लाइव न्यूज़ :

ब्लॉग: सोनिया गांधी के लिए अब आगे क्या?

By हरीश गुप्ता | Updated: February 22, 2024 10:33 IST

अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वह अपने साथ हुए व्यवहार से बेहद परेशान हैं क्योंकि उन्हें एक तरह से अकेला छोड़ दिया गया है।

Open in App

अनिच्छुक सोनिया गांधी को 14 मार्च, 1998 को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। उसे ‘रक्तहीन तख्तापलट’ के रूप में जाना जाता है। उसमें तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष सीताराम केसरी को बाहर कर दिया गया था। तब सोनिया गांधी की सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि गुटों में बंटी पार्टी को कैसे पुनर्जीवित और एकजुट किया जाए। उनके फैसले ने सभी को चौंका दिया क्योंकि 21 मई, 1991 को अपने पति और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद उन्होंने पार्टी में शामिल होने की अपील को बार-बार ठुकराया था।

अगर 1991 में प्रधानमंत्री पद के लिए उन्होंने महाराष्ट्र के कद्दावर नेता शरद पवार के बजाय पी.वी. नरसिंह राव को अपना समर्थन दिया तो 1996 में पार्टी प्रमुख पद के लिए सीताराम केसरी को चुना। यह उनके लिए कठिन समय था क्योंकि कांग्रेस को आंतरिक विद्रोह और अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी के कद्दावर नेतृत्व में उभरती भाजपा से खतरों का सामना करना पड़ रहा था। उनकी विदेशी मूल की पहचान भी एक बड़ी बाधा थी।

फिर बड़ी परीक्षा तब हुई जब कांग्रेस उपाध्यक्ष जितेंद्र प्रसाद ने विद्रोह कर दिया और अगस्त 2000 में पार्टी अध्यक्ष पद के लिए सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा। उन्होंने कैसे पार्टी को फिर से खड़ा किया और छह साल की छोटी सी अवधि में 2004 में डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में लंबे दस वर्षों के लिए स्थापित किया, वह एक इतिहास है। उन्होंने सम्मान अर्जित किया और उनके सार्वजनिक आचरण की भी व्यापक सराहना की गई।

अब उन्होंने मुख्य रूप से अपने 10 जनपथ बंगले को बरकरार रखने और ईंट दर ईंट खड़ी की गई ढहती कांग्रेस को चुपचाप देखने के लिए राज्यसभा में जाने का विकल्प चुना है। क्या वह फिर से बागडोर संभालेंगी और गांधी परिवार के भीतर या बाहर किसी वैकल्पिक नेता की तलाश करेंगी या अपने प्यारे बेटे पर भरोसा बनाए रखेंगी? कोई भी दावे से कुछ नहीं कह सकता।

बागडोर संभालने के अनिच्छुक राहुल

इसके विपरीत राहुल गांधी को 2002 में राजनीति में प्रवेश करने के बाद से सब कुछ थाली में सजा हुआ मिला था। पार्टी दो साल की छोटी अवधि के भीतर सत्ता में आ गई और वह भी 2004 में अमेठी से लोकसभा के लिए चुने गए। पार्टी में अनुभवी लोगों की बात सुनने के बजाय वे अपनी मर्जी के मालिक बने। उन्होंने ए.के. एंटनी या यहां तक कि अपनी मां जैसे अपने ‘गुरुओं’ की बात सुनने से इनकार कर दिया और सरकारें कैसे चलाई जाती हैं, इसका प्रशिक्षण लेने के लिए मंत्रालय में शामिल होने से इनकार कर दिया।

उन्होंने सार्वजनिक भाषण और हिंदी में महारत हासिल करने का प्रशिक्षण लेने से भी मना कर दिया। उनकी मां ने कुछ हद तक बेहतर प्रदर्शन किया और बिना किसी तैयारी के कुछ बोलकर हाराकिरी करने के बजाय हिंदी पढ़कर बोलती रहीं। अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पार्टी और उसके सहयोगी दल 2011-12 में डॉ. मनमोहन सिंह को देश का राष्ट्रपति बनाकर राहुल गांधी के प्रधानमंत्री के रूप में सरकार की बागडोर संभालने के पक्ष में थे। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि वे अपने नेतृत्व में लड़े गए चुनाव में जीत हासिल कर पीएम बनना चाहेंगे। आखिरकार, वे दिसंबर 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष बने और 2019 के लोकसभा चुनावों में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा।

वे अपना ही गढ़ अमेठी हार गए। उन्होंने जुलाई 2019 में अचानक अध्यक्ष पद छोड़ दिया। दिलचस्प बात यह है कि किसी ने भी उनके लिए आंसू नहीं बहाए और उन्हें पद पर बने रहने के लिए नहीं कहा। लेकिन वह मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष के रूप में सामने कर पार्टी के बैक-सीट ड्राइवर के रूप में खुश हैं।

प्रथम परिवार में बढ़ रही बेचैनी!

