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ब्लॉग: 14 फरवरी के दिन 'गो-माता' के आलिंगन से आखिर क्या सिद्ध होना था ?

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: February 14, 2023 10:31 IST

भारतीय संस्कृति की मान्यताओं में गाय केवल दुधारू प्राणी ही नहीं है, वह मोक्षदायिनी और वात्सल्यमयी भी है इसीलिए वह गले लगाने से कहीं ज्यादा पूजनीय है.

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अजय बोकिल

इस साल 14 फरवरी को देश में ‘काउ हग डे’ (गो आलिंगन दिवस) मनाने का अपना फरमान भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया) ने वापस लेकर ठीक ही किया, क्योंकि जिस देश में सदियों से गाय को देवता और माता का दर्जा हो, वहां गाय को ‘गले लगाने का उत्सव’ मनाने का कोई औचित्य ही नहीं था. भारतीय संस्कृति में प्रेम ही पूजा और पूजा ही प्रेम है.

यहां सवाल है कि पशु कल्याण बोर्ड ने ऐसा परिपत्र क्योंकर जारी किया, इसका क्या औचित्य था और किस वजह से इसे वापस लेना पड़ा? उल्लेखनीय है कि भारतीय पशु कल्याण बोर्ड ने बीती 6 फरवरी को एक परिपत्र के जरिये चौंकाने वाली अपील की थी कि इस बार 14 फरवरी को सभी देशवासी गो आलिंगन दिवस के रूप में मनाएंगे. 14 फरवरी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘वैलेंटाइन डे’ के रूप में मनाया जाता है. 

पशु कल्याण बोर्ड का तर्क था कि गाय हमारे लिए श्रद्धा और प्रेम का विषय है, अत: इस प्रेम का इजहार सभी गो-प्रेमी गाय को गले लगाकर करें. बोर्ड का मानना था कि ऐसा करना हमारे लिए ‘भावनात्मक समृद्धि’ लेकर आएगा तथा इससे व्यक्तिगत और सामूहिक खुशी में इजाफा होगा. बताया जाता है कि पशु कल्याण बोर्ड की अपील प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप के बाद वापस ली गई.

भारतीय संस्कृति पूजा भाव को आलिंगन से श्रेष्ठतर मानती आई है बल्कि यूं कहें कि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह आलिंगन से कहीं आगे की स्थिति है, जहां पूर्ण समर्पण, पूर्ण स्वीकार और देवत्व का आभास है. गाय को हमारे पूर्वजों ने इसी श्रेणी में रखा है. गाय आर्यों के अर्थ तंत्र का एक मजबूत आधार थी इसीलिए उसे कामधेनु और गो-माता कहा गया है लेकिन बाद में उसके साथ देवत्व भी जुड़ गया. 

ऋग्वेद में गाय को ‘अघ्न्या’ कहा गया है, अर्थात जिसे किसी भी स्थिति में नहीं मारा जा सकता. साथ में यह कामना की गई है कि गायें हरी घास और शुद्ध जल के सेवन से स्वस्थ रहें जिससे कि हम उत्तम सद्गुण, ज्ञान और ऐश्वर्य से युक्त हों. समुद्र मंथन में निकले 14 रत्नों में एक गाय कामधेनु भी थी. मान्यता बनी कि गाय में तैंतीस करोड़ देवताओं का वास है. अत: गो-पूजन करने से इन सभी देवताओं की पूजा स्वमेव हो जाती है.

गाय केवल दुधारू प्राणी ही नहीं है, वह मोक्षदायिनी और वात्सल्यमयी भी है इसीलिए वह गले लगाने से कहीं ज्यादा पूजनीय है. आराध्य है इसलिए भी कि एक मां तो केवल अपने बच्चों का ही ध्यान रखती है, लेकिन गोमाता अपने बछड़े के साथ न जाने कितने दूसरे बच्चों को भी पोसती है इसीलिए गाय को महज एक दूध देने वाले पशु से कहीं आगे देवताओं का दर्जा दिया गया है. जिसे हम पूज ही रहे हैं, उसे आलिंगन देकर और क्या सिद्ध करना चाह रहे थे?

टॅग्स :वैलेंटाइन डेगाय
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