विवेक शुक्ला का ब्लॉग: शाहरुख खान के अब्बा, साहिर, रफी को क्यों मंजूर नहीं था पाकिस्तान?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 14, 2020 12:18 IST2020-08-14T12:18:28+5:302020-08-14T12:18:28+5:30

इन मुसलमानों को जिन्ना का पाकिस्तान मंजूर नहीं था और इन्हें मुसलमान होने के बाद भी इस्लामिक मुल्क का नागरिक बनना नामंजूर था.

Vivek Shukla's blog: Why did Shahrukh Khan's father, Sahir and Rafi not like Pakistan? | विवेक शुक्ला का ब्लॉग: शाहरुख खान के अब्बा, साहिर, रफी को क्यों मंजूर नहीं था पाकिस्तान?

बंटवारे के बाद कई मुसलमान पाकिस्तान छोड़ भारत आ गए थे। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

विवेक शुक्ला
मोहम्मद यूनुस एक दौर में नेहरू-गांधी परिवार के खासमखास थे. देश के बंटवारे के बाद वे पाकिस्तान का फ्रंटियर प्रांत (अब खैबर पख्तूनख्वा) छोड़कर दिल्ली आ गए थे. वे खान अब्दुल गफ्फार खान के करीबी संबंधी भी थे. वे लंबे अरसे तक ट्रेड फेयरअथॉरिटी ऑफ इंडिया के सर्वेसर्वा भी रहे. आप ताज मोहम्मद खान को नहीं जानते. वे कांग्रेसी थे. वे भी खैबर पख्तूनख्वा से थे. पर आप उनके पुत्न को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं. वे बॉलीवुड के सुपरस्टार हैं. नाम है शाहरुख खान. इन दोनों और इनके जैसे बहुत से मुसलमानों का बंटवारे से अलग तरह का संबंध रहा है.

दरअसल इन मुसलमानों को जिन्ना का पाकिस्तान मंजूर नहीं था. इन्हें मुसलमान होने के बाद भी इस्लामिक मुल्क का नागरिक बनना नामंजूर था. बस, इसलिए ये पाकिस्तान छोड़कर भारत आ गए. जरा सोचिए इनकी मानसिक स्थिति के बारे में जिससे इन्हें गुजरना पड़ा होगा, जब इन्होंने भारत आने का फैसला लिया होगा. जब मुल्क मजहब के नाम पर विभाजित हो रहा था, तब ये उधर का रुख कर रहे थे, जो धर्मनिरपेक्ष देश बनने जा रहा था. आमतौर पर यही माना जाता है कि देश बंटा तो भारत के विभिन्न सूबों से मुसलमानों ने पाकिस्तान का रुख कर लिया.

ये सबको पता है कि नए इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान से तमाम हिंदू-सिख भारत आ गए थे लेकिन पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) और सिंध से बड़ी तादाद में हिंदू नहीं आए. पर, पाकिस्तान के हिस्से के पंजाब और फ्रंटियर प्रांत से ताज मोहम्मद और मोहम्मद यूनुस जैसे काफी संख्या में मुसलमानों ने तब भारत का रुख किया, जब देश सांप्रदायिकता की आग में झुलस रहा था. जाहिर है, ये कोई सामान्य बात नहीं थी. अफसोस कि विभाजन के इस पहलू को जाने-अनजाने में नजरअंदाज ही किया गया.

पंजाब के रावलपिंडी शहर में तैनात आला अफसर एच.डी. शौरी 1947 में दिल्ली आ गए थे. वे यहां पर शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए स्थापित किए गए सरकारी महकमे में रिहैबिलिटेशन कमिश्नर थे. उन्होंने करीब 25 साल पहले एक बातचीत में इस लेखक को बताया था कि बंटवारे के समय भारत आए मुसलमानों ने अपने लिए सस्ते घरों या दूसरी रियायतों की मांग नहीं की. वे यहां पर आने के बाद अपने कामकाज में लग गए. ये ज्यादातर फ्रंटियर से थे. फ्रंटियर में सरहदी गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान का अवाम में जबरदस्त प्रभाव था. उनके चलते वहां पर मुस्लिम लीग कभी असरदार पार्टी नहीं बन पाई. वे पक्के गांधीवादी थे. भारत में उन्हें सीमांत गांधी कहकर पुकारा जाता है. शौरी के पुत्न जाने-माने लेखक और पत्नकार अरु ण शौरी हैं.

मशहूर चिंतक और रंगकर्मी शम्सुल इस्लाम का परिवार भी तब दिल्ली आया था, जब मजहब के नाम पर कत्लेआम का दौर जारी था.  प्रोफेसर इस्लाम साहब बताते हैं कि उनके दादा-पिता और परिवार के दूसरे सदस्य उस मुल्क में रहने के लिए कतई तैयार नहीं थे जो सिर्फ मुसलमानों के लिए बना था. वे गांधी के भारत में ही रहना चाहते थे. उनके पुरखों को कभी भी इस बात का अफसोस नहीं हुआ कि उनका फैसला गलत था.

साहिर लुधियानवी और मोहम्मद रफी देश के बंटवारे के वक्त लाहौर में थे. वहां पर काम कर रहे थे. साहिर साहब ने हिंदी फिल्मों को एक से बढ़कर एक नगमे दिए. उधर, रफी साहब जैसा प्लेबैक सिंगर फिर शायद न हो. ये दोनों बंटवारे के फौरन बाद भारत आ गए थे. साहिर साहब का असली नाम अब्दुल हयी साहिर था. उनका जन्म 8 मार्च 1921 में लुधियाना में हुआ था. इन दोनों को अपने वतन भारत आने  के बारे में सोचना नहीं पड़ा था.

देश के बंटवारे के बाद कुछ महीनों तक करीब डेढ़ करोड़ लोग सरहद के आर-पार गए, अपनी जिंदगी की बिखरी हुई कड़ियों को जोड़ने के लिए. भारत-पाकिस्तान के स्वतंत्र होने की तिथियों की घोषणा के बाद भी किसी को यह मालूम नहीं था कि देश का कौन सा हिस्सा भारत में रहेगा और कौन सा पाकिस्तान जाएगा.

अगर दोनों देशों की सरहदों को लेकर फैसला वक्त रहते हो जाता तो पाकिस्तान से और बड़ी संख्या में मुसलमान भारत आ जाते. वहां पर बड़ी संख्या में लोगों की चाहत गांधी के भारत में रहने-बसने की थी. पर विभाजन के फौरन बाद इतना भयंकर दंगा भड़का था कि बहुत से मुसलमानों के लिए भारत का रुख करना मुश्किल हो गया.

Web Title: Vivek Shukla's blog: Why did Shahrukh Khan's father, Sahir and Rafi not like Pakistan?

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