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ब्लॉग: आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के हैं अनेक पहलू

By प्रवीण दीक्षित | Updated: October 12, 2023 10:12 IST

हमारी सुरक्षा एजेंसियों को किस प्रकार लीक से हटकर सोचते हुए आतंकवाद से निपटने के लिए नए उपायों को लागू करना चाहिए?आधुनिक आतंकवाद विरोधी प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ व्यक्तिगत जानकारी तक सटीक पहुंच आवश्यक है।

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देश की आंतरिक सुरक्षा की बात करें तो क्या एक-दो दशक पहले की स्थिति और आज की स्थिति में कोई अंतर है? खासकर मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद जैसे महानगरों में होने वाली बड़ी आतंकवादी गतिविधियां क्या अब ठंडी पड़ गई हैं?

नरेंद्र मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद और उससे पहले भारत में आतंकवाद की स्थिति में जमीन-आसमान का अंतर है। 2014 से पहले भारत के हर बड़े शहर जैसे दिल्ली, जयपुर, मुंबई, नागपुर, पुणे बेंगलुरु, हैदराबाद, कोयंबटूर में कई आतंकी हमले हुए थे।

2014 के बाद से कश्मीर में आतंकी हमले हो रहे हैं लेकिन 2019 में अनुच्छेद 370ए हटाए जाने के बाद इन हमलों में काफी कमी आई है। भारत में अन्य जगहों पर आतंकवादियों ने हमले करने की कोशिश की, लेकिन वे पकड़े गए।

कहने का तात्पर्य यह कि आतंकियों ने कोशिश तो की, लेकिन उससे पहले ही सजग सुरक्षा एजेंसियों ने इनके खिलाफ प्रभावी कार्रवाई कर दी है। वैश्विक स्तर से लेकर जमीनी स्तर तक, किन सुरक्षा एजेंसियों को आतंकवाद का मुकाबला करने का काम सौंपा गया है और वे एक-दूसरे के साथ कैसे समन्वय करते हैं?

वैश्विक स्तर पर इंटरपोल और विभिन्न सहयोगी देशों और संयुक्त राष्ट्र के बीच समन्वय आतंकवाद के खिलाफ काम कर रहा है। भारत में, राज्य में एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी), एटीएस और स्थानीय पुलिस आतंकवाद विरोधी अभियानों को अंजाम देने के लिए एक-दूसरे के साथ समन्वय कर रहे हैं। इसके अलावा एनसीबी (नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो) नशीले पदार्थों के खिलाफ कार्रवाई करती है।

महाराष्ट्र में सीआईडी में नारकोटिक्स के खिलाफ टास्क फोर्स का गठन किया गया है। ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) वित्तीय आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करता है।

साइबर अपराधों के खिलाफ केंद्र और राज्य स्तर पर एक विशेष तंत्र स्थापित किया गया है। इन सभी सुरक्षा प्रणालियों में भारत सरकार का गृह मंत्रालय और उसमें कार्यरत सुरक्षा प्रणालियां लगातार जागरूक रहती हैं।

जैसे-जैसे तकनीक विकसित होती है, वैसे-वैसे आतंकवाद की प्रकृति भी बदलती है। उदाहरण के लिए क्रिप्टो करेंसी, हवाला नेटवर्क, मादक पदार्थों की तस्करी जैसे अपराध के बढ़ते खतरे तो क्या भारत की पुलिस व्यवस्था और उसके पास उपलब्ध बुनियादी ढांचा इन आधुनिक खतरों से निपटने में सक्षम है?

भारत से बाहर बैठे आतंकवादी नई तकनीकों का दुरुपयोग कर रहे हैं। भारत की पुलिस प्रणाली भी इससे निपटने के लिए नए प्रशिक्षण और बुनियादी ढांचे का प्रभावी उपयोग कर रही है लेकिन यह सतत चलने वाली प्रक्रिया है।

हमारी सुरक्षा एजेंसियों को किस प्रकार लीक से हटकर सोचते हुए आतंकवाद से निपटने के लिए नए उपायों को लागू करना चाहिए?आधुनिक आतंकवाद विरोधी प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ व्यक्तिगत जानकारी तक सटीक पहुंच आवश्यक है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से सटीक जानकारी प्राप्त करना संभव है।

 साथ ही मोबाइल फोन के इस्तेमाल से इन आतंकियों की सटीक लोकेशन का पता लगाने में भी काफी मदद मिल रही है लेकिन अभी भी आतंकवादियों से सटीक जानकारी पाने के लिए पुलिस मित्रों की बहुत आवश्यकता है। पुलिस मित्र सुरक्षा बलों और आम लोगों के बीच की दूरी को कम करते हैं और वे अपने आसपास होने वाली किसी भी संदिग्ध गतिविधियों के बारे में तुरंत सुरक्षा बलों को सूचित करते हैं।वामपंथी विचारधारा या साम्यवाद पर आधारित गतिविधियों से होने वाली जान-माल की हानि को कम करने में पुलिस और प्रशासन कितना सफल रहा है?

माओवादी विद्रोह में भी 50 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। विकास कार्यों, रोजगार सृजन, रेलवे के बढ़ते नेटवर्क के कारण माओवादियों द्वारा बनाए गए सुरक्षित ठिकाने लगभग खत्म हो गए हैं। स्थानीय स्तर पर नई भर्तियां लगभग रुक चुकी हैं। पुलिस और प्रशासन की प्रभावी कार्रवाई के कारण स्थानीय लोग माओवादियों के खिलाफ सूचना देने के लिए आगे आ रहे हैं।

साथ ही कई माओवादी भी सामान्य जीवन जीने के लिए सरकार की ओर से दी जाने वाली मदद को स्वीकार कर उग्रवाद के खिलाफ आगे आ रहे हैं।

गृह मंत्री ने कहा है कि अगले दो साल में इस माओवादी कट्टरवाद को पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा। क्या यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है?

जैसा कि गृह मंत्री ने कहा, इस लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल नहीं है अगर सभी संबंधित राज्य सरकारें अगले दो वर्षों में माओवादी कट्टरवाद को खत्म करने के लिए भारत सरकार के साथ मिलकर प्रयास करें।

नक्सल प्रभावित क्षेत्र के विकास और नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए केंद्र सरकार और महाराष्ट्र राज्य सरकार ने क्या कोई विशेष प्रयास किए हैं?

नक्सल क्षेत्र के विकास के लिए गढ़चिरोली, गोंदिया क्षेत्रों में ‘पुलिस दादालोरा खिड़की’ योजना के तहत एक लाख से अधिक स्थानीय लोगों को विभिन्न आवश्यक सरकारी प्रमाणपत्र प्रदान किए गए हैं।

साथ ही, उनके लिए विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षणों की भी व्यवस्था की गई है। इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ चीफ्स ऑफ पुलिस ने गढ़चिरोली के पुलिस अधीक्षक को सम्मानित किया है। साथ ही विभिन्न उद्यमी आने वाले समय में नई स्टील फैक्ट्रियों में एक लाख से अधिक लोगों के लिए रोजगार का सृजन करने जा रहे हैं। 

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