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ब्लॉग: तीसरे चरण में लोकतंत्र के प्रति हमारी निष्ठा भी कसौटी पर

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: May 7, 2024 10:15 IST

पहले दो चरणों में मतदान का जो अधिकारिक आंकड़ा जारी किया, वह 66 प्रतिशत से कुछ ज्यादा है लेकिन इस संख्या से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। दुनिया में लोकतंत्र का सबसे पारदर्शी, निष्पक्ष तथा विशाल पर्व भारत में चल रहा है।

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ठळक मुद्दे7 मई को देश में चल रहे लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का तीसरा चरण हैयह चरण अत्यंत महत्वपूर्ण हैइस चरण में वोटिंग के साथ ही लोकसभा की आधी सीटों पर चुनाव हो जाएगा

मंगलवार 7 मई को देश में चल रहे लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का तीसरा चरण है। यह चरण अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस चरण में वोटिंग के साथ ही लोकसभा की आधी सीटों पर चुनाव हो जाएगा। इसके अलावा 19 और 26 अप्रैल को हुए मतदान के दो चरणों में मतदाताओं के बीच उतना उत्साह नहीं देखा गया जितना अपेक्षित था।

पिछले सप्ताह निर्वाचन आयोग ने पहले दो चरणों में मतदान का जो अधिकारिक आंकड़ा जारी किया, वह 66 प्रतिशत से कुछ ज्यादा है लेकिन इस संख्या से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। दुनिया में लोकतंत्र का सबसे पारदर्शी, निष्पक्ष तथा विशाल पर्व भारत में चल रहा है। दुनिया हमारी ओर उत्सुकता से देख रही है। ऐसे में हमें दुनिया को यह दिखाना होगा कि लोकतंत्र में हमारी भागीदारी दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक मुल्क की जनता की अपेक्षा अधिक है। 

पाकिस्तान जैसे कई देशों में लोकतंत्र एक दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं है। भारत जैसे विकासशील देश में जहां 70 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में बसती है, लोकतंत्र की असली शक्ति गांवों में ही होती है। जब से देश आजाद हुआ है, भारत में ग्राम पंचायत से लेकर लोकतंत्र के सर्वोच्च मंच संसद तक के चुनाव सुचारु रूप से हुए हैं और हमने विश्व के सामने लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति जनता की अगाध आस्था का नायाब उदाहरण पेश किया है।

इसीलिए भारत में लोकतंत्र के इस पर्व पर दुनिया भर की निगाहें टिकी हैं। लगभग सौ करोड़ मतदाताओं के साथ चुनाव निष्पक्ष रूप से करवाना बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है और भारत इस मामले में एक आदर्श बनकर उभरा है। इसीलिए जब चुनाव में मतदान कम होता है, तब चिंता की लकीरें उभर आती हैं। कई सवाल मन में उभरने लगते हैं। 

सबसे पहला सवाल तो यह उठता है कि चुनाव प्रक्रिया में ऐसी कौन सी खामियां रह गई हैं जिनके कारण मतदाता मतदान केंद्रों तक जाने में हिचक रहा है। दूसरा सवाल यह भी उठता है कि क्या चुनाव में जीतने के बाद जनप्रतिनिधि अपने कर्तव्यों के निर्वाह की कसौटी पर खरे नहीं उतरे जिसके कारण मतदाता की आस्था वोट डालने के प्रति कम होती जा रही है। यह सवाल भी पैदा होता है कि क्या चुनाव मैदान में राजनीतिक दल तथा उनके उम्मीदवार जो तौर-तरीके अपना रहे हैं, उनके कारण मतदाता की बेरुखी बढ़ रही है।

सवाल कई हैं और उनका जवाब सरकार तथा राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं को ढूंढना होगा। मतदान केंद्रों तक मतदाता को आकर्षित करने का दायित्व भी सरकार, राजनीतिक दलों, उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ-साथ सामाजिक संगठनों का भी है। तीसरे चरण का मतदान भीषण गर्मी के बीच हो रहा है। देश के अधिकांश हिस्सों में तापमान 40 डि.से. पार कर गया है। 

7 मई को जिन राज्यों की 93 सीटों पर मतदान होना है, वहां मौसम विभाग के अनुमान के मुताबिक प्रचंड गर्मी से कोई राहत फिलहाल मिलने की संभावना नहीं है। ऐसे में एक मतदाता के तौर पर हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। हमारा देश गर्म राष्ट्रों की श्रेणी में आता है। गर्मी हमारे लिए नई बात नहीं है। इसीलिए मतदान केंद्रों तक न पहुंचने के लिए तेज धूप को हम बहाना नहीं बना सकते। देश के प्रति हमारी भी जिम्मेदारी तथा जवाबदेही है।

राष्ट्र के प्रति हमारा कर्तव्य सर्वोपरि है और मौसम या अन्य व्यक्तिगत कारण उसमें बाधा नहीं बनने चाहिए। सरकार से हम जिम्मेदारी और जवाबदेही की अपेक्षा तो करते हैं लेकिन उसके पहले हमें यह सोचना होगा कि क्या हमने देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह ईमानदारी से किया है? तीसरे चरण के मतदान में हमें दुनिया को यह दिखा देना होगा कि एक नागरिक के तौर पर लोकतंत्र में हमारी आस्था कितनी गहरी है तथा हम अपने लोकतांत्रिक कर्तव्यों के निर्वाह के प्रति कितने गंभीर हैं। तीसरे चरण में लोकतंत्र के प्रति हमारी निष्ठा भी कसौटी पर है।

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