वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: हिंदी- मन की बात से बंधी उम्मीद

By वेद प्रताप वैदिक | Published: March 1, 2022 01:08 PM2022-03-01T13:08:39+5:302022-03-01T13:10:39+5:30

देश की संसद के कानून अभी भी अंग्रेजी में ही बनते हैं. अदालतों की बहस और फैसले अंग्रेजी में ही होते हैं. जब सारे कार्य अंग्रेजी में ही चलते रहेंगे तो मातृभाषाओं को कौन पूछेगा?

Ved pratap Vaidik blog: hope again increases with PM Narendra Modi Mann Ki Baat on Hindi language development | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: हिंदी- मन की बात से बंधी उम्मीद

हिंदी भाषा पर जोर जरूरी (फाइल फोटो)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सात-आठ वर्षो में न जाने कितनी बार अपने ‘मन की बात’ आकाशवाणी से प्रसारित की है. लेकिन इस बार उन्होंने जो मन की बात कही है, वह वास्तव में मेरे मन की बात है. मातृभाषा दिवस पर ऐसी बात अब तक किसी प्रधानमंत्री ने की हो, ऐसा मुझे याद नहीं पड़ता. 

मोदी ने मातृभाषा के प्रयोग पर जोर देने के लिए सारे भारतीयों का आह्वान किया है. लेकिन उनसे मैं पूछना चाहता हूं कि पिछले 7-8 साल में सरकारी कामकाज में मातृभाषाओं का कितना काम-काज बढ़ा है. अभी भी हमारे विश्वविद्यालयों में ऊंची पढ़ाई और शोध-कार्य की भाषा अंग्रेजी ही है. देश की संसद के कानून अभी भी अंग्रेजी में ही बनते हैं. हमारी अदालतों की बहस और फैसले अंग्रेजी में ही होते हैं. जब सारे महत्वपूर्ण कार्य अंग्रेजी में ही चलते रहेंगे तो मातृभाषाओं को कौन पूछेगा? अंग्रेजी महारानी और सारी मातृभाषाएं उसकी नौकरानियां बनी रहेंगी.

अपने पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ज.प्र. नड्डा और डॉ. हर्षवर्धन ने मुझसे वायदा किया था कि मेडिकल की पढ़ाई वे हिंदी में शुरू करवाएंगे लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक कुछ नहीं किया. हां, मध्यप्रदेश की चौहान-सरकार इस मामले में चौहानी दिखा रही है. उसके स्वास्थ्य मंत्री विश्वास नारंग की पहल पर मेडिकल की पाठ्यपुस्तकें अब हिंदी में तैयार हो रही हैं. मैंने और सुदर्शनजी ने अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय भोपाल में इसी लक्ष्य के लिए बनवाया था लेकिन वह भी अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाया. 

राष्ट्रभाषा हिंदी में कम से कम यह बुनियादी काम तो शुरू किया जाना चाहिए था. इस काम की आशा मैं डॉ. मनमोहन सिंह से तो कतई नहीं कर सकता था लेकिन यदि यह काम नरेंद्र मोदी जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक नहीं करवा सकते तो कौन करवा सकता है? मोदी को यह भी पता होना चाहिए कि चीनी भाषा (मेंडारिन) चीन में ही सर्वत्र न समझी जाती है और न ही बोली जाती है. 

चीन के सैकड़ों गांवों और शहरों में घूम-घूमकर मैंने यह अनुभव किया है. जबकि भारत ही नहीं, दुनिया के लगभग दर्जन भर देशों में हिंदी बोली और समझी जाती है. हमारे नेता जिस दिन नौकरशाहों के वर्चस्व से मुक्त होंगे, उसी दिन हिंदी को उसका उचित स्थान मिल जाएगा.

Web Title: Ved pratap Vaidik blog: hope again increases with PM Narendra Modi Mann Ki Baat on Hindi language development

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