सरकारी अस्पतालों की गिरती साख को बचाना होगा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: September 4, 2025 07:35 IST2025-09-04T07:33:19+5:302025-09-04T07:35:05+5:30
गरीब से गरीब आदमी भी बेहद मजबूरी की हालत में ही वहां इलाज कराने के बारे में जाने की बात सोचता है.

सरकारी अस्पतालों की गिरती साख को बचाना होगा
इंदौर के शासकीय महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय (एमवाईएच) में चूहों द्वारा 48 घंटों के भीतर दो नवजात बच्चों के शरीर को कुतरने की घटना ने सरकारी अस्पतालों में बरती जाने वाली लापरवाही को एक बार फिर उजागर किया है. हैरानी की बात यह है कि एक बच्चे को रविवार को चूहे ने जब काटा तो उसके बाद भी अस्पताल प्रशासन की नींद नहीं खुली और अगले दिन एक और बच्चे को चूहों ने काट लिया!
इन दोनों बच्चे की मौत होने की खबर सामने आ रही है, हालांकि अस्पताल प्रबंधन ने चूहे के काटने के कारण मौत होने की बात से इनकार किया है. इंदौर की यह घटना कोई अपवाद नहीं है और सरकारी अस्पतालों की बदहाली के कारण ही देशभर में निजी अस्पताल फल-फूल रहे हैं.
इंदौर के इसी एमवाई अस्पताल में विगत मई माह में ही कैजुअल्टी में पीजी डॉक्टरों की जगह ठेके पर रखे गए कर्मचारी और लैब असिस्टेंट मरीजों का इलाज करते पाए गए थे. तब अस्पताल के अधीक्षक ने स्वीकार किया था कि पहले भी ऐसे फर्जी कर्मचारी पकड़े गए थे.
पिछले साल फिरोजाबाद में प्रसव के दौरान सरकारी डॉक्टरों ने एक महिला का जब आपरेशन किया तो उसके पेट में स्पंज छोड़ दिया था. इससे उसका दोबारा ऑपरेशन करना पड़ा और वह युवती अब कभी मां नहीं बन सकती. कानपुर में दो साल पहले आपरेशन के दौरान एक महिला के पेट में डॉक्टरों ने तौलिया छोड़ दिया, जिससे उसकी जान पर बन आई थी.
चूहों द्वारा मरीजों को कुतरे जाने की तो अनगिनत घटनाएं सामने आ चुकी हैं. इसी साल मई माह में बिहार की राजधानी पटना के सरकारी अस्पताल नालंदा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एनएमसीएच) में एक मरीज के पांव की उंगलियों को चूहों ने कुतर लिया था. इसी अस्पताल में पिछले साल चूहों ने एक शव की आंखें भी कुतर दी थीं. पिछले साल दिसंबर में राजस्थान में जयपुर के स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में कैंसर पीड़ित 10 साल के एक बच्चे की मौत के मामले में बच्चे के पिता ने आरोप लगाया था कि बच्चे की मौत चूहा काटने के बाद हुई ब्लीडिंग की वजह से हुई.
पिछले वर्ष फरवरी में तेलंगाना में कामारेड्डी अस्पताल के आइसीयू में भर्ती मरीज के पैरों और अंगुलियों पर चूहों के कुतरने के निशान मिले और ऐसा ही मामला झारखंड के गिरीडीह के सरकारी अस्पताल में भी सामने आया था, जहां तीन दिन के नवजात को चूहों ने कुतर दिया था.
ऐसा नहीं है कि सरकारी अस्पतालों में प्रतिभाशाली डॉक्टरों की या फंड की कमी होती है. चिकित्सा क्षेत्र के सबसे योग्य डॉक्टरों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति ही इन अस्पतालों में होती है और सरकार की तरफ से फंड की कमी भी नहीं होने दी जाती.
लेकिन दुर्भाग्य से कई सरकारी डॉक्टर अपनी निजी प्रैक्टिस में ही व्यस्त रहते हैं और अन्य कर्मचारी भी मरीजों के परिजनों से पैसे ऐंठने की कोशिश में रहते हैं. महंगी दवाइयां मरीजों को बाहर से खरीदने पर मजबूर होना पड़ता है और महंगी जांचों वाले उपकरण भी वहां ज्यादातर खराब ही रहते हैं.
ऐसा नहीं है कि सारे सरकारी अस्पतालों की यही हालत है लेकिन ज्यादातर अस्पतालों की यही हकीकत है और इसीलिए गरीब से गरीब आदमी भी बेहद मजबूरी की हालत में ही वहां इलाज कराने के बारे में जाने की बात सोचता है. निश्चित रूप से सरकार को इस बारे में गंभीरता से विचार करना होगा और सरकारी अस्पतालों की साख ऐसी बनानी होगी कि निजी अस्पतालों की तरह आम लोग सरकारी अस्पतालों में भी पूरे भरोसे के साथ इलाज करवाने जा सकें.