वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राजनेताओं के भरोसे न रहें किसान

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: December 11, 2020 14:27 IST2020-12-11T14:24:23+5:302020-12-11T14:27:57+5:30

दिल्ली की सीमा पर डटे किसान अभी झुकने के मूड में नहीं हैं। दूसरी ओर अब तक कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और गृहमंत्री अमित शाह का रवैया काफी लचीला और समझदारी का रहा है।

Vedapratap Vedic blog: Farmers should not get dependent on politicians | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राजनेताओं के भरोसे न रहें किसान

'किसानों को सरकार के प्रस्ताव पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है' (फाइल फोटो)

Highlightsसरकार के भेजे प्रस्ताव पर किसानों को गंभीरता से है विचार करने की जरूरतभारत बंद सिर्फ पंजाब और हरियाणा और दिल्ली के सीमांतों में सिमटकर रह गया देश के 94 प्रतिशत किसानों का न्यूनतम समर्थन मूल्य से कुछ लेना-देना नहीं

किसान नेताओं को सरकार ने जो सुझाव भेजे हैं, वे काफी तर्कसंगत और व्यवहारिक हैं. किसानों के इस डर को बिल्कुल दूर कर दिया गया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म होने वाला है. वह खत्म नहीं होगा. सरकार इस संबंध में लिखित आश्वासन देगी. 

कुछ किसान नेता चाहते हैं कि इस मुद्दे पर कानून बने. यानी जो सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य से कम पर खरीदी करे, उसे जेल जाना पड़े. ऐसा कानून यदि बनेगा तो वे किसान भी जेल जाएंगे जो अपना माल निर्धारित मूल्य से कम पर बेचेंगे. क्या इसके लिए नेता तैयार हैं?

इसके अलावा सरकार सख्त कानून तो जरूर बना दे लेकिन वह निर्धारित मूल्य पर गेहूं और धान खरीदना बंद कर दे या बहुत कम कर दे तो ये किसान नेता क्या करेंगे? ये अपने किसानों का हित कैसे साधेंगे? 

सरकार ने किसानों की यह बात भी मान ली है कि अपने विवाद सुलझाने के लिए वे अदालत में जा सकेंगे यानी वह सरकारी अफसरों की दया पर निर्भर नहीं रहेंगे. यह प्रावधान तो पहले से ही है कि जो भी निजी कंपनी किसानों से अपने समझौते को तोड़ेगी, वह मूल समझौते की रकम से डेढ़ गुना राशि का भुगतान करेगी. 

इसके अलावा मंडी-व्यवस्था को भंग नहीं किया जा रहा है. जो बड़ी कंपनियां या उद्योगपति या निर्यातक लोग किसानों से समझौते करेंगे, वे सिर्फ फसलों के बारे में होंगे. उन्हें किसानों की जमीन पर कब्जा नहीं करने दिया जाएगा. इसके अलावा भी यदि किसान नेता कोई व्यावहारिक सुझाव देते हैं तो सरकार उन्हें मानने को तैयार है.

अब तक कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और गृहमंत्री अमित शाह का रवैया काफी लचीला और समझदारी का रहा है लेकिन कुछ किसान नेताओं के बयान काफी उग्र हैं. क्या उन्हें पता नहीं है कि उनका भारत बंद सिर्फ पंजाब और हरियाणा और दिल्ली के सीमांतों में सिमटकर रह गया है? 

देश के 94 प्रतिशत किसानों का न्यूनतम समर्थन मूल्य से कुछ लेना-देना नहीं है. बेचारे किसान यदि विपक्षी नेताओं के भरोसे रहेंगे तो उन्हें बाद में पछताना ही पड़ेगा. राष्ट्रपति से मिलने वाले प्रमुख नेता वही हैं, जिन्होंने मंडी-व्यवस्था को खत्म करने का नारा दिया था. किसान अपना हित जरूर साधें लेकिन अपने आप को इन नेताओं से बचाएं.

Web Title: Vedapratap Vedic blog: Farmers should not get dependent on politicians

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