भ्रष्टाचार से आखिर कैसे मुक्त हो देश? वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग
By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 30, 2020 01:47 PM2020-11-30T13:47:10+5:302020-11-30T13:49:14+5:30
भारत में भ्रष्टाचार की ये दो ही जड़ें हैं. पिछले पांच-छह साल में नेताओं के भ्रष्टाचार की खबरें काफी कम आई हैं. इसका अर्थ यह नहीं कि भारत की राजनीतिक व्यवस्था भ्रष्टाचार मुक्त हो गई है.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ताजा रपट के अनुसार एशिया में सबसे अधिक भ्रष्टाचार यदि कहीं है तो वह भारत में है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्न को इससे खराब प्रमाण-पत्न क्या मिल सकता है?
इसका अर्थ क्या हुआ? क्या यह नहीं कि भारत में लोकतंत्न या लोकशाही नहीं, नेताशाही और नौकरशाही है? भारत में भ्रष्टाचार की ये दो ही जड़ें हैं. पिछले पांच-छह साल में नेताओं के भ्रष्टाचार की खबरें काफी कम आई हैं. इसका अर्थ यह नहीं कि भारत की राजनीतिक व्यवस्था भ्रष्टाचार मुक्त हो गई है.
उसका भ्रष्टाचार मुक्त होना असंभव जैसा है. यदि नेता लोग रिश्वत नहीं खाएंगे, बड़े-बड़े धनपतियों से पैसे नहीं लेंगे तो वे चुनावों में खर्च होनेवाले करोड़ों रु. कहां से लाएंगे? उनके रोज खर्च होनेवाले हजारों रुपए का इंतजाम कैसे होगा? उनकी और उनके परिवार की ऐशो-आराम की जिंदगी कैसे निभेगी?
इस अनिवार्यता को अब से ढाई हजार साल पहले आचार्य चाणक्य और यूनानी दार्शनिक प्लूटो ने अच्छी तरह समझ लिया था. इसीलिए चाणक्य ने अपने अति शुद्ध और सात्विक आचरण का उदाहरण प्रस्तुत किया और प्लेटो ने अपने ग्रंथ ‘रिपब्लिक’ में ‘दार्शनिक राजा’ की कल्पना की, जिसका न तो कोई निजी परिवार होता है और न ही निजी संपत्ति. लेकिन आज की राजनीति का लक्ष्य इसका एकदम उल्टा है.
परिवारवाद और निजी संपत्तियों के लालच ने हिंदुस्तान की राजनीति को बर्बाद करके रख दिया है. उसको ठीक करने के उपायों पर फिर कभी लिखूंगा लेकिन नेताओं का भ्रष्टाचार ही नौकरशाहों को भ्रष्ट होने के लिए प्रोत्साहित करता है. हर नौकरशाह अपने मालिक (नेता) की नस-नस से वाकिफ होता है. उसे उसके हर भ्रष्टाचार का पता या अंदाज होता है.
इसीलिए नौकरशाह के भ्रष्टाचार पर नेता उंगली नहीं उठा सकता है. भ्रष्टाचार की इस नारकीय वैतरणी के जल का सेवन करने में सरकारी बाबू और पुलिसवाले भी पीछे क्यों रहें? इसीलिए एक सर्वेक्षण से पता चला था कि भारत के लगभग 90 प्रतिशत लोगों के काम रिश्वत के बिना नहीं होते.
इसीलिए अब से 60 साल पहले इंदौर में विनोबाजी के साथ पैदल-यात्ना करते हुए मैंने उनके मुख से सुना था कि आजकल भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार है. हमारे नेताओं और नौकरशाहों को गर्व होना चाहिए कि एशिया में सबसे अधिक शिष्ट (भ्रष्ट) होने की उपाधि भारत को उन्हीं की कृपा से मिली है.