विनीत नारायण का ब्लॉग- शंख ध्वनि करने से वातावरण में उपस्थित नकारात्मक ऊर्जा और बैक्टीरिया का नाश होता है
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 26, 2020 15:56 IST2020-03-26T15:56:05+5:302020-03-26T15:56:05+5:30
आज पूरी दुनिया में हर वक्त हाथ धोने पर जोर दिया जा रहा है जबकि वैदिक संस्कृति में ये नियम पहले से हैं कि जब कभी बाहर से घर पर आएं तो हाथ, मुंह और पैर अच्छी तरह धोएं और अपने कपड़े धुलने डाल दें और घर के दूसरे वस्त्र पहनें.

शंख ध्वनि करने से वातावरण में उपस्थित नकारात्मक ऊर्जा और बैक्टीरिया का नाश होता है
विनीत नारायणः जब प्रधानमंत्री ने 22 मार्च को थाली या ताली बजाने का आवाह्न किया तो मैंने सोशल मीडिया पर अपील जारी की थी कि जिन घरों, मंदिरों, आश्रमों और संस्थाओं के पास शंख हैं वे 22 मार्च की शाम 5 बजे से 5 मिनट तक घर के बाहर आकर लगातार जोर से शंख ध्वनि करें. ऐसा वैज्ञानिक प्रयोगों से सिद्ध हो चुका है कि शंख ध्वनि करने से वातावरण में उपस्थित नकारात्मक ऊर्जा और बैक्टीरिया का नाश होता है. इसीलिए वैदिक संस्कृति में हर घर में सुबह-शाम, पवित्रता के साथ, शंख ध्वनि करने की व्यवस्था हजारों वर्षो से चली आ रही है, जिसका हम अपने घर में आज भी पालन करते हैं. अगर देश की कुछ मेडिकल रिसर्च यूनिट्स चाहें तो तैयारी कर लें. जिस तरह विश्व समुदाय ने मोदीजी की अपील पर योग दिवस और नमस्ते को अपनाया है, वैसे ही इस प्रयोग के सफल होने पर शायद विश्व समुदाय सनातन धर्म की इस दिव्य प्रथा को भी अपना ले. तब हर घर से हर दिन सुबह-शाम शंख ध्वनि सुनाई देने लगेगी. आज पूरी दुनिया में हर वक्त हाथ धोने पर जोर दिया जा रहा है जबकि वैदिक संस्कृति में ये नियम पहले से हैं कि जब कभी बाहर से घर पर आएं तो हाथ, मुंह और पैर अच्छी तरह धोएं और अपने कपड़े धुलने डाल दें और घर के दूसरे वस्त्र पहनें. इसी तरह जन्म और मृत्यु के समय सूतक लगने की परंपरा है. जिस परिवार में ऐसा होता है, उसे अपवित्र माना जाता है और अगर बधाई देने या संवेदना प्रकट करने ऐसे घर में जाते हैं, तो उनके घर का पानी तक नहीं पीते और अपने घर आकर स्नान कर कपड़े धुलने डाल देते हैं. ऐसा इसीलिए किया जाता है कि बाहर के वातावरण और ऐसे घरों में बीमारी के कीटाणुओं की बहुतायत रहती है. जिससे अपने बचाव के लिए यह व्यवस्था बनाई गई. पश्चिमी देशों में हाथ धोने का कतई रिवाज नहीं है. चाहे वे जूते का फीता खोलें या झाड़ू लगाएं या बाहर से खरीदकर सामान घर पर लाएं. वे लोग प्राय: हाथ नहीं धोते. उनके प्रभाव में हमारे देश में भी पढ़े-लिखे लोग इन बातों को दकियानूसी मानते हैं और इनका मजाक उड़ाते हैं. इतना ही नहीं अपनी संस्कृति में किसी का भी जूठा खाना वर्जित माना जाता है. प्राय: घरों में माता-पिता अपने अबोध बालकों का जूठा भले ही खा लें लेकिन एक-दूसरे का जूठा कोई नहीं खाता. जितना हम प्रकृति से दूर रहेंगे, उतना ही हमारा जीवन अप्रत्याशित खतरों से घिरा रहेगा इसलिए ‘जब जागो तभी सवेरा’.