विजय दर्डा का ब्लॉग: मनुष्य को दर्पण दिखाने वाला वर्ष

By विजय दर्डा | Updated: December 27, 2020 16:41 IST2020-12-27T16:31:41+5:302020-12-27T16:41:26+5:30

वर्ष 2020 अलविदा होने को है. शायद ही इसे कोई याद रखना चाहेगा लेकिन यह भी सच है कि वक्त के इतिहास में इस साल को भुला कर भी नहीं भुलाया जा सकता. इसने खौफ का ऐसा मंजर कायम किया, न जात-पांत, न धर्म और न ही हैसियत देखी. मनुष्य को एक संदेश भी दे गया कि तन कर खड़े मत रहो. एक हवा का झोंका आएगा और मैं-मैं करने वाले सब ढेर हो जाएंगे.

Vijay Darda Blog: Year 2020 Showing Mirror to everyone | विजय दर्डा का ब्लॉग: मनुष्य को दर्पण दिखाने वाला वर्ष

हम में से किसी ने भी 2020 जैसा खौफनाक वर्ष नहीं देखा लेकिन इसने मनुष्य को बहुत कुछ सिखाया भी

हमने अपनी सुविधा के लिए  भले ही कैलेंडर बना लिए हों, समय को वर्ष, महीने, दिन, घंटे, मिनटों और सेकेंड में बांट दिया हो लेकिन हकीकत में वक्त के केवल तीन पैमाने होते हैं- भूत काल यानी जो बीत गया, वर्तमान अर्थात वह पल जिसमें हम अभी हैं और तीसरा आने वाला वक्त जिसके बारे में कोई नहीं जानता! मौजूदा वक्त के कैनवास पर खड़े होकर मैं बीते हुए कल को याद कर रहा हूं जिसने पूरी दुनिया को जैसे मौत के कगार पर ला खड़ा किया. यह मनुष्य की ताकत और जज्बे की परीक्षा का साल रहा. लेकिन मुङो यह भी लगता है कि यह सृजनशीलता और वक्त के अनुरूप ढलने का साल भी रहा.

हर नए साल की अगवानी की तरह हम सभी ने वर्ष 2020 के स्वागत में भी खूब जश्न मनाया था. उम्मीदों की नई कोंपलें फूटी थीं. हालांकि तब तक यह खबर आने लगी थी कि एक अज्ञात वायरस ने चीन में दस्तक दे दी है लेकिन तब किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि यह वर्ष पूरी दुनिया के लिए इतना ज्यादा खौफनाक होगा! लाखों लोग मौत के मुंह में समा जाएंगे और यहां तक कि महाबली अमेरिका भी घुटने टेक देगा!

कोरोना का कहर 

वक्त ऐसा आ गया कि घर में दुबक जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा. देखते ही देखते अस्पताल भरने लगे, बेड की कमी पड़ने लगी. श्मशान और कब्रिस्तान में जगह कम पड़ने लगी. चारों तरफ हाहकाकार मचने लगा. भयभीत चेहरे की चीखें चारों ओर गूंजने लगीं. कहीं से आवाज आई- तू जाग और अपना साहस दिखा और फिर पुरुषार्थ लिए योद्धाओं की टीम मैदान में कूद पड़ी.

साहसियों का जज्बा मनुष्य में विश्वास पैदा करने लगा. डर का भूत भगाने का अभियान शुरू हो गया.जिस प्रकार से लोगों ने एक-दूसरे को संभाला वह इंसानी जज्बे की मिसाल है. दुनिया  के एक बड़े उद्योगपति ने मुझसे पूछा कि कैसा चल रहा है अखबार? मैंने कहा कि हालत खराब है, संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने बड़ी अच्छी बात कही कि यह धंधा करने का नहीं जिंदा रहने का वर्ष है. जिंदा रह जाओगे तो बहुत कुछ कमा लोगे! वाकई इस भयावह साल में हमने सेवा और जज्बे के प्रतिमानों का सृजन भी देखा. हमें तारीफ करनी होगी उन चिकित्सकों, पैरामेडिकल स्टाफ और अस्पताल में काम करने वाले दूसरे कर्मचारियों की, पुलिस की और पत्रकारों की जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर सेवा देने में अग्रणी भूमिका निभाई. कई तो अपनी जान भी गंवा बैठे. ऐसे सभी लोगों के प्रति वाकई पूरी इंसानियत नतमस्तक है.

