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ब्लॉग: आतंकियों की सोची-समझी रणनीति है कश्मीरी हिंदुओं की हत्या

By अवधेश कुमार | Updated: August 19, 2022 08:53 IST

आतंकवादियों के लिए अब पहले की तरह बड़ी वारदात करना संभव नहीं रहा. इसलिए आतंकवादी रणनीति के तहत कश्मीर में बाहर से आकर काम करने वालों या फिर गैरमुस्लिमों को अपना लक्ष्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

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स्वतंत्रता दिवस के ठीक अगले दिन दक्षिण कश्मीर के शोपियां में आतंकवादियों द्वारा दो कश्मीरी हिंदू भाइयों पर अंधाधुंध गोलीबारी ने फिर वहां गैर-मुस्लिमों के वर्तमान और भविष्य को लेकर कई प्रश्नों को खड़ा किया है. दोनों भाई अपने बाग में काम कर रहे थे कि आतंकवादियों ने उन पर हमला कर दिया जिसमें सुनील कुमार चल बसे और पीतांबर का शोपियां के जिला अस्पताल में इलाज चल रहा है. 

ऐसा नहीं है कि इस बात की आशंका पहले नहीं थी. ध्यान रखने की बात है कि 1990 के दशक में पलायन की पूरी परिस्थिति होते हुए भी इन हिंदू परिवारों ने वहीं रहने का निर्णय किया था. वे आज तक वहीं रह रहे हैं. गांव में उनकी संख्या भी ज्यादा नहीं है. केवल तीन परिवार हैं. जाहिर है, इन तीन दशकों से ज्यादा समय में इन परिवारों ने वहां बहुत कुछ झेला होगा. 

सबको झेलते हुए वहां रहना सामान्य जिजीविषा की बात नहीं है. लेकिन जब कश्मीर धीरे-धीरे गैरकश्मीरियों के भी रहने के अनुकूल बन रहा है तो वहां के निवासी होने के नाते गैरमुस्लिमों या कश्मीरी हिंदुओं की हत्या उद्वेलित करती है. जिस कश्मीरी फ्रीडम फाइटर्स नामक आतंकवादी संगठन ने बयान जारी कर हमले की जिम्मेदारी ली है. उसके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं है. माना जा रहा है कि यह अन्य कई संगठनों के ही छद्म नाम हैं जिनका उद्देश्य कश्मीर का भारत से अलगाव है.

जिस तरह कश्मीर में घर-घर तिरंगा अभियान गांव-गांव तक पहुंचा, जगह-जगह तिरंगा यात्रा निकली, उनको अलगाववादी आतंकवादी सहित सीमा पार के उनके प्रायोजकों के लिए सहन करना संभव नहीं है. तिरंगे का अर्थ भारत के प्रति लगाव और राष्ट्रवाद की भावना का संचार है. 

जम्मू-कश्मीर को हर हाल में भारत से अलग करने के लिए षड्यंत्रों में लगी शक्तियों के लिए पहला सबसे बड़ा आघात 5 अगस्त, 2019 को लगा था जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को निष्प्रभावी कर दिया गया. तब आतंकवादी संगठनों और पाकिस्तान की बौखलाहट स्पष्ट रूप से सामने आई थी. ऐसा लगा था जैसे पाकिस्तान के सामने अपने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है. 

अंदर से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के लिए लंबे समय तक धारा-370 और कश्मीर सबसे बड़ा मुद्दा बना रहा किंतु वे कुछ कर न सके. धीरे-धीरे जिस तरह वहां पुराने हिंदू धर्म स्थलों का उद्धार हो रहा है, लोग विधिपूर्वक अनुष्ठान कर रहे हैं, उनकी लाइव तस्वीरें सामने आ रही हैं तथा लाल चौक से लेकर एक समय आतंकवादियों और अलगाववादियों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस सहित तिरंगे संबंधी उत्सवों तथा इसके नाम पर होने वाले अन्य आयोजनों में लोगों के उमड़ते समूह ने पाकिस्तानपरस्तों सहित सभी अलगाववादियों-आतंकवादियों को अंदर से हिला दिया है. जाहिर है उन्हें इसका विरोध करना ही था.

