उमेश चतुर्वेदी ब्लॉग: जाति गणना के नतीजों को लेकर अपनी-अपनी राजनीति

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 6, 2023 13:29 IST2023-10-06T13:27:33+5:302023-10-06T13:29:30+5:30

आज राजनीतिक ताकत आर्थिक हैसियत बनाने का भी जरिया हो गई है, इसलिए सारी जातियों की कोशिश इसी पर है।

Their own politics regarding the results of caste census | उमेश चतुर्वेदी ब्लॉग: जाति गणना के नतीजों को लेकर अपनी-अपनी राजनीति

फोटो क्रेडिट- फाइल फोटो

राजनीति के हर कदम के पीछे सोची-समझी रणनीति ही नहीं, सुचिंतित कारण भी होते हैं। यह अकारण नहीं है कि गांधी जयंती के दिन बिहार की नीतीश-तेजस्वी सरकार ने राज्य की जाति जनगणना को जारी किया। सुविधा के हिसाब से विचारों की व्याख्या और उसके जरिये फायदा उठाना राजनीति की फितरत है।

चूंकि स्वाधीनता संग्राम और संविधान सभा की चर्चाओं के दौरान स्वीकार्य धारणा रही कि भारत के कुछ जातीय समूह और समुदाय सामाजिक विकास की दौड़ में पिछड़े रह गए हैं।

लिहाजा उन्हें आरक्षण दिया जाए। यह व्यवस्था पंद्रह साल के लिए की गई। ऐसा समझा गया कि इतने दिनों में स्वाधीन भारत की व्यवस्था में विकास की दौड़ में पीछे रह गए लोग मुख्यधारा में आ जाएंगे। शायद संविधान निर्माताओं ने नहीं सोचा था कि आरक्षण की यह व्यवस्था आने वाले दिनों में अपनी-अपनी जातियों के लिए ऐसा निजी दायरा साबित होगी, जिसे ताकतवर होने के बाद वह जाति बढ़ाने की कोशिश करेगी और इस बहाने दूसरे जातीय समूहों पर अपना वर्चस्व बनाने में जुट जाएगी।

अब जातियों का अपना-अपना दायरा बन गया है और उस दायरे को उस समुदाय के लोग बढ़ाने की कोशिश में हैं और इस बहाने राजनीतिक ताकत हासिल करने की कोशिश में हैं।

चूंकि आज राजनीतिक ताकत आर्थिक हैसियत बनाने का भी जरिया हो गई है, इसलिए सारी जातियों की कोशिश इसी पर है। इन प्रयासों को धार और नेतृत्व जातियों के अपने-अपने नेता दे रहे हैं. बिहार की जाति जनगणना का असल मकसद यही है।

जाति जनगणना के आंकड़ों के बाद जब हिस्सेदारी का विश्लेषण होगा तो ये सारे सवाल उठेंगे। राजनीतिक हिस्सेदारी को लेकर जब बात होगी तो न्यायमूर्ति रोहिणी आयोग की रिपोर्ट का भी जिक्र जरूरी होगा। रोहिणी आयोग का नतीजा है कि अति पिछड़ावाद के आरक्षण में सिर्फ चार ताकतवर जातियों को ही फायदा हुआ है।

देर-सेवर रोहिणी आयोग की रिपोर्ट जारी करने का केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ेगा। हो सकता है राजनीति के तहत वह इसे जारी भी कर दे। इससे साबित होगा कि रोहिणी आयोग ने पिछड़े समुदाय की जिन दबंग जातियों पर आरक्षण का फायदा उठाने की बात कही है, कुछ वैसी ही स्थिति राजनीति की भी है।

अब तक होता यह था कि पिछड़ावादी राजनीति सवर्ण राजनीति पर हमलावर थी लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। सवर्णवादी राजनीति तो अल्पसंख्यक हो गई है। आंकड़ों ने इसे स्थापित कर दिया है। इसका असर यह होगा कि देर-सवेर वह खुद को अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग करेगा। अब अगली लड़ाई पिछड़ावादी और अति पिछड़ावादी राजनीति में होना है। 

Web Title: Their own politics regarding the results of caste census

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