ये आजादी नहीं निजता पर हमला है!

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 4, 2025 07:19 IST2025-10-04T07:19:32+5:302025-10-04T07:19:53+5:30

यह पता कर पाना बड़ा मुश्किल होता है कि जो रील आप देख रहे हैं, वह वास्तविकता है या फैलाया जा रहा भ्रम.

This is not freedom it is an attack on privacy | ये आजादी नहीं निजता पर हमला है!

ये आजादी नहीं निजता पर हमला है!

सोशल मीडिया की जब भी बात होती है तो यह सवाल उठता है कि सोशल मीडिया के पास आखिर कितनी आजादी होनी चाहिए? ज्यादातर यही बात की जाती है कि यदि सोशल मीडिया पर अंकुश लगाया गया तो आम आदमी की अभिव्यक्ति छीनने जैसा होगा. इसमें कोई संदेह होना भी नहीं चाहिए कि मीडिया का स्वरूप चाहे जो हो, उसके पास आजादी होनी चाहिए तभी लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती रहेंगी. आजाद भारत के इतिहास में ऐसे कई मौके आए हैं जब अखबारों की नकेल कसने की कोशिश की गई लेकिन इसमें सफलता किसी को भी नहीं मिली क्योंकि आम आदमी हमेशा मीडिया के साथ खड़ा रहा है.

इसका एक कारण यह भी है कि अखबारों की विश्वसनीयता हर दौर में बनी रही है. अखबार में यदि कुछ छपा है तो आम आदमी भरोसा करता है कि जो छपा है, वह सही ही होगा. यदा-कदा ऐसी भी परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं कि किसी अखबार में प्रकाशित कोई खबर असत्य निकली तो वैसे अखबारों ने माफी भी मांगी है और यथासंभव कोशिश की है कि इस तरह की विसंगतियां फिर पैदा न हों.

लेकिन अभी सवाल उस सोशल मीडिया का है जहां कुछ भी परोसा जा रहा है. ढेर सारे ऐसे एप इंटरनेट की दुनिया में मौजूद हैं कि दुनिया के दो हिस्सों में बैठे दो अनजान लोगों को भी आप नचा दें, उनके नाचने का वीडियो वायरल कर दें. इसे हम डीप फेक कहते हैं. यह पता कर पाना बड़ा मुश्किल होता है कि जो रील आप देख रहे हैं, वह वास्तविकता है या फैलाया जा रहा भ्रम.

सबसे बड़ी बात है कि डीप फेक रील्स सामान्य लोगों की नहीं बल्कि बड़े-बड़े नेताओं और सेलिब्रिटीज की बन रही हैं. हम दुनिया के दूसरे देशों की बात छोड़ दें, हमारे यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर राहुल गांधी, योगी आदित्यनाथ और प्रियंका गांधी तक के ऐसे रील्स सोशल मीडिया पर चलते रहे हैं जिन्हें देख कर कोई भी समझदार कहेगा कि यह तो इन शख्सियतों का सरासर अपमान है. किसी मुद्दे को लेकर किसी का कार्टून बनाना एक चुटीला अंदाज हो सकता है लेकिन बात केवल चुटीला होने की नहीं है, रील्स का अंदाज अपमान वाला रहता है. सवाल यह है कि ऐसे रील बनाने वालों के खिलाफ सरकार कदम क्यों नहीं उठाती?

इस सवाल का सीधा जवाब है कि सरकार में बैठे अधिकारी इसके पीछे के षड्यंत्र को समझ नहीं पा रहे हैं. हमारे नेताओं की छवि को धूमिल करना ही ऐसे रील्स का असली मकसद है और इस मकसद को पूरा करने के लिए एक पूरा सिंडिकेट चल रहा हो तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि ऐसे किसी भी षड्यंत्र का समय रहते पता लगाया जाए.

यदि किसी ने ऐसे रील्स सोशल मीडिया पर डाले हैं तो सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म को ऐसे रील्स तत्काल हटाने के सख्त कानूनी अधिकार हमारे पास होने चाहिए. किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की इतनी ताकत नहीं होनी चाहिए कि वह भारत सरकार के आदेश का उल्लंघन कर सके. हां सरकार में बैठे लोगों को यह जिम्मेदारी भी संभालनी होगी कि ऐसे किसी कानून का राजनीतिक फायदा न उठाया जाए! यदि सत्तारूढ़ दल कानूनी प्रावधानों का राजनीतिक इस्तेमाल करने लगेगा तो इससे आम आदमी तो नाराज होगा ही, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को संचालित करने  वाली ताकतें ज्यादा मजबूत होती जाएंगी और एक दिन हमारे लिए भी खतरा पैदा करने लगेंगी क्योंकि उनकी लगाम विदेश में बैठे लोगों के पास है.

और यह भी पता नहीं कि लगाम कौन कहां से कितनी खींच रहा है! यह कहने में हर्ज नहीं कि सोशल मीडिया को अभी जो बेलगाम आजादी मिली हुई है, वह वास्तव में आजादी नहीं, आजादी पर हमला करने का हथियार है. ये हथियार हमारी निजता पर हमला कर रहा है. सोशल मीडया पर आपकी तस्वीर और आपकी आवाज में किसी को दिया संदेश क्लोन करके कोई कब कैसी रील बना लेगा, कहां की तस्वीरें कहां जोड़ देगा, कहना मुश्किल है.

Web Title: This is not freedom it is an attack on privacy

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