अभिलाष खांडेकर ब्लॉग: विशेषज्ञों को क्यों किया जाता है नजरअंदाज?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 9, 2024 13:33 IST2024-08-09T13:32:33+5:302024-08-09T13:33:44+5:30

कुछ शहरों में करोड़ों रुपए की लागत वाली मेट्रो रेल लाइनों के बारे में भी यही कहानी है, जबकि वास्तव में इनकी जरूरत ही नहीं थी। तथाकथित सिटी मास्टर प्लान कागजों तक ही सीमित रह गए हैं और ठेकेदारों का हित साधने वाली योजनाओं ( मेट्रो आदि) को नौकरशाही ने आगे बढ़ाया।

Wayanad landslide Why are experts ignored? | अभिलाष खांडेकर ब्लॉग: विशेषज्ञों को क्यों किया जाता है नजरअंदाज?

अभिलाष खांडेकर ब्लॉग: विशेषज्ञों को क्यों किया जाता है नजरअंदाज?

वायनाड की भयानक आपदा देश को भूलनी नहीं चाहिए क्योंकि यह सरकारों द्वारा  ‘दिनदहाड़े किया गया नरसंहार’ था। अगर डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-2 समेत विभिन्न सरकारों ने समय रहते कार्रवाई की होती तो सैकड़ों लोगों की जान बचाई जा सकती थी। आज हर जगह माधव गाडगिल विशेषज्ञ समिति की चर्चा हो रही है क्योंकि उन्होंने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को आसन्न खतरों के बारे में पहले ही आगाह कर दिया था।

उनकी विस्तृत रिपोर्ट ने पूरे पश्चिमी घाट क्षेत्र की पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता को रेखांकित किया था। उसी मंत्रालय ने अब एक और मसौदा अधिसूचना जारी की है, शायद अपनी असफलता को छिपाने के लिए। बात केवल गाडगिल विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट की नहीं है, जिसे न तो सुना गया और न ही लागू किया गया।आम तौर पर, ‘हम सबकुछ जानते हैं’ की मानसिकता वाले नौकरशाहों के वर्चस्व वाली सरकारें, अपने से बाहर के वैज्ञानिक रूप से श्रेष्ठ लोगों को निर्णय प्रक्रिया में शामिल करने से इनकार करती हैं। भारत में ‘सिस्टम’ किसी-न-किसी तरह से विशेषज्ञों की उपेक्षा ही करता रहा है।

ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं कि राज्यों और दिल्ली में सरकारें, गंभीर समस्याओं का जब सामना होता है तो विशेषज्ञों की समितियां तो बनाती हैं, लेकिन फिर चुपचाप सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाल देती हैं और उन्हें लोगों के जेहन से मिट जाने देती हैं। कई बार तो विशेषज्ञों की सलाह भी नहीं ली जाती, खुले विचार-विमर्श को रोक दिया जाता है और अचानक लोगों को सरकार की कोई नई परियोजना या कोई धमाकेदार घोषणा देखने-सुनने को मिलती है। यह तर्क दिया जा सकता है कि लोकतांत्रिक रूप से चुने गए जनप्रतिनिधियों के पास विकास कार्य करने या नीतियां व कानून बनाने के अधिकार और शक्तियां हैं, लेकिन अक्सर देखा जाता है कि आम आदमी के लिए बनाई गई

परियोजनाएं और नीतियां वास्तव में जनता के खिलाफ हो जाती हैं और भारी असुविधा का कारण बनती हैं। डॉ. एमएस स्वामीनाथन ने कृषि सुधारों पर व किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई साल पहले जो दूरगामी सिफारिशें की थीं, उन्हें तत्कालीन सरकारों ने बड़े पैमाने पर नजरअंदाज कर दिया. सरकारों ने उनकी पीठ थपथपाई, उन्हें नागरिक पुरस्कारों से सम्मानित किया, राज्यसभा के लिए मनोनीत किया, लेकिन समय रहते उनके आधे सुझाव भी स्वीकार नहीं किए गए। मोदी सरकार द्वारा उनको मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किए जाने के बाद, उनकी एक बेटी ने एक राष्ट्रीय टीवी चैनल पर कहा कि उनके पिता को बहुत खुशी होती अगर किसानों के लिए उनकी सिफारिशें उनके निधन के बाद भी सरकार द्वारा स्वीकार कर ली जातीं।

हाल ही में एक और उदाहरण, जिसने बहुत से लोगों को प्रभावित किया, वह था भारतीय मुद्रा का बड़े पैमाने पर विमुद्रीकरण। इसने गरीब लोगों के लिए तबाही मचा दी। उस समय दावा किया गया था कि यह काले धन को खत्म करने और आतंकवाद पर हमला करने आदि के लिए किया जा रहा है। लेकिन इतने बड़े आर्थिक कदम के लिए भी रिजर्व बैंक के गवर्नर से सलाह नहीं ली गई और न ही वित्त मंत्रालय को इस बारे में विश्वास में लिया गया था।

हां, भाजपा ने अब इस पर शेखी बघारना बंद कर दिया है। डॉ. गाडगिल ने 2011 में यूपीए सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कई सुझाव और चेतावनियां दी थीं। लेकिन सरकार ने इसे नकार दिया, जिसका नतीजा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 2024 में वायनाड में होने वाली आपदा के रूप में सामने आया, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। अस्सी साल के वे पर्यावरण वैज्ञानिक अंदर ही अंदर रो रहे हैं, लेकिन राजनेताओं ने मगरमच्छ के आंसू तक नहीं बहाए।

शहरी क्षेत्र के मोर्चे पर, कई स्मार्ट शहरों के लिए ऐसे स्थानों को चुना गया जो पर्यावरण की दृष्टि से पहले से ही ‘स्मार्ट’ थे, लेकिन विशेषज्ञ की सलाह के बिना और लोगों के विरोध के बावजूद- जो कथित लाभार्थी थे- नौकरशाहों ने अपनी मनमानी की।

दिल्ली और भोपाल में बीआरटीएस जैसे प्रयोग किए गए और कुछ सालों तक लोगों के भारी परेशानी झेलने के बाद राजनीतिक आकाओं ने उन्हें एकाएक खत्म कर दिया। किसी ने करदाताओं के पैसे की बर्बादी के बारे में सवाल नहीं उठाया, जो वास्तव में पानी में चला गया। कुछ शहरों में करोड़ों रुपए की लागत वाली मेट्रो रेल लाइनों के बारे में भी यही कहानी है, जबकि वास्तव में इनकी जरूरत ही नहीं थी। तथाकथित सिटी मास्टर प्लान कागजों तक ही सीमित रह गए हैं और ठेकेदारों का हित साधने वाली योजनाओं ( मेट्रो आदि) को नौकरशाही ने आगे बढ़ाया।

कई नदी विशेषज्ञों ने मुझे बताया कि सीमेंट कांक्रीट संरचनाओं के साथ नदी तट पर विकास कार्य करना नदी घाटियों की पारिस्थितिकी के खिलाफ है, लेकिन अधिक से अधिक शहर इसे एक सनक की तरह अपना रहे हैं और विशेषज्ञों की बात पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। वायनाड त्रासदी से हमारी आंखें खुल जानी चाहिए और व्यवस्था को अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञों की बात सुननी शुरू कर देनी चाहिए। कम-से-कम अमृतकाल में तो हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ चलें।

Web Title: Wayanad landslide Why are experts ignored?

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