रमेश ठाकुर का ब्लॉग: बर्बाद होता जल और सूखते जलाशय
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 4, 2019 03:52 PM2019-07-04T15:52:56+5:302019-07-04T15:52:56+5:30
बरसे हुए पानी को सहेजने के लिए हिंदुस्तान में कई जगहों पर जलाशय बनाए गए थे, जो इस वक्त खुद बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. जलाशयों को बनाने के लिए करोड़ों रुपए पानी में बहाए गए, पर नतीजा शून्य निकला.
रमेश ठाकुर
मानसून ने कई जगहों पर दस्तक दे दी है. दिल्ली, उत्तर प्रदेश व अन्य प्रदेशों में भी मेघों की आमदगी शीघ्र ही हो जाएगी. दरअसल यह महीना सभी को आत्मिक आनंद से सराबोर करने का काम करता है. सूखी जमीन को गीला कर नया जीवन देता है. लेकिन मानसून का ज्यादातर पानी बेकार चला जाता है.
करीब दो दशकों से वर्षाजल संचयन के लिए कई वैज्ञानिक व परंपरागत विधियां प्रयोग में लाई गईं, लेकिन सभी कागजी साबित हुईं. बरसे हुए पानी को सहेजने के लिए हिंदुस्तान में कई जगहों पर जलाशय बनाए गए थे, जो इस वक्त खुद बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. जलाशयों को बनाने के लिए करोड़ों रुपए पानी में बहाए गए, पर नतीजा शून्य निकला.
वर्षा जल संरक्षण के लिए पूर्ववर्ती सरकारों ने बड़ा अभियान चलाया था, लेकिन बाद में वे बेअसर साबित हुए. समूचे भारत में 76 विशालकाय और प्रमुख जलाशयों की जल भंडारण की स्थिति पर निगरानी रखने वाले केंद्रीय जल आयोग की हालिया रिपोर्ट के आंकड़े चिंतित करते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक एकाध जलाशयों को छोड़कर बाकी सभी चिंताजनक स्थिति में हैं.
उत्तर प्रदेश के माताटीला बांध व रहिन्द, मध्य प्रदेश के गांधी सागर व तवा, झारखंड के तेनूघाट, मेथन, पंचेतहित व कोनार, महाराष्ट्र के कोयना, ईसापुर, येलदरी व ऊपरी तापी, राजस्थान का राणा प्रताप सागर, कर्नाटक का वाणी विलास सागर, ओडिशा का रेंगाली, तमिलनाडु का शोलायार, त्रिपुरा का गुमटी और प. बंगाल के मयुराक्षी व कंग्साबती जलाशय सूखने के कगार पर पहुंच गए हैं. इन जलाशयों पर बिजली बनाने की भी जिम्मेदारी है. लेकिन चार जलाशय ऐसे हैं जो पानी की कमी के कारण लक्ष्य से कम विद्युत उत्पादन कर रहे हैं.
केंद्रीय जल आयोग ने इन तालाबों में जल उपलब्धता के जो ताजा आंकड़े दिए हैं, उनसे साफ जाहिर होता है कि आने वाले समय में पानी और बिजली की भयावह स्थिति सामने आने वाली है.
समूचे भारत में कुएं, बावड़ी, तालाब जैसे प्राकृतिक स्नेत सूख रहे हैं. लेकिन किसी का इस ओर ध्यान नहीं जा रहा. गंगा को साफ करने और पानी को बचाने के लिए करोड़ों रुपयों की धनराशि जल प्रबंधन पर प्रतिवर्ष व्यय की जा रही है. लेकिन नतीजा कुछ खास निकल कर नहीं आ रहा. इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि गंगा सफाई के नाम आवंटित बजट पिछले तीन वर्षो से वापस जा रहा है.