विस्मृति की लीला

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 5, 2018 08:03 AM2018-08-05T08:03:59+5:302018-08-05T08:03:59+5:30

शकुंतला के पास अंगूठी थी जिसने अंत में सारी बिगड़ी बना दी; दुष्यंत की विस्मृति दूर कर! सालाजार की विस्मृति का इलाज भी हो रहा है और शीघ्र पूर्ण होगा। पर इलाज है अंगूठी से कम रोमांटिक और अधिक कठोर!

Vismriti ki Leela by Sharad Joshi | विस्मृति की लीला

विस्मृति की लीला

शरद जोशी

शकुंतला अपने पुत्र भरत को लेकर राजा दुष्यंत के दरबार में गई। उसके मन में बड़ी उमंग थी कि उसका पिता उसका स्वागत करेगा। स्नेह के साथ अपना लेगा। राजा ने नहीं अपनाया; पहचाना तक नहीं! राजा भूल गया था, शकुंतला उसकी कोई है। अकेली शकुंतला आती तो बात भी थी। उसके साथ एक किशोर भी था। पुराणकार ने इस दुखांत रोमांस को सुखांत करने के लिए अंगूठी से थाम लिया। अन्यथा दुष्यंत तो शकुंतला को अंगूठा दिखा ही चुका था।

कहानी सही हो अथवा नहीं, विस्मृति से हम सब कभी न कभी पीड़ित होते हैं। विस्मृति हमारे जीवन के लिए आवश्यक है।  किंतु कुछ विस्मृतियां केवल ढोंग होती हैं और ढोंग राजनीति का हथियार है।

भारत में अपने पैर जमाने के प्रयास मुख्यतया तीन यूरोपियन राष्ट्रों ने किए। इंग्लैंड ने फ्रांस और पुर्तगाल को मार भगाया। पुर्तगाल को पहले, फ्रांस को बाद में।  पुर्तगाल ने बहुत जल्दी घुटने टेक दिए। बरतानिया के साथ संधि कर ली। गिर पड़े, पर नाक ऊंची रखने के लिए संधि हुई थी सन 1642 में। सुलहनामे की शर्तो में ‘पुर्तगालियों के उपनिवेशों की वर्तमान एवं भविष्य के शत्रुओं से बरतानिया रक्षा करेगा’ भी शामिल है। गोवा में जन-आंदोलन जारी है कि भारत में विलय हो जाए। पुर्तगाल इस आंदोलन को रोकना चाहता है। पुर्तगाली प्रधानमंत्री सालाजार ने सन 1643 की इस संधि का आश्रय लेने की चाह प्रकट की है। विस्मृति का चमत्कार देखिए। सुलहनामे की अन्य शर्ते सालाजार पर लागू नहीं होतीं शायद। एक शर्त यह है कि जब भी बरतानिया के उपनिवेशों को खतरा पैदा होगा, पुर्तगाल बरतानिया की सहायता करेगा।

हिटलर मुसोलिनी-तोजो के आक्रमणों से बरतानिया के उपनिवेशों को ही नहीं, स्वयं बरतानिया की हस्ती को खतरा पैदा हो गया था। पुर्तगाल ने बरतानिया की सहायता नहीं की। फ्रैंको की छाया में बसे इस राष्ट्र ने चुपके-चुपके जितनी भी हो सकती थी, उतनी सहायता बरतानिया के शत्रुओं को दी। अगर संधि तब भंग नहीं हुई तो केवल विस्मृति के कारण। विस्मृति का यह दोष यहीं तक नहीं रुका। सालाजार ने उत्तरी अटलांटिक समझौते को तीन-तीन समुद्र पार हिंद महासागर तक पहुंचाने की धमकी दी है। सन 1642 की बात के कुछ हिस्से भूल जाएं तो उसमें स्वाभाविकता की बू है। लेकिन आज की जो भौगोलिक स्थिति है, उसे भुला देना विस्मृति की चरम सीमा है।

शकुंतला के पास अंगूठी थी जिसने अंत में सारी बिगड़ी बना दी; दुष्यंत की विस्मृति दूर कर! सालाजार की विस्मृति का इलाज भी हो रहा है और शीघ्र पूर्ण होगा। पर इलाज है अंगूठी से कम रोमांटिक और अधिक कठोर!

(रचनाकाल : 1950 का दशक)

Web Title: Vismriti ki Leela by Sharad Joshi

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