विजय दर्डा का ब्लॉग: जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली राजनीति क्यों?

By विजय दर्डा | Updated: December 13, 2020 16:28 IST2020-12-13T16:26:35+5:302020-12-13T16:28:27+5:30

पश्चिम बंगाल में राजनीति का जो चेहरा अभी दिखाई दे रहा है वह बहुत भयावह है. वहां लोकतंत्र नहीं बल्कि लाठियों की भाषा बोली जा रही है. वामपंथियों के जमाने में भी लाठियों की भाषा ही चलती थी लेकिन इस बार वहां का समाज भीषण सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की गिरफ्त में जकड़ता जा रहा है. टीएमसी और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच खूनी संघर्ष हो रहा है.

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लोकतंत्र में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं लेकिन पश्चिम बंगाल में दोहराया जा रहा है उपद्रव का इतिहास

पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक पुरानी कहावत बहुत प्रचलित है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस! यह दुर्भाग्य ही है कि राजनीतिक दल इस कहावत को हमेशा चरितार्थ भी कर रहे हैं. यह कहना बहुत मुश्किल है कि कौन दूध का धुला और कौन कालिख से लथपथ है. सब एक-दूसरे की ओर उंगली उठा रहे हैं और इन सबके बीच लोकतंत्र बुरी तरह आहत हो रहा है. राजनीतिक कार्यकर्ताओं की मौतें हो रही हैं. भावनाएं इतनी भड़की हुई हैं कि पूरा पश्चिम बंगाल दो फाड़ में बंटता नजर आ रहा है.  

पश्चिम बंगाल में विधानसभा के चुनाव अप्रैल-मई में होने वाले हैं लेकिन चुनावी गतिविधियां तेजी से चल रही हैं. भाजपा ने ममता बनर्जी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी है. ममता बनर्जी भी अपने तेवर में जवाब दे रही हैं और उनके सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती है. वे फायर ब्रांड नेता हैं और भाजपा के लिए उन्हें परास्त कर पाना कोई आसान काम नहीं होने वाला है. वे पश्चिम बंगाल की राजनीति के सारे पैंतरे जानती हैं. वहां सिद्धार्थ शंकर रे के समय वामपंथियों ने हिंसा की बदौलत कांग्रेस को धूल चटा दी थी और उन्हीं वामपंथियों की सत्ता ममता ने अपने बलबूते उखाड़ फेंकी. ममता पर न जाने कितने हमले हुए. डंडे खाए लेकिन वे डिगीं नहीं. भाजपा को ममता की तासीर पता है.  केंद्र में भाजपा ने ममता के साथ सत्ता को शेयर भी किया था.

ये टल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की भाजपा नहीं

ममता भी यह जानती हैं कि ये अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की भाजपा नहीं है. यह नरेंद्र मोदी और अमित  शाह की पार्टी है. ममता को पटखनी देने के लिए चुनाव से काफी पहले से पश्चिम बंगाल में भाजपा के बड़े नेताओं की सभाएं हो रही हैं. यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी पूरी ताकत झोंक रखी है. सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी पश्चिम बंगाल का दौरा किया है और बैठकें ली हैं. भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने तो जैसे वहां डेरा ही डाल रखा है.  

डायमंड हार्बर संसदीय क्षेत्र में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के काफिले पर हमला हुआ तो स्वाभाविक तौर पर पूरे देश की राजनीति गर्मा गई. इस हमले में कैलाश विजयवर्गीय को भी चोटें आईं. इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रलय ने इस मामले को लेकर पश्चिम बंगाल के चीफ सेक्रेटरी अलापन बंदोपाध्याय और डीजीपी वीरेंद्र को तलब किया लेकिन चीफ सेक्रेटरी ने यह कहकर मना कर दिया कि उन्हें कोलकाता में अधिकारियों की एक बैठक में उपस्थित रहना है, इसलिए वे दिल्ली नहीं आ पाएंगे. ममता बनर्जी की तरफ से यह एक संदेश है कि केंद्र का हस्तक्षेप वे कतई बर्दाश्त नहीं करेंगी. इस बीच पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने केंद्र को एक रिपोर्ट भी इस संबंध में भेजी है. उनके रुख पर भी सवाल उठ रहे हैं.

