ब्लॉग: द.अफ्रीका के चुनावों में क्या चाहते हैं भारतीय ?
By विवेक शुक्ला | Updated: May 29, 2024 12:04 IST2024-05-29T12:02:55+5:302024-05-29T12:04:57+5:30
दक्षिण अफ्रीका और भारत सिर्फ गांधीजी और नेल्सन मंडेला के कारण ही आपस में भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ते

फाइल फोटो
दक्षिण अफ्रीका और भारत सिर्फ गांधीजी और नेल्सन मंडेला के कारण ही आपस में भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ते, इन्हें करीब 15 लाख भारतवंशी भी जोड़ते हैं, जो वहां सौ से भी अधिक सालों से बसे हुए हैं। उसी दक्षिण अफ्रीका में बुधवार 29 मई को होने वाले आम चुनावों को लेकर भारतवंशी भी गहरी दिलचस्पी ले रहे हैं। उनका आरोप है कि दक्षिण अफ्रीका में उन्हें हाशिये पर धकेल दिया गया है।
भारतीय मूल के कुछ राजनेता दक्षिण अफ्रीका में आम चुनाव लड़ भी रहे हैं। इनमें पैट्रिक पिल्ले शामिल हैं, जिन्होंने डेमोक्रेटिक लिबरल कांग्रेस (डीएलसी) नाम से पार्टी बनाई है। एस.सिंह विपक्षी पार्टी डेमोक्रेटिक एलायंस के उम्मीदवार हैं। इनके अलावा भी कुछ निर्दलीय के रूप में क्वाजुलु-नटाल प्रांत से चुनाव लड़ रहे हैं।
क्वाजुलु-नटाल प्रांत के प्रमुख शहर डरबन में भारतीयों की आबादी खासी है। इसे मिनी दिल्ली या मुंबई भी कहा जाता है। यह डरबन शहर ही है जहां महात्मा गांधी 1893 में भारत से आए थे। डीएलसी ने चुनावों में भारतीय मूल के 10 उम्मीदवार उतारे हैं। वहां के भारतवंशी भी बेरोजगारी के शिकार हैं।
भारतीय मूल के तीन व्यक्ति फसीहा हसन, मागेशवरी गोवेन्दर और शाएक इमरान सुब्रथी नेल्सन मंडेला की पार्टी अफ्रीकन कांग्रेस पार्टी (एएनसी) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। दरअसल भारतवंशियों की एक बड़ी आबादी एएनसी की समर्थक रही है। सबको पता है कि मंडेला का भारत से आत्मीय संबंध था।
वे लंबी जेल यात्रा से रिहा होने के बाद 1990 में दिल्ली आए थे। भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया। खैर, भारत में लोकसभा चुनाव के नतीजे 4 जून को और मित्र देश दक्षिण अफ्रीका में 2 जून को घोषित किए जाएंगे।
इसके बाद दोनों देशों में नई सरकारें बनेंगी। उम्मीद करनी चाहिए कि दक्षिण अफ्रीका में नई सरकार भारतवंशियों के हितों के हल तलाश करेगी। भारतीयों के बिना अधूरा है दक्षिण अफ्रीका। वहां के शिखर क्रिकेटर हाशिम आमला और केशव महाराज भारतीय मूल के ही हैं।