कश्मीर में आज यह स्थिति तो है नहीं कि पहले की तरह हुर्रियत नेता आह्वान करें और लोग सड़कों पर उतर जाएं या पत्थरबाजी हो. तो आतंकवादी इसके लिए आसान निशाना ढूंढ़ते हैं. लंबे समय से वहां रहने वाले हिंदू परिवार जीवन रक्षा को लेकर अवश्य ही थोड़ा निश्चिंत मानसिकता में जी रहे होंगे. उसमें उन पर गोलियां चलाना इनके लिए आसान था. वास्तव में आतंकवादियों ने रणनीति के तहत कश्मीर में बाहर से आकर काम करने वालों या फिर गैरमुस्लिमों को अपना लक्ष्य बनाया है. 

जब भी ऐसी हत्याएं होंगी तो कश्मीरी हिंदुओं विशेषकर पंडितों की सुरक्षा का मामला सतह पर आएगा. कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (केपीएसएस) ने फिर पहले के जैसा ही बयान दिया है कि कश्मीर ऐसी जगह है जहां पर्यटक सुरक्षित हैं पर कश्मीरी हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं इसलिए कश्मीरी हिंदुओं को यहां से पलायन करना चाहिए. यह बात सही है कि केपीएसएस उन कश्मीरी हिंदुओं का संगठन है जिन्होंने वहां आतंकवादी हिंसा के समय में भी पलायन नहीं किया था. तो क्या यही एकमात्र रास्ता है?

वहां से पलायन का मतलब आतंकवादियों के एजेंडे को ही पूरा करना होगा. यह बात ठीक है कि किसी के परिवार पर जब हमले होते हैं तो उसके लिए डटकर खड़ा रहना मुश्किल होता है. त्रासदी की पीड़ा वही समझता है जिसे भुगतना पड़ता है किंतु सब जानते हैं कि समय बदल रहा है. आतंकवादियों के लिए अब पहले की तरह बड़ी वारदात करना संभव नहीं रहा. यह धारणा आम होनी चाहिए कि किसी की हत्या हो या हमला हो तो केवल जम्मू-कश्मीर प्रशासन ही नहीं बल्कि पूरा देश उसके साथ खड़ा है. इससे ही वहां भय और निराशा का माहौल कमजोर होगा तथा लोगों के अंदर विपरीत परिस्थिति में भी रुके रहने का साहस पैदा होगा. वैसे भी सरकार ने कश्मीरी हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए काफी कदम उठाए हैं. वहां कार्यरत कर्मचारियों को जिला केंद्रों पर स्थानांतरित करने से लेकर उनके निवास आदि को भी एक जगह करने की व्यवस्थाएं की गई हैं, की जा रही हैं. 

इसमें कश्मीरी पंडितों या अन्य संगठनों का भी दायित्व बनता है कि सरकार पर दबाव बनाते हुए भी साथ दें एवं कश्मीर को आतंकवाद और अलगाववाद से मुक्ति के सहयोगी बने रहें. जो समूह आतंक के भय से पलायन करेगा, उसे आतंकवादी हमेशा डराएंगे. यह न भूलिए कि आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों की भी हत्या कर रहे हैं लेकिन वे कभी वहां से बाहर पलायन करने की आवाज नहीं उठाते. 

सभी गैरमुस्लिमों की सुरक्षा जितना संभव है सुनिश्चित हो, इसकी मांग जायज है किंतु आतंकवादियों और सीमा पार उनके प्रायोजकों के हौसलों को पस्त करना है, उन्हें अंतिम रूप से पराजित करना है तो वहां से भागने या इसकी आवाज उठाने से बचना ही होगा. 

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