ममता बनर्जी ने केंद्रीय गृह मंत्रलय को नहीं दिया कोई जवाब 

इधर केंद्रीय गृह मंत्रलय की ओर से मांगी गई रिपोर्ट का ममता बनर्जी ने कोई जवाब नहीं दिया. हां केंद्रीय गृह मंत्रलय ने उन तीन आईपीएस अधिकारियों को जरूर वापस बुला लिया है जिन पर नड्डा की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी. राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि नड्डा पर हमले के बाद पश्चिम बंगाल में केंद्र सरकार ने जो रुख दिखाया है वह भारत की संघीय व्यवस्था के खिलाफ है. किसी राज्य में जब कोई सरकार चुनकर आ जाती है तो पूरे पांच साल उसे शांति से काम करने देना चाहिए. उसमें बाधा उत्पन्न नहीं करनी चाहिए.  

जहां तक नड्डा पर हमले का सवाल है तो भाजपा कह रही है कि हमला सुनियोजित था क्योंकि वह इलाका ममता बनर्जी के भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी का संसदीय क्षेत्र है. हमले के बाद कैलाश विजयवर्गीय ने कहा भी कि भतीजे ने अपराधियों के सहारे हमें खत्म करने का प्रयास किया है. मगर तृणमूल कांग्रेस ने पलटवार किया कि भाजपा ने यह हमला खुद करवाया! ममता ने तो यहां तक कह दिया कि कई बार रैलियों में भीड़ न जुटे तो सुर्खियों में आने के लिए भी इस तरह के नाटक किए जाते हैं.

लोकसभा चुनाव के दौरान अमित शाह की रैली पर भी हमला

बहरहाल हमले की यह पहली वारदात नहीं है. जब ममता बनर्जी ने वामपंथी सरकार को चुनौती दी थी तो उन पर भी कई हमले हुए थे. उनकी गाड़ी पर बम भी फेंके गए थे.  पिछले साल मई में लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह की रैली पर भी हमला हुआ था. भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच अच्छी खासी झड़प हुई थी. करीब 100 लोग गिरफ्तार हुए थे. लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि उसी झड़प के दौरान ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़ दी गई.

पश्चिम बंगाल में महान समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर से लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं इसलिए दोनों ही दलों ने मूर्ति तोड़ने का आरोप एक-दूसरे पर मढ़ दिया. मैं यहां एक जानकारी आपको देना चाहूंगा कि सत्तर के दशक में पश्चिम बंगाल में नक्सली काफी मजबूत स्थिति में थे और एक बड़ा तबका उनके साथ था लेकिन उसी दौरान उन्होंने ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़ दी थी. उसके बाद नक्सलवाद पूरे पश्चिम बंगाल में अलग-थलग पड़ गया. लोगों ने नक्सलबाड़ी आंदोलन से मुंह मोड़ लिया. इस बार अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि मूर्ति किसने तोड़ी.

बीजेपी की कोशिश जारी 

बहरहाल भाजपा इस बात की भरपूर कोशिश कर रही है कि आने वाला चुनाव धार्मिक आधार पर लड़ा जाए. अनुमान है कि जो पचास से साठ लाख लोग बांग्लादेश से आकर भारत में बस गए उनका परिवार ममता बनर्जी की ताकत बन चुका है. इसमें केवल मुस्लिम ही नहीं बल्कि बंगाली हिंदू भी हैं. इन बंगाली हिंदुओं को अपनी तरफ करना भाजपा के लिए मुश्किल हो रहा है क्योंकि वह सीएए यानी सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट लागू करने की बात कर चुकी है. इसलिए बांग्लादेश से आए हिंदू भी बिदक गए हैं.

आक्रोश बढ़ रहा है और अब हालात ऐसे हो गए हैं कि विभिन्न स्थानों पर टीएमसी और भाजपा  के बीच हिंसक झड़पें बढ़ रही हैं. यह स्थिति चिंताजनक है. लोकतंत्र में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. मैं यह नहीं कह सकता कि कौन गलत है और कौन सही है? लेकिन यह जरूर कहना चाहूंगा कि जो हो रहा है वह ठीक नहीं है. घायल करने के लिए हिंसा चेहरा नहीं देखती और सांप्रदायिकता के नाखून बढ़ते हैं तो खरोंच सबको लगती है.


 

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