कांग्रेस के प्रथम परिवार से आ रही रिपोर्टों से पता चलता है कि सबकुछ ठीक नहीं है। इस बेचैनी का पहला संकेत तब मिला जब 14 जनवरी 2024 को मणिपुर में राहुल गांधी के भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू करने पर एआईसीसी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा वहां नहीं दिखीं और चुपचाप विदेश यात्रा पर निकल गईं। कहा गया कि यात्रा के यूपी में प्रवेश करने पर वह अपने भाई के साथ होंगी लेकिन वह अभी तक नजर नहीं आई हैं।

उन्हें सार्वजनिक रूप से केवल एक बार तब देखा गया था जब सोनिया गांधी राज्यसभा जाने के लिए अपना नामांकन दाखिल करने के लिए जयपुर गई थीं। लेकिन प्रियंका के हावभाव से साफ झलक रहा था कि कुछ तो गड़बड़ है।

एक हफ्ते बाद, यह घोषणा की गई कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इस बारे में अभी तक कुछ स्पष्ट नहीं है। हालांकि उनके करीबी कुछ नेताओं का कहना है कि वह अगले एक सप्ताह के भीतर आ सकती हैं क्योंकि वह अस्पताल से वापस आ गई हैं और घर पर स्वास्थ्य लाभ कर रही हैं।

अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वह अपने साथ हुए व्यवहार से बेहद परेशान हैं क्योंकि उन्हें एक तरह से अकेला छोड़ दिया गया है। यहां बता दें कि पार्टी के कई वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी का चेहरा बनाने के पक्ष में हैं क्योंकि राहुल गांधी लोगों में विश्वास पैदा करने और उनका भरोसा जीतने में नाकाम रहे हैं लेकिन गांधी परिवार की गाथा पर अंतिम फैसला होना अभी बाकी है।

टॅग्स :सोनिया गाँधीकांग्रेसCongress Committeeराहुल गांधी
Open in App

संबंधित खबरें

भारतIndiGo Crisis: इंडिगो के उड़ानों के रद्द होने पर राहुल गांधी ने किया रिएक्ट, बोले- "सरकार के एकाधिकार मॉडल का नतीजा"

भारतSanchar Saathi App: विपक्ष के आरोपों के बीच संचार साथी ऐप डाउनलोड में भारी वृद्धि, संचार मंत्रालय का दावा

भारतMCD Bypoll Results 2025: दिल्ली के सभी 12 वार्डों के रिजल्ट अनाउंस, 7 पर बीजेपी, 3 पर AAP, कांग्रेस ने 1 वार्ड जीता

भारतMCD by-elections Result: BJP ने चांदनी चौक और शालीमार बाग बी में मारी बाजी, कांग्रेस ने जीता संगम विहार ए वार्ड

भारतबिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद पार्टी के अंदर एक बार फिर शुरू हो गया है 'एकला चलो' की रणनीति पर गंभीर मंथन

भारत अधिक खबरें

भारत‘पहलगाम से क्रोकस सिटी हॉल तक’: PM मोदी और पुतिन ने मिलकर आतंकवाद, व्यापार और भारत-रूस दोस्ती पर बात की

भारतIndiGo Flight Cancel: इंडिगो संकट के बीच DGCA का बड़ा फैसला, पायलटों के लिए उड़ान ड्यूटी मानदंडों में दी ढील

भारतरेपो दर में कटौती से घर के लिए कर्ज होगा सस्ता, मांग बढ़ेगी: रियल एस्टेट

भारतModi-Putin Talks: यूक्रेन के संकट पर बोले पीएम मोदी, बोले- भारत न्यूट्रल नहीं है...

भारतPutin India Visit: एयरपोर्ट पर पीएम मोदी ने गले लगाकर किया रूसी राष्ट्रपति पुतिन का स्वागत, एक ही कार में हुए रवाना, देखें तस्वीरें