वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: कोरोना संकट में दरियादिली दिखाएं अमीर देश

By वेद प्रताप वैदिक | Published: May 10, 2021 12:43 PM2021-05-10T12:43:03+5:302021-05-10T12:46:46+5:30

कोरोना संकट के इस दौर में वैक्सीन उम्मीद की एक किरण के तौर पर दिख रही है। ऐसे में कोरोना के टीके पर कुछ देशों का एकाधिकार इस महामारी के खिलाफ दुनिया की लड़ाई को कमजोर बना सकता है।

Vedpratap Vaidik blog: Rich countries should show generosity on vaccine amid Corona crisis | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: कोरोना संकट में दरियादिली दिखाएं अमीर देश

कोरोना संकट के बीच अमीर देश से मदद उम्मीदें

ऐसा लगता है कि भारत और दक्षिण अफ्रीका की पहल अब परवान चढ़ जाएगी. पिछले साल अक्टूबर में इन दोनों देशों ने मांग की थी कि कोरोना के टीके का एकाधिकार खत्म किया जाए और दुनिया का जो भी देश यह टीका बना सके, उसे यह छूट दे दी जाए. 

विश्व व्यापार संगठन के नियम के अनुसार कोई भी किसी कंपनी की दवाई की नकल तैयार नहीं कर सकता है. प्रत्येक कंपनी किसी भी दवा पर अपना पेटेंट करवाने के पहले उसकी खोज में लाखों-करोड़ों डॉलर खर्च करती है. दवा तैयार होने पर उसे बेचकर वह मोटा फायदा कमाती है. यह फायदा वह दूसरों को क्यों उठाने दें? 

इसीलिए पिछले साल भारत और द. अफ्रीका की इस मांग के विरोध में अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, जापान, स्विट्जरलैंड जैसे देश उठ खड़े हुए. ये समृद्ध देश अपनी गाढ़ी कमाई को लुटते हुए कैसे देख सकते थे. लेकिन पाकिस्तान, मंगोलिया, कीनिया, बोलीविया और वेनेजुएला जैसे देशों ने इस मांग का समर्थन किया. 

अब खुशी की बात यह है कि अमेरिका के बाइडेन प्रशासन ने ट्रम्प की नीति को उलट दिया है. अमेरिका यदि अपना पेटेंट छोड़ने को तैयार है तो अन्य राष्ट्र भी उसका अनुसरण क्यों नहीं करेंगे? अब ब्रिटेन और फ्रांस जैसे राष्ट्रों ने भी भारत के समर्थन की इच्छा जाहिर की है. क्यों की है? क्योंकि अब दुनिया को पता चल गया है कि कोरोना की महामारी इतनी तेजी से फैल रही है कि मालदार देशों की आधा दर्जन कंपनियां 6-7 अरब टीके पैदा नहीं कर पाएंगी. 

कनाडा, बांग्लादेश और दक्षिण कोरिया- जैसे लगभग आधा दर्जन देश ऐसे हैं, जो कोरोना का टीका बना लेंगे. लेकिन यह जरूरी है कि उन्हें पेटेंट का उल्लंघन न करना पड़े. विश्व स्वास्थ्य संगठन के 164 सदस्य देशों में से अगर एक देश ने भी आपत्ति कर दी तो यह अनुमति उन्हें नहीं मिलेगी. जर्मनी आपत्ति कर रहा है. 

उसका तर्क यह है कि दुनिया की कई कंपनियां ये टीके नहीं बना पाएंगी, क्योंकि उनके पास इसका कच्चा माल नहीं होगा, तकनीक नहीं होगी और कारखाने नहीं होंगे. डर यही है कि अधकचरे और नकली टीकों से दुनिया के बाजार भर जाएंगे और मरने वाले मरीजों की संख्या बढ़ जाएगी. 

यह तर्क निराधार नहीं है लेकिन जिस देश की कंपनी भी ये टीके बनाएगी, वह मूल कंपनी के निर्देशन में बनाएगी और उस देश की सरकार की कड़ी निगरानी में बनाएगी. उन टीकों की कीमत भी इतनी कम होगी कि गरीब देश भी अपने नागरिकों को उन्हें मुफ्त में बांट सकेंगे. इस समय उन्नत देशों से आशा की जाती है कि वे दरियादिली दिखाएंगे.

Web Title: Vedpratap Vaidik blog: Rich countries should show generosity on vaccine amid Corona crisis

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे