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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः भारत बने चिकित्सा का वैश्विक केंद्र

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: April 23, 2022 15:11 IST

पड़ोसी देशों के लाखों-करोड़ों नागरिक इस पारंपरिक चिकित्सा के मुरीद हैं। यह चिकित्सा एलोपैथी के मुकाबले बहुत सस्ती है। इसका लाभ पड़ोसी देशों के मध्यम और गरीब वर्ग के लोग भी उठा सकें, इसका इंतजाम भारत सरकार को करना चाहिए।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को विश्वस्तरीय बनाने के लिए गुजरात के जामनगर से एक नए अभियान का सूत्रपात किया। उन्होंने कहा है कि भारत के इस आयुष-अभियान में आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी आदि सभी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों का योगदान होगा। इन चिकित्सा पद्धतियों को विश्वव्यापी बनाने के लिए कुछ नए कदम भी उठाए जाएंगे, जिसका नाम होगा- आयुष वीजा। यहां मेरा सुझाव यह है कि इस आयुष-वीजा का शुल्क सामान्य वीजा शुल्क से आधा क्यों नहीं कर दिया जाए? पड़ोसी देशों के लाखों-करोड़ों नागरिक इस पारंपरिक चिकित्सा के मुरीद हैं। यह चिकित्सा एलोपैथी के मुकाबले बहुत सस्ती है। इसका लाभ पड़ोसी देशों के मध्यम और गरीब वर्ग के लोग भी उठा सकें, इसका इंतजाम भारत सरकार को करना चाहिए।

पड़ोसी देशों के जिन लोगों का भारत में सफल इलाज होता है, वे और उनके परिवार के लोग सदा के लिए भारतभक्त बन जाते हैं। यह बात मैं अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूं। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है कि हमारी औषधियों पर सरकार एक ‘आयुष चिह्न’ भी जारी करेगी, जो उनकी प्रामाणिकता की गारंटी होगी। भारत की पारंपरिक औषधियों का प्रचलन सभी पड़ोसी देशों में लोकप्रिय है। यहां तक कि चीन में भी ऐसी भारतीय औषधियां मैंने देखी हैं, जिनके नाम चीनी वैद्यों ने अभी तक मूल संस्कृत में ही रखे हुए हैं। हमारी आयुष औषधियों का व्यापार पिछले 7 वर्षों में तीन अरब से बढ़कर 18 अरब डॉलर का हो गया है। यदि भारत के हर जिले में पारंपरिक चिकित्सा केंद्र खुल जाएं तो भारत की आमदनी खरबों डॉलर तक पहुंच सकती है। चिकित्सा-पर्यटन की दृष्टि से भारत दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बन सकता है। भारत में लाखों-करोड़ों नए रोजगार पैदा हो सकते हैं। ऐसे आयुष-केंद्र सभी पड़ोसी देशों में भारत खोल सकता है। सात साल बीत रहे हैं लेकिन जो काम अभी तक अधूरा पड़ा हुआ है, सरकार उसे भी पूरा करने की ठान ले तो सारे विश्व में भारत का डंका बजने लगेगा। 

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