ब्लॉग: भौतिक-आध्यात्मिक जीवन को जोड़ते हैं तुलसी
By गिरीश्वर मिश्र | Published: August 23, 2023 09:35 AM2023-08-23T09:35:06+5:302023-08-23T09:40:26+5:30
तुलसीदासजी के राम हम सबके घर के सदस्य सरीखे हैं. उनके लिए कोई ‘पर’ या ‘इतर’ (दूसरा) नहीं है. सभी उनके निकट है और अपने हैं. राम जीवन की हर कठिनाई को झेलने वाले व्यक्ति हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम हैं पर जीवन में शायद ही कोई ऐसा कष्ट होगा जो वे नहीं झेलते हैं.
गोस्वामी तुलसीदासजी भौतिक-सामाजिक विश्व तथा आध्यात्मिक जीवन, दोनों को जोड़ते हैं. वस्तुतः उनके यहां आध्यात्मिक और भौतिक की स्वतंत्र या निरपेक्ष सत्ता ही नहीं है. उनकी राम कथा में देवता, ईश्वर, मनुष्य, वानर, पक्षी, राक्षस सभी भाग लेते हैं.
ऐसे होती थी तुलसीदासजी की कथा
ये सभी पात्र परस्पर गुंथे हुए हैं और राम-कथा यह बताती है कि पूरी सृष्टि को साथ में लेकर कैसे चला जाए और उन सबके बीच कैसे सार्थक संवाद स्थापित हो. कथा भी ऐसी है कि सतत जिज्ञासा बनी रहती है कि अभी जो हुआ है उसके बाद आगे क्या घटित होगा?
अभी संध्या को तय हो रहा था कि सुबह राम का राजतिलक होगा और अकस्मात् एक घटना घटित होती है जो पूरी कथा की दिशा ही बदल देती है. फिर निर्णय होता है कि राज्याभिषेक की जगह राम का वनवास होगा और वे चौदह वर्षों के लिए वन जाएंगे.
सही से जीवन जीने के लिए रामायण में क्या कहा गया है
ऐसे ही अनेक स्थलों पर निर्णायक परिवर्तनों को इस रामायणी कथा में पिरोया गया है. इन प्रसंगों का प्रयोजन मूलतः इस प्रश्न से जुड़ा हुआ है कि परिवर्तनशील संसार में कैसे जिया जाए? बदलती हुई परिस्थितियों में कैसे जिया जाए? उथल-पुथल के बीच समरसता या साम्य की स्थिति कैसे लाई जाए? रामायण में परिवर्तन का एक सुंदर रूपक गढ़ा गया है.
शिव-पार्वती का विवाह हेमंत ऋतु है, राम-जन्म शिशिर है, राम-सीता का विवाह वसंत है, वन-गमन ग्रीष्म ऋतु है, राक्षसों से युद्ध वर्षा ऋतु है, और राम-सीता की अयोध्या वापसी शीत ऋतु है. प्रकृति में जो परिवर्तन हो रहा है, वह ऋतु में, स्वभाव में, जीवन की घटनाओं में समानांतर रूप से अभिव्यक्त है. अत: जीवन में जो उतार-चढ़ाव है उनको अविचल भाव से स्वीकार करना चाहिए.
जीवन की हर कठिनाई को झेलने वाले है व्यक्ति हैं राम
तुलसीदासजी के राम हम सबके घर के सदस्य सरीखे हैं. उनके लिए कोई ‘पर’ या ‘इतर’ (दूसरा) नहीं है. सभी उनके निकट है और अपने हैं. राम जीवन की हर कठिनाई को झेलने वाले व्यक्ति हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम हैं पर जीवन में शायद ही कोई ऐसा कष्ट होगा जो वे नहीं झेलते हैं.
जीवन की परीक्षा में खरे उतरते हैं राम
हर तरह से उनकी परीक्षा ली जाती है. वे जीवन में हमेशा कसौटी पर कसे जाते हैं. नित्य नई स्थितियों में ही उत्कृष्टता की ओर कदम आगे बढ़ते हैं. एक दु:ख खत्म भी नहीं होता है कि दूसरा आ जाता है. संघर्षमयता ही जीवन की परिभाषा बन गई है.
जीवन पर क्या कहते है तुलसीदासजी
तुलसीदासजी कहते हैं : कहहिं बेद इतिहास पुराना, विधि प्रपंच गुन अवगुन साना. यह जो प्रपंच वाला विश्व है वह गुण और अवगुण दोनों से मिलकर बना है. इसलिए जीवन संघर्षमय होता है. इस स्थिति में विवेक-बुद्धि का उपयोग करना होगा.
जीवन के पक्ष में जो है वह धर्म है. धर्म की स्थापना करना, आचरण करना ही मनुष्य का कार्य है. जब हम ऐसा कार्य करेंगे जो जीवन के हित में हो, प्राणियों के हित में हो, सबके हित में हो, तब उसे धर्म का आचरण कहा जाएगा.