वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः महिलाओं का मंदिर प्रवेश
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: February 8, 2019 05:11 IST2019-02-08T05:11:01+5:302019-02-08T05:11:01+5:30
हिंदुत्व की रक्षा के नाम पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठन भी इस मामले में कूद पड़े. इनमें से कोई भी यह नहीं बता सका कि रजस्वला महिलाओं (10 से 50 साल) का मंदिर में प्रवेश निषिद्ध क्यों है?

फाइल फोटो
केरल के सबरीमला मंदिर का संचालन करने वाले त्रवणकोर देवस्वम बोर्ड ने अचानक शीर्षासन कर दिया है. जब देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सितंबर 2018 में हर उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दे दी थी, तब इस संचालन-मंडल ने तो उस निर्णय का विरोध किया ही, उसके साथ केरल की भाजपा और कांग्रेस इकाई ने भी उसकी धज्जियां उड़ा दी थीं. इन राजनीतिक दलों ने अदालत के फैसले का विरोध किया, धरने दिए, प्रदर्शन किए और सभाएं कीं.
हिंदुत्व की रक्षा के नाम पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठन भी इस मामले में कूद पड़े. इनमें से कोई भी यह नहीं बता सका कि रजस्वला महिलाओं (10 से 50 साल) का मंदिर में प्रवेश निषिद्ध क्यों है? इस पाखंड का केरल की मार्क्सवादी सरकार ने डटकर विरोध किया. उसने मंदिर-प्रवेश के समर्थन में लाखों महिलाओं की मानव-श्रृंखला खड़ी कर दी थी. लेकिन देश की राजनीति में इतनी गिरावट आ गई है कि किसी भी उल्लेखनीय नेता ने महिला अधिकार के इस मामले का समर्थन नहीं किया.
भारत की राजनीति सिर्फ वोट और नोट बटोरने का धंधा बनकर रह गई है. सर्वोच्च न्यायालय में 60 से भी ज्यादा याचिकाएं इसलिए लगा दी गईं कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करे. सबरीमला मंदिर के बोर्ड के इस ताजा फैसले ने इन याचिकाओं को पंक्चर कर दिया है. दो बहादुर महिलाओं ने पहले ही मंदिर-प्रवेश करके दिखा दिया है. अब 12 फरवरी से शुरू होनेवाले कुंभम् उत्सव के मौके पर सैकड़ों-हजारों महिलाएं मंदिर प्रवेश करेंगी.
केरल सरकार को सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करना होगा और मैं आशा करता हूं कि हमारे हिंदुत्ववादी संगठन और राजनीतिक दल अपने दुराग्रह से मुक्त हो जाएंगे.