एन. के. सिंह का ब्लॉग: 'मजदूर मैपिंग’ और बेहतर सेवा-शर्तों के सरकारी वादे कहां गए?

By एनके सिंह | Published: July 7, 2020 05:41 AM2020-07-07T05:41:49+5:302020-07-07T05:41:49+5:30

लॉकडाउन के तत्काल बाद जब प्रवासी मजदूर करोड़ों की तादाद में अपने गृह-राज्य को जाने लगे तो सरकारों को हकीकत समझ में आई कि किस तरह उत्पादन में अतुलनीय लेकिन गुमनाम भूमिका निभाने वाले इन मजदूरों का उद्यमी सस्ते श्रम की तलाश में दलालों के मार्फत केवल शोषण करते हैं. 

Where did the government promises of labor mapping and better conditions of service | एन. के. सिंह का ब्लॉग: 'मजदूर मैपिंग’ और बेहतर सेवा-शर्तों के सरकारी वादे कहां गए?

फोटो क्रेडिट: सोशल मीडिया

Highlightsउत्तर भारत के छह राज्य- उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड में से कम से कम तीन मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि इन मजदूरों को अपने गृह राज्य में ही काम दिया जाएगा. ये मजदूर भी जानते हैं कि उनके साथ कंपनियों और दलालों का यह ‘अतिथि देवो भव’ वाला बर्ताव केवल तब तक है जब तक भूख से बिलबिलाते हुए या बच्चे को पढ़ाने की आस में या बूढ़े मां-बाप के इलाज के लिए फिर से गांव से भाग कर काफी तादाद में ये मजदूर इन शहरों में नहीं पहुं

पीठ पर पिट्ठू, सिर पर गमछा जो कोविड-19 के डर से मुंह भी ढंक रहा हो, हाथ में एक सस्ता सूटकेस और पैर में हवाई चप्पल पहने किसी अविकसित राज्य के एयरपोर्ट पर ठेकेदार के जरिये तत्काल हवाई टिकट लिए जहाज में घुसते मजदूरों को देख भ्रम होता है कि शायद भारत बदल गया है. नहीं, मजदूर वही हैं, केवल उनके श्रम की ताकत का अहसास बदल गया है. ये जहाज देश के बड़े-बड़े औद्योगिक इलाकों से बड़ी-बड़ी कंपनियों ने भेजे हैं.

देश का उद्योग जगत भारी संकट में है. लिहाजा चार्टर्ड प्लेन (पूरा विमान किराए पर) भेज इन मजदूरों को बुलाना पड़ा. इन्हें ‘श्रमिक अतिथि’ का नया नाम दिया जा रहा है. जो पूरे जहाज का किराया नहीं दे पा रहे हैं, जैसे बिल्डर या धान मिल के मालिक, वे आपस में पूल करके जहाज किराए पर ले रहे हैं. लेकिन वे हर हाल में अभी तक हिकारत से देखे जा रहे ‘भैया’ या ‘बिहारी’ जैसे नाम से बुलाए जाने वाले इन मजदूरों को अपने कारखानों या काम की जगहों पर चाहते हैं क्योंकि उद्योग का पहिया उनके बिना नहीं चल पा रहा है.

अचानक इनके प्रति इतना सकारात्मक भाव उमड़ा है कि इनको लाने वाला ‘दलाल’, जो शोषण की व्यवस्था में मजदूरों और उद्यमियों के बीच की सबसे मजबूत कड़ी होता है, मजदूरों को पुराना बकाया भी दे रहा है, मजदूरी बढ़ाने का वादा भी कर रहा है और अनेक नए प्रलोभन भी दे रहा है. उद्देश्य है ‘एक बार काम पर पहुंच जाओ’. कहना न होगा कि ये मजदूर ज्यादा दिन अपने ‘घर’ पर नहीं रह सकते. 

उनके राज्य की सरकारें ही नहीं देश के प्रधानमंत्री भी भले ही दावा करें कि ‘ये हमारे हैं, इन्हें घर के पास ही काम मिलेगा और इनकी ‘प्रतिभा’ का इस्तेमाल ग्रामीण भारत के विकास के लिए किया जाएगा’, हकीकत यह है कि गांव में न तो उद्योग है न ही कृषि लाभकारी व्यवसाय; लिहाजा उन्हें मनरेगा में कुछ दिन काम मिला भी तो वह उनके जीवन की आर्थिक समस्या दूर नहीं कर सकेगा. 

उत्तर भारत के छह राज्य- उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड में से कम से कम तीन मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि इन मजदूरों को अपने गृह राज्य में ही काम दिया जाएगा. उनका दावा खोखला ही नहीं हास्यास्पद भी है. उद्यमिता रातोंरात नहीं विकसित होती. उद्योग लगाने वाला यह भी देखता है कि दिनदहाड़े अपराधी अगर बैंक लूट ले रहे हैं या सरकारी विभाग उद्यमियों की तरफ ‘गिद्ध दृष्टि’ से देख रहे हैं तो उस राज्य में कभी भी उद्योग नहीं लगाता, भले ही सरकार कथित तौर पर जमीन मुफ्त में दे.  

ये मजदूर भी जानते हैं कि उनके साथ कंपनियों और दलालों का यह ‘अतिथि देवो भव’ वाला बर्ताव केवल तब तक है जब तक भूख से बिलबिलाते हुए या बच्चे को पढ़ाने की आस में या बूढ़े मां-बाप के इलाज के लिए फिर से गांव से भाग कर काफी तादाद में ये मजदूर इन शहरों में नहीं पहुंचते. 
 
लॉकडाउन के तत्काल बाद जब प्रवासी मजदूर करोड़ों की तादाद में अपने गृह-राज्य को जाने लगे तो सरकारों को हकीकत समझ में आई कि किस तरह उत्पादन में अतुलनीय लेकिन गुमनाम भूमिका निभाने वाले इन मजदूरों का उद्यमी सस्ते श्रम की तलाश में दलालों के मार्फत केवल शोषण करते हैं. 

सरकार को अपनी इस कमी का भी अहसास हुआ कि आज तक इन करोड़ों श्रमिकों का कोई भी रिकॉर्ड किसी भी राज्य सरकार या केंद्र के पास नहीं है.  
उस समय स्थिति की नाजुकता को देखते ही सरकार ने ऐलान किया कि सभी गृह-राज्यों से आने के बाद और रोजी वाले राज्य में पहुंचने के बाद सरकारों द्वारा उनकी मैपिंग की जाएगी और उनके काम का लेखा-जोखा रखने सहित उन्हें उचित मजदूरी, फ्री इलाज और आवास की व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी.

केंद्र सरकार ही नहीं, कई राज्य सरकारों का दावा था कि ‘सरकार इसके लिए श्रम कानून में बदलाव पर भी विचार कर रही है’. पर आज जब एक बार फिर से उन मजदूरों ने भूख, बेरोजगारी और बच्चों की शिक्षा के लिए उन्हीं शहरों, औद्योगिक नगरों और राज्यों का रुख किया है जहां उन्हें ज्यादा मजदूरी मिलती है तो क्या हुआ सरकार की ‘मैपिंग’ और बड़ी-बड़ी घोषणाओं का? क्या फिर ये मजदूर किसी अगले लॉकडाउन के डर से जोंक बने उद्यमी-दलाल गठजोड़ का शिकार बनते रहेंगे? या ‘घर’ वापस लौटकर निकम्मी राज्य सरकारों के झूठे वादे का शिकार बनेंगे?

Web Title: Where did the government promises of labor mapping and better conditions of service

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