कोई माने या न माने, बात तो सही है..., छुटभैये से लेकर बड़े-बड़े नेताओं को बैनर-पोस्टर लगाने की बड़ी बीमारी

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: August 25, 2025 05:31 IST2025-08-25T05:31:17+5:302025-08-25T05:31:17+5:30

गली के नेता अपने जन्मदिन पर अपनी मनमर्जी के स्थान पर बैनर लगा लेते हैं. हद तो तब हो जाती है, जब नेताओं के आने-जाने की खुशी में किसी स्थान को बख्शा नहीं जाता है.

Whether anyone believes it or not, it is true small to big leaders country everyone big problem putting up banners and posters | कोई माने या न माने, बात तो सही है..., छुटभैये से लेकर बड़े-बड़े नेताओं को बैनर-पोस्टर लगाने की बड़ी बीमारी

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Highlightsउपमुख्यमंत्री का बयान सफाई कर्मचारियों के बीच आया और पुणे के आस-पास ही आया.अपने गृह क्षेत्र बारामती का भी संदर्भ दिया और बैनर लगाने वालों की खिंचाई की. ताक पर रखकर अक्सर अलग-अलग विषयों पर बैनर-पोस्टर लगाए जाते हैं.

देश में छुटभैये से लेकर बड़े-बड़े नेताओं को अपने बैनर-पोस्टर लगाने की बड़ी बीमारी है. इसके लिए कोई क्षेत्र विशेष सीमित नहीं है. किसी दल-व्यक्ति से भी सीधा कोई नाता नहीं है. यह रोग देश में हर जगह व्याप्त है. कुछ स्थानों में इसका स्वरूप थोड़ा अलग अवश्य है, मगर समस्या वही है. इस परिदृश्य में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने पुणे के निकट पिंपरी चिंचवड़ में सफाई कर्मचारियों के सम्मान कार्यक्रम के दौरान एक ऐसी बात कही है, जो शायद बैनरबाजी करने वालों के गले न उतर पाए. अजित पवार का कहना है कि बैनर लगाकर अपने काम की शेखी बघारने वालों को चुनावों में मत नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि वे अपने परिसर को बदसूरत बनाते हैं. उपमुख्यमंत्री का बयान सफाई कर्मचारियों के बीच आया और पुणे के आस-पास ही आया.

उन्होंने अपने गृह क्षेत्र बारामती का भी संदर्भ दिया और बैनर लगाने वालों की खिंचाई की. राजनेता के रूप में उनकी नाराजगी आश्चर्यजनक हो सकती है, लेकिन स्वभाव अनुसार स्पष्टवादी होने से मेल खाती है. सब जानते हैं कि देश में बैनर, पोस्टर-होर्डिंग आदि लगाने के नियम-कानून बने हुए हैं. उनके लिए स्थान निर्धारित हैं. किंतु उन्हें ताक पर रखकर अक्सर अलग-अलग विषयों पर बैनर-पोस्टर लगाए जाते हैं.

वे ज्यादातर अवैध होते हैं. मगर राजनीतिक दबाव के चलते उन्हें अनदेखा किया जाता है. इस क्रम में नेताओं के आगमन पर स्वागत, जन्मदिन, किसी राजनीतिक उपलब्धि आदि पर बैनर लगाना आम है. गली के नेता अपने जन्मदिन पर अपनी मनमर्जी के स्थान पर बैनर लगा लेते हैं. हद तो तब हो जाती है, जब नेताओं के आने-जाने की खुशी में किसी स्थान को बख्शा नहीं जाता है.

उस स्थिति में प्रशासन आंखें मूंद लेता है. शहर के सौंदर्य को खराब करने पर उठती आवाजों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है. अब उपमुख्यमंत्री पवार स्वयं समस्या को उठा रहे हैं, जिसका असर राजनीति पर दिख सकता है. सार्वजनिक जीवन में सेवा का प्रमाणपत्र आम जनता से मिलता रहता है. उसे गुणवत्ता के साथ लोगों के मन-मस्तिष्क पर दर्ज किया जा सकता है.

इस स्थिति में बैनर लगाकर केवल दिखावा ही संभव है. यह बात राजनीति में आम कार्यकर्ता की समझ से बाहर है. वह अपने नेताओं की खुशी और अपनी पहचान बढ़ाने के लिए बैनर -पोस्टर का सहारा लेता है, जिससे उसे अपने क्षेत्र में दबदबा बढ़ाने में भी सहायता मिलती है. यदि कार्यकर्ताओं की इन अपेक्षाओं को देख नेता उन्हें कुछ वैकल्पिक मार्गों का सुझाव देंगे तो निश्चित ही वे उनकी बात को मानेंगे.

यद्यपि उपमुख्यमंत्री ने बैनर लगाने वालों के खिलाफ आगे बढ़ते हुए आम आदमी को मत न देने का अधिकार दे दिया है. यह अच्छा सुझाव है. राजनीति में यह सार्वजनिक रूप से कहना आसान नहीं होता है. अब आवश्यक यह है कि बैनर लगाने वाले अपने नेताओं के विचारों को गंभीरता से लें, जिससे चुनावों में आम आदमी को पवार के सुझाव को स्वीकार करने पर मजबूर न होना पड़े.

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