शोभना जैन का ब्लॉग: शांति दूत की भूमिका भारत के लिए एक बड़ी राजनयिक चुनौती

By शोभना जैन | Updated: August 30, 2024 11:04 IST2024-08-30T11:01:53+5:302024-08-30T11:04:28+5:30

एक अहम सवाल यह उभरा कि भारत ने यह एक बड़ी राजनयिक चुनौती ले तो ली है लेकिन क्या मौजूदा हालात में भारत इस स्थति में है कि वह दोनों पक्षों को युद्ध रोकने के लिए समझा पाए और क्या उसके शांति प्रयास वहां कारगर हो सकेंगे? 

The role of peace envoy is a big diplomatic challenge for India | शोभना जैन का ब्लॉग: शांति दूत की भूमिका भारत के लिए एक बड़ी राजनयिक चुनौती

शोभना जैन का ब्लॉग: शांति दूत की भूमिका भारत के लिए एक बड़ी राजनयिक चुनौती

Highlightsप्रधानमंत्री मोदी की अगले माह संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में बाइडेन सहित अन्य यूरोपीय नेताओं से मुलाकात प्रस्तावित है. वहां उस वक्त जेलेंस्की भी मौजूद रहेंगे, जिनसे  कीव में गहन मंत्रणा के बाद एक बार फिर पीएम मोदी से मुलाकात हो सकती है.भारत शांति प्रयासों की कठिन चुनौती को निभाने के लिए प्रयास तो कर ही रहा है.

रूस और यूक्रेन के  बीच युद्ध रुकवाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शांति दूत के रूप में पिछले सप्ताह की  यूक्रेन यात्रा खासी सुर्खियों में रही. एक अहम सवाल यह उभरा कि भारत ने यह एक बड़ी राजनयिक चुनौती ले तो ली है लेकिन क्या मौजूदा हालात में भारत इस स्थति में है कि वह दोनों पक्षों को युद्ध रोकने के लिए समझा पाए और क्या उसके शांति प्रयास वहां कारगर हो सकेंगे? 

इस यात्रा के बाद मोदी ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन और यूक्रेन का साथ दे रहे अमेरिका व यूरोपीय देशों के नाटो गठबंधन  के प्रमुख सहित अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से युद्ध की स्थिति पर चर्चा की. इस सबके मद्देनजर यह सोच बनी कि भारत युद्ध रुकवाने के लिए शांति दूत की भूमिका निभाने को तैयार है. प्रधानमंत्री मोदी की अगले माह संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में बाइडेन सहित अन्य यूरोपीय नेताओं से मुलाकात प्रस्तावित है. 

वहां उस वक्त जेलेंस्की भी मौजूद रहेंगे, जिनसे  कीव में गहन मंत्रणा के बाद एक बार फिर पीएम मोदी से मुलाकात हो सकती है. अक्टूबर में  मास्को में होने वाली ब्रिक्स शिखर बैठक के दौरान मोदी की पुतिन से मुलाकात  होगी और शांति प्रयासों के अगले दौर की चर्चा होगी.भारत के रूस के साथ भरोसे के रिश्ते रहे हैं. 

इस पृष्ठभूमि में देखें तो भारत के साथ रूस के विशेष सामरिक, राजनीतिक रिश्ते हैं, उसकी ऊर्जा संबंधी जरूरतों के लिए रूस बड़ा आपूर्तिकर्ता है. यूक्रेन के साथ भी भारत रिश्ते बढ़ाना चाहता है, वह यूक्रेन की क्षेत्रीय  अखंडता तथा प्रभुसत्ता का पक्षधर है. वैसे मोदी की यात्रा के बाद जेलेंस्की ने भारत के रूस से तेल खरीदने पर गहरी आपत्ति जताई. बहरहाल, भारत शांति प्रयासों की कठिन चुनौती को निभाने के लिए प्रयास तो कर ही रहा है.

एक समीक्षक के अनुसार भू-राजनीतिक मसलों पर भारत सिर्फ अपना हित नहीं देखता, बल्कि विकासशील व गरीब देशों का रुख भी सामने रखता है. 
यही कारण है कि भारत वैश्विक दक्षिण, यानी ‘ग्लोबल साउथ’ की मजबूत आवाज बन रहा है. 

चाहे यूक्रेन संकट हो या इजराइल-हमास युद्ध, भारत का रुख इस दायित्व से भी प्रभावित रहा है. इस समय जब दुनिया के तमाम बड़े देश आपस में जूझ रहे हैं, तब गरीब व विकासशील देशों की आवाज बमुश्किल वैश्विक मंचों पर जगह बना पा रही है. 

ऐसे में, अंतरराष्ट्रीय जगत में अपने बढ़ते कद का लाभ उठाकर भारत उनकी स्वाभाविक सशक्त आवाज बन रहा है. यूक्रेन युद्ध को जल्द खत्म कराने को लेकर भारत यदि तत्परता दिखा रहा है तो उसकी एक वजह उस पर ‘ग्लोबल साउथ’ की अहम जिम्मेदारी का होना है.

 

Web Title: The role of peace envoy is a big diplomatic challenge for India

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