह भी है. लोगों की जान सड़कों पर जाना सिर्फ जीडीपी का नुकसान नहीं है, बल्कि इससे भी कहीं ज्यादा नुकसान का मामला है. दुर्घटनाएं कम हों, यह मोदीजी को मुमकिन करना होगा !