संकट में एकजुटता का लाभ 

शुरुआती दौर में कुछ कमियां रह गई होंगी लेकिन उसके बाद सरकार के नेतृत्व में अधिकारियों ने जिस समर्पण से काम किया वह काबिले तारीफ है.  हमने सड़क पर घिसटते हुए मजदूरों के पांव देखे तो उन नायकों को भी देखा जो मदद के लिए नए प्रतिमान गढ़ने लगे. उन सेवाभावी संस्थाओं के कार्यो को भी देखा जिन्होंने मजदूरों के लिए जगह-जगह लंगर लगाए. उस बेटी का जज्बा भी देखा जिसने अपने पिता को साइकिल पर बिठाकर करीब 1200 किलोमीटर का सफर पूरा किया. ऐसे उदाहरणों से पूरा वक्त भरा पड़ा है. दुनिया भर के वैज्ञानिक एकजुट होकर कोरोना की वैक्सीन बनाने में जुट गए.कहने का आशय यह है कि मनुष्य ने यह साबित किया कि जब संकट आता है तो पूरी इंसानियत इससे जंग के लिए एकजुट हो जाती है. एकजुटता का तो लाभ मिलता ही है लेकिन यह तभी संभव है जब संकट के वक्त व्यक्ति धैर्य रखे और स्वयं को विचलित न होने दे. निजी तौर पर मैं कह सकता हूं कि वक्त को संभालना आसान काम नहीं था.

लोकमत परिवार के 3771 लोगों के मन से डर निकालना था और ढाढस बंधाना था. उन्हें बताना था कि वक्त आएगा जाएगा लेकिन हम जिंदा हैं तो कल हमारा है. आज जिंदा रहने का वक्त है. तकनीक के माध्यम से मैंने हर किसी से बात की. रिश्तेदारों और दोस्तों से और निकटता बनाई. बचे हुए वक्त में पेंटिंग की, जो काफी दिनों से छूट गई थी.  कविताएं और नज्में लिखीं. इस तरह खुद की रचनात्मकता को उभार कर मैंने वक्त का सदुपयोग किया.  निश्चय ही बहुत से लोगों ने ऐसा रास्ता निकाला और कोरोना से जंग में महती भूमिका निभाई.

और हां, चुनौतियों से भरे इस साल ने हमें बहुत कुछ सिखाया भी! यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि कोरोना से पहले हाथों की साफ-सफाई को लेकर तमाम सरकारी अभियानों के बावजूद ज्यादातर लोगों की रुचि नहीं हुआ करती थी. कोरोना ने हालात बदल दिए हैं.  सफाई के प्रति यह चेतना 2020 की सबसे बड़ी देन है. लॉकडाउन में कुछ महीनों के बंद ने ही प्रकृति को फिर से पुष्पित और पल्लवित होने का भरपूर मौका दे दिया. प्रदूषण जैसे गायब हो गया!

2020 ने हमें यह याद दिलाई भारतीय तहजीब

आकाश इतना साफ हो गया कि सैकड़ों किलोमीटर दूर से हिमालय पर्वत श्रृंखला दिखाई देने लगी लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि हमने प्रकृति को तबाह करने का काम फिर शुरू कर दिया है. प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ देश में सख्त नीति की जरूरत है. जो प्रदूषण फैलाते हैं वे दंड के पात्र हैं. कचरा इधर-उधर फेंकने वाले, कचरा जला कर वायु को प्रदूषित करने वाले, पेड़ काटने वाले और पशु-पक्षियों को नष्ट करने वाले हवस के सौदागर हैं. उनकी नकेल नहीं कसी गई तो वे समाज को भयंकर संकट में डाल देंगे. जो उद्योग-धंधे या वाहन प्रदूषण फैला रहे हैं उन पर भी सख्ती जरूरी है. मैं तो यह कहना चाहूंगा कि सरकार को हर साल एक सप्ताह के लिए लॉकडाउन लगाना चाहिए ताकि प्रकृति ठीक से सांस ले सके.

2020 ने हमें यह याद दिलाया कि हमारी भारतीय तहजीब सबसे बेहतर है. हाथ जोड़कर प्रणाम करना सोशल डिस्टेंसिंग की महत्ता का बड़ा उदाहरण है. अब दुनिया में लोग हाथ नहीं मिला रहे हैं, दूर से अभिवादन कर रहे हैं. वाकई बहुत कुछ सिखाया इस साल ने. सच कहें तो हमें दर्पण दिखा दिया कि प्रकृति के सामने मनुष्य की हैसियत क्या है. खुशी की बात है कि ताकत और जज्बे के इस इम्तिहान में मनुष्य एक बार फिर सफल हुआ है.

तो स्वस्थ रहिए, सानंद रहिए. एक दूसरे का खयाल रखिए. नया साल नई उम्मीदें लेकर आने वाला है. नए साल के लिए आपको ढेर सारी शुभकामनाएं और मंगलकामनाएं.

Web Title: Vijay Darda Blog: Year 2020 Showing Mirror to everyone

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