वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: हमारी अद्भुत सामाजिक विरासत

By वेद प्रताप वैदिक | Published: February 25, 2020 07:19 AM2020-02-25T07:19:04+5:302020-02-25T07:19:04+5:30

उत्तर प्रदेश के एक गांव में एक मुस्लिम परिवार के बेटे ने अपने पिता के एक हिंदू दोस्त की अपने घर में रखकर खूब सेवा की और उनके निधन पर उनके पुत्न की तरह उनके अंतिम संस्कार की सारी हिंदू रस्में अदा कीं.

Vedapratap Vedic's blog: Our amazing social heritage | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: हमारी अद्भुत सामाजिक विरासत

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: हमारी अद्भुत सामाजिक विरासत

भारत के कुछ नेता दोनों संप्रदायों की राजनीति जमकर कर रहे हैं लेकिन देश के ज्यादातर हिंदू और मुसलमानों का रवैया क्या है? अद्भुत है. उसकी मिसाल दुनिया में कहीं और मिलना मुश्किल है. कुछ दिन पहले मैंने तीन लेख लिखे थे. एक में बताया था कि वाराणसी में संस्कृत के मुसलमान प्रोफेसर के पिता गायक हैं और वे हिंदू मंदिरों में जाकर अपने भजनों से लोगों को विभोर कर देते हैं.

दूसरे लेख में बताया था कि उत्तर प्रदेश के एक गांव में एक मुस्लिम परिवार के बेटे ने अपने पिता के एक हिंदू दोस्त की अपने घर में रखकर खूब सेवा की और उनके निधन पर उनके पुत्न की तरह उनके अंतिम संस्कार की सारी हिंदू रस्में अदा कीं. तीसरे लेख में था कि कर्नाटक के एक लिंगायत मठ में एक मुस्लिम को मठाधीश नियुक्त किया गया है लेकिन अब सुनिए नई कहानी. ग्रेटर नोएडा के रिठौड़ी गांव में एक भव्य मस्जिद बन रही है. उसकी नींव गांव के हिंदुओं ने छह माह पहले रखी थी. इस गांव में बसने वाले हर हिंदू परिवार ने अपनी-अपनी श्रद्धा और हैसियत के हिसाब से मस्जिद के लिए दान दिया है.

पांच हजार लोगों के इस गांव में लगभग डेढ़ हजार मुसलमान रहते हैं. ये लोग एक-दूसरे के त्यौहार मिल-जुलकर मनाते हैं. इस गांव में कभी कोई सांप्रदायिक तनाव नहीं हुआ. सभी लोग एक बड़े परिवार की तरह रहते हैं, जबकि दोनों की पूजा-पद्धति, भोजन, पहनावे और तीज-त्यौहारों में भिन्नता है.

क्या हम 21 वीं सदी में ऐसे ही भारत का उदय होते नहीं देखना चाहते? मैं तो चाहता हूं कि पाक, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और मालदीव में भी यही संस्कृति पनपे. इस रिठौड़ी गांव में इस महाशिवरात्रि पर एक नए मंदिर की नींव भी रखी गई. गांव के मुसलमानों ने उत्साह पूर्वक इसमें हाथ बंटाया. पूजा-पद्धतियों और पूजागृहों में जो फर्क है, यह देश और काल की विविधता के कारण है. यह फर्क मनुष्यकृत है, ईश्वरकृत नहीं. इस सत्य को यदि दुनिया के सारे ईश्वर भक्त समझ लें तो यह दुनिया स्वर्ग बन जाए.

Web Title: Vedapratap Vedic's blog: Our amazing social heritage

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