वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: पिता की संपत्ति में बेटियां हकदार, लेकिन मुश्किलें अनेक हैं

By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 14, 2020 01:42 PM2020-08-14T13:42:24+5:302020-08-14T13:42:24+5:30

सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों को अपने पिता की संपत्ति में बराबरी का हकदार बना दिया है, लेकिन इसके बावजूद अनेक मुश्किलें हैं।

Vedapratap Vedic's blog: Daughters are entitled in father's property, but difficulties are many | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: पिता की संपत्ति में बेटियां हकदार, लेकिन मुश्किलें अनेक हैं

सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबर का हकदार बना दिया है। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

सर्वोच्च न्यायालय के ताजा फैसले ने देश की बेटियों को अपने पिता की संपत्ति में बराबरी का हकदार बना दिया है. पहले भी बेटियों को अपनी पैतृक संपत्ति का अधिकार दिया गया था, लेकिन उसमें कई किंतु-परंतु लग रहे थे.

हिंदू कानून में यह माना जाता रहा है कि बेटी का ज्यों ही विवाह हुआ, वह पराई बन जाती है. मां-बाप की संपत्ति में उसका कोई अधिकार नहीं रहता. पीहर के मामलों में उसका कोई दखल नहीं होता. लेकिन अब पैतृक संपत्ति में बेटियों का अधिकार बेटों के बराबर ही होगा.

यह फैसला नर-नारी समता का संदेशवाहक है. यह स्त्रियों के सम्मान और सुविधाओं की रक्षा करेगा. उनका आत्मविश्वास बढ़ाएगा. इस फैसले का सबसे बड़ा संदेश तो यह है कि यदि हिंदू कानून में सुधार हो सकता है तो अन्य धर्मो के कानूनों में सुधार क्यों नहीं हो सकता? सारे कानूनों पर देश में खुली बहस चले ताकि समान नागरिक संहिता का मार्ग प्रशस्त हो.

यह ऐतिहासिक फैसला कई नए प्रश्नों को भी जन्म देगा. जैसे पिता की संपत्ति पर तो उसकी संतान का बराबर अधिकार होगा लेकिन क्या यह नियम माता की संपत्ति पर भी लागू होगा? आजकल कई लोग कई-कई कारणों से अपनी संपत्तियां अपने नाम पर रखने की बजाय अपनी पत्नी के नाम करवा देते हैं. क्या ऐसी संपत्तियों पर भी अदालत का यह नया नियम लागू होगा? क्या सचमुच सभी बहनें अपने भाइयों से अब पैतृक-संपत्ति देने का आग्रह करेंगी? 

क्या वे अदालतों की शरण लेंगी? यदि हां, तो यह निश्चित जानिए कि देश की अदालतों में हर साल लाखों मामले बढ़ते चले जाएंगे. यदि बहनें अपने भाइयों से संपत्ति के बंटवारे का आग्रह नहीं भी करें तो भी उनके पति और उनके बच्चे ऐसा कर सकते हैं. दूसरे शब्दों में यह नया अदालती फैसला पारिवारिक झगड़ों की सबसे बड़ी जड़ बन सकता है. क्या हमारी न्यायप्रणाली में इतनी क्षमता है कि इन मुकदमों को वह साल-छह महीने में निपटा सके?

इन मुकदमों के चलते-चलते पीढ़ियां निकल जाएंगी. बेटियों का पीहर से कोई औपचारिक आर्थिक संबंध नहीं रहे, शायद इसीलिए दहेज-प्रथा भी चली थी. दहेज-प्रथा तो अभी भी मजबूत है लेकिन अब राखी का क्या होगा? मुकदमा करने वाली बहन से क्या कोई भाई राखी बंधवाएगा?

भाई यह दावा कर सकता है कि पिता के संपत्ति-निर्माण में उसकी अपनी भूमिका सर्वाधिक रही है, उसमें बहन या बहनोई दखलंदाजी क्यों करें? इस समस्या का तोड़ यह भी निकाला जाएगा कि पिता अपनी संपत्तियां अपने नाम करवाने की बजाय पहले दिन से ही अपने बेटों के नाम करवाने लगेंगे. यह ऐसा ही नहीं हो जाएगा कि तू डाल-डाल तो हम पात-पात!

Web Title: Vedapratap Vedic's blog: Daughters are entitled in father's property, but difficulties